by-Ravindra Sikarwar
नई दिल्ली: भारत और अमेरिका के बीच एक बड़ा व्यापार समझौता इस सप्ताह घोषित होने की संभावना है, संभवतः 8 जुलाई से पहले। यह खबर ऐसे समय में आई है जब अमेरिका कई देशों पर पारस्परिक शुल्क (reciprocal tariffs) लगाने पर विचार कर रहा है, और भारत इन शुल्कों से छूट पाने की कोशिश कर रहा है।
सूत्रों के मुताबिक, इस समझौते की शर्तों पर दोनों देशों के बीच सहमति बन चुकी है। वाणिज्य विभाग के विशेष सचिव राजेश अग्रवाल के नेतृत्व में भारतीय दल इस समझौते को अंतिम रूप देने के लिए वाशिंगटन में है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी हाल ही में भारत के साथ एक “बहुत बड़े” व्यापार समझौते का संकेत दिया है।
क्या है मामला?
दरअसल, ट्रंप प्रशासन ने विभिन्न देशों पर रेसिप्रोकल टैरिफ लगाने की घोषणा की थी। भारत पर 26% का अतिरिक्त टैरिफ लगाया गया था, जिसे 90 दिनों के लिए स्थगित कर दिया गया था। यह स्थगन 9 जुलाई को समाप्त हो रहा है, जिसके बाद भारत को इस टैरिफ का सामना करना पड़ सकता है। भारत लंबे समय से इस अतिरिक्त शुल्क से छूट की मांग कर रहा है।
समझौते से क्या फायदे होंगे?
अगर यह समझौता होता है, तो दोनों देशों को कई फायदे होंगे:
- भारत के लिए: भारतीय उत्पादों को अमेरिकी बाजार में बेहतर पहुंच मिलेगी। विशेष रूप से कृषि उत्पादों, आईटी और फार्मा सेक्टर को लाभ होने की उम्मीद है। इसके अलावा, भारत को 26% के अतिरिक्त टैरिफ से राहत मिल सकती है, जिससे भारतीय निर्यातकों को बड़ी मदद मिलेगी।
- अमेरिका के लिए: अमेरिकी उत्पादों को भारतीय बाजार में बेहतर पहुंच मिलेगी, विशेषकर कृषि उत्पादों जैसे बादाम, सेब, अखरोट, शराब और इथेनॉल के लिए। ट्रंप प्रशासन भारत पर व्यापार बाधाओं को कम करने और अमेरिकी कंपनियों के लिए भारतीय बाजार को और अधिक सुलभ बनाने का दबाव बना रहा है।
चुनौतियाँ और आगे की राह:
हालांकि, समझौते पर सहमति बन चुकी है, फिर भी कुछ मुद्दे बाकी हैं जिन पर ध्यान देना होगा। भारत को अपने किसानों, डिजिटल नीतियों और डेटा सुरक्षा जैसे क्षेत्रों की सुरक्षा को सुनिश्चित करना होगा। विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि भारत को जल्दबाजी में कोई ऐसा समझौता नहीं करना चाहिए जिससे घरेलू उद्योगों को नुकसान हो।
कुल मिलाकर, 8 जुलाई की समय सीमा नजदीक होने के कारण यह समझौता दोनों देशों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। यह न केवल दोनों के बीच व्यापारिक संबंधों को मजबूत करेगा, बल्कि एशिया में चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने में भी मदद कर सकता है।