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by-Ravindra Sikarwar

विश्व व्यापार संगठन (WTO) में एक बड़े व्यापार विवाद ने भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच तनाव बढ़ा दिया है। भारत अमेरिका द्वारा स्टील और एल्युमीनियम पर लगाए गए भारी आयात शुल्क के जवाब में प्रतिशोधात्मक शुल्क लगाने पर गंभीरता से विचार कर रहा है। यह स्थिति तब और बिगड़ गई है जब अमेरिका ने इन शुल्कों के संबंध में भारत की डब्ल्यूटीओ अधिसूचना को खारिज कर दिया है, जिससे नई दिल्ली के लिए जवाबी कार्रवाई का मार्ग प्रशस्त हो गया है।

विवाद का मूल:
यह विवाद तब शुरू हुआ जब अमेरिका ने अपने घरेलू धातु उद्योगों की रक्षा के लिए स्टील और एल्युमीनियम के आयात पर भारी शुल्क (शुरुआत में 25% और बाद में 50% तक) लगाया। अमेरिका ने इन शुल्कों को “राष्ट्रीय सुरक्षा” के आधार पर लगाया है, न कि “सुरक्षा उपायों” (safeguard measures) के रूप में। डब्ल्यूटीओ के नियमों के तहत, सुरक्षा उपायों पर सदस्य देशों के बीच परामर्श और विवाद निपटान तंत्र के माध्यम से चर्चा की जा सकती है। हालांकि, अमेरिका का तर्क है कि चूंकि ये शुल्क राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित हैं, इसलिए वे डब्ल्यूटीओ के सुरक्षा समझौते के दायरे में नहीं आते हैं और इस पर भारत के साथ कोई चर्चा नहीं की जाएगी।

भारत की प्रतिक्रिया और डब्ल्यूटीओ में अधिसूचना:
अमेरिका के इन शुल्कों से भारत के स्टील और एल्युमीनियम निर्यातकों को भारी नुकसान हुआ है। वित्त वर्ष 2024-25 में भारत ने अमेरिका को लगभग 4.56 बिलियन डॉलर मूल्य के लौह, स्टील और एल्युमीनियम उत्पादों का निर्यात किया, जो अब इन बढ़े हुए शुल्कों के कारण प्रभावित हो रहे हैं। इन शुल्कों के कारण भारतीय निर्माताओं और निर्यातकों की लाभप्रदता खतरे में है।

इसके जवाब में, भारत ने 9 मई को डब्ल्यूटीओ को औपचारिक रूप से सूचित किया था कि यदि अमेरिका इन शुल्कों को वापस नहीं लेता है या भारत को अधिमान्य व्यवहार प्रदान नहीं करता है, तो वह अमेरिकी आयातों पर जवाबी शुल्क लगाएगा। भारत का प्रस्ताव था कि वह लगभग 7.6 बिलियन डॉलर मूल्य के अमेरिकी उत्पादों पर शुल्क लगाएगा, जिससे अनुमानित 1.91 बिलियन डॉलर का शुल्क संग्रह होगा, जो भारतीय निर्यात को हुए नुकसान के बराबर होगा। भारत ने चेतावनी दी थी कि यह 30 दिनों के बाद, यानी 8 जून से प्रभावी हो सकता है।

अमेरिका का रुख और आगे का रास्ता:
अमेरिका ने 22 मई को डब्ल्यूटीओ में अपने जवाब में भारत की इस अधिसूचना को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि उसका प्रस्तावित प्रतिशोधात्मक कदम बहुपक्षीय व्यापार नियमों के अनुरूप नहीं है। अमेरिका ने दोहराया कि उसके धातु शुल्क “सुरक्षा उपाय” नहीं हैं, और इसलिए भारत के पास “सुरक्षा उपायों पर समझौते” के अनुच्छेद 8.2 के तहत रियायतें या अन्य दायित्वों को निलंबित करने का कोई आधार नहीं है। अमेरिका ने इस मुद्दे पर भारत के साथ किसी भी द्विपक्षीय चर्चा से भी इनकार कर दिया है।

भारत के विकल्प और संभावित प्रतिशोध:
अमेरिका द्वारा अपनी डब्ल्यूटीओ अधिसूचना को खारिज किए जाने और चर्चा से इनकार करने के बाद, भारत के पास अब जवाबी कार्रवाई करने के अलावा कुछ ही विकल्प बचे हैं। सूत्रों के अनुसार, भारत अमेरिकी आयातों जैसे बादाम, अखरोट और कुछ अन्य धातु उत्पादों पर आनुपातिक रूप से उच्च सीमा शुल्क लगाने पर विचार कर सकता है। अतीत में भी, 2018 में जब अमेरिका ने इसी तरह के शुल्क लगाए थे, तो भारत ने जून 2019 में 28 अमेरिकी उत्पादों पर सीमा शुल्क लगाकर जवाबी कार्रवाई की थी, जिसमें बादाम और अखरोट जैसे उत्पाद शामिल थे।

यह घटना ऐसे समय में हुई है जब भारत और अमेरिका एक द्विपक्षीय व्यापार समझौते (BTA) के तहत “अर्ली हार्वेस्ट” सौदे को अंतिम रूप देने के लिए बातचीत कर रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि अमेरिका इन वार्ताओं में भारत को धातु शुल्कों पर कोई तरजीही उपचार नहीं देता है, तो भारत प्रतिशोधात्मक कदम उठा सकता है। इस सप्ताह एक अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल के भारत आने की उम्मीद है ताकि वार्ता को आगे बढ़ाया जा सके।

निष्कर्ष:
यह व्यापार विवाद दोनों देशों के बीच व्यापार संबंधों में एक महत्वपूर्ण चुनौती प्रस्तुत करता है। जहां अमेरिका अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा के आधार पर अपने फैसले को सही ठहरा रहा है, वहीं भारत अपने निर्यातकों के हितों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या कूटनीतिक बातचीत से इस गतिरोध को तोड़ा जा सकता है, या भारत को अपने आर्थिक हितों की रक्षा के लिए प्रतिशोधात्मक शुल्क लगाने की दिशा में आगे बढ़ना होगा। यह घटना वैश्विक व्यापार में बढ़ते संरक्षणवाद और विभिन्न देशों के बीच व्यापार तनावों की एक और मिसाल है।

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