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विश्वदीपक त्रिखा (71) लगभग 50 वर्षों से थिएटर से जुड़े हुए हैं। उन्होंने अपना सफर की शुरुवात 1970 से गुरुग्राम में अपने पहले नाटक के मंचन के रूप में किया था। तब से लेकर आज तक वह 500 से अधिक नाटकों में अभिनय कर चुके हैं।

कोविड-19 महामारी के बाद, जब देश और दुनिया भर में लाखों लोगों की मौत के कारण निराशा का माहौल था, तब रोहतक के विश्वदीपक त्रिखा ने रंगमंच के जरिए लोगों में उम्मीद की रोशनी बिखेरी। कोरोना के डर को दूर करने के लिए उन्होंने अपनी सप्तक कल्चरल सोसायटी के सहयोग से ‘घर फूंक थिएटर’ की शुरुआत की। उन्होंने दिल्ली, यूपी, उत्तराखंड, बंगाल और राजस्थान से कलाकारों को बुलाकर नाटक आयोजित किए, और यह सिलसिला आज भी जारी है। सप्तक सोसायटी अब तक 100 से अधिक शो कर चुकी है।

हरियाणा कला परिषद के पूर्व निदेशक और रंगकर्मी विश्वदीपक त्रिखा बताते हैं कि कोविड-19 के दौरान जब सब कुछ ठप हो गया था, तब लोगों में कोरोना को लेकर निराशा फैल रही थी। इसी बीच उन्होंने 15-20 कलाकारों के साथ सप्तक कल्चरल सोसायटी बनाई और 2021 में आईएमए हॉल में पहला शो आयोजित किया। इस शो में बंगाल से आईं कलाकार मोनालिसा ने ‘भोरेर आसेस’ नामक सोलो प्ले किया। इसके बाद, उनके साथी कलाकारों ने रोहतक और आसपास के शहरों में शो करना शुरू किया, जो अब तक जारी है।

लगभग 50 वर्षो से थिएटर की दुनिआ से जुड़े हैं विश्वदीपक:
विश्वदीपक त्रिखा (71) लगभग 50 वर्षों से थिएटर से जुड़े हुए हैं। उन्होंने 1970 में गुरुग्राम में अपने पहले नाटक का मंचन किया था। अब तक वे 500 से अधिक नाटकों में अभिनय कर चुके हैं। वे दिवंगत अभिनेता सतीश कौशिक की फिल्म ‘छोरियां छोरों से कम नहीं होती’ में अभिनय कर चुके हैं। इसके अलावा, वे ‘प्रेमी रामफल हरियाणवी’, ‘जुर्म की दास्तान’ और ‘मुख्यमंत्री’ जैसे लोकप्रिय शो का हिस्सा रह चुके हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर आधारित शो ‘मुख्यमंत्री’ में उन्होंने योगी के पिता की भूमिका निभाई थी।

विश्वदीपक ने इंटरनेशनल थिएटर फेस्टिवल में भी भाग लिया और एनएसडी के लिए दिल्ली में दो तथा नॉर्थ ईस्ट में पांच शो किए हैं। वे एनएसडी के भारत रंग महोत्सव की चयन समिति के सदस्य भी रह चुके हैं। इसके अलावा, उन्होंने 2008 से 2014 तक हरियाणा कला परिषद के निदेशक के रूप में कार्य किया।

गधे की बरात – उनका लोकप्रिय नाटक:
विश्वदीपक का सबसे लोकप्रिय नाटक ‘गधे की बरात’ है, जो देशभर में 350 से अधिक बार मंचित हो चुका है। इसके अलावा, सप्तक कल्चरल सोसायटी के साथ उन्होंने ‘बेचारा भगवान’, ‘कुकुरमुत्ते’, ‘तीन सुकरात’, ‘अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी’, ‘इतिहास चक्र’, ‘त्रिशंकु’, ‘सिंहासन खाली है’, ‘जुलूस’, ‘रस गंधर्व’, ‘अंधों का हाथी’, ‘आगत की प्रतीक्षा’, ‘एक तमाशा अच्छा खासा’, ‘बकरी’, ‘बीवियों का मदरसा’, ‘सैयां भए कोतवाल’, ‘एक था गधा उर्फ अलादाद खान’, ‘अंधेर नगरी’, ‘एक गधे की आत्मकथा’, ‘किस्सागोई’, ‘दयाशंकर की डायरी’, ‘डेढ़ इंच ऊपर’, और ‘वर्दी’ जैसे नाटकों का मंचन किया है।

विश्वदीपक का मानना है कि रंगमंच समाज में सकारात्मक बदलाव ला सकता है, और वे अब भी इस दिशा में काम कर रहे हैं, ताकि थिएटर के माध्यम से लोगों तक सामाजिक संदेश पहुंचाया जा सके।

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