
तेलंगाना में मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी की अगुवाई वाली कांग्रेस सरकार हैदराबाद विश्वविद्यालय (UoH) के छात्रों के विरोध प्रदर्शन के कारण दबाव में आ गई है। यह विवाद कैम्पस के पास की 400 एकड़ भूमि को लेकर है, जिसे सरकार “विकास” के लिए नीलाम करना चाहती है। विपक्षी दल भारत राष्ट्र समिति (BRS) और भारतीय जनता पार्टी (BJP) इस मुद्दे को लेकर कांग्रेस सरकार पर हमलावर हैं।
कांग्रेस सांसद चमला किरण कुमार ने इस विवाद को “राजनीतिक साजिश” करार दिया और कहा कि सरकार छात्रों से बातचीत करने को तैयार है। उन्होंने आरोप लगाया कि BRS खुद इस भूमि के स्वामित्व के लिए अदालत में लड़ चुकी थी और अब जब कांग्रेस सरकार ने यह मामला जीता, तो वह इसका विरोध कर रही है।
नीलामी को लेकर विवाद क्यों?
रेवंत रेड्डी सरकार ने तेलंगाना इंडस्ट्रियल इंफ्रास्ट्रक्चर कॉरपोरेशन (TGIIC) के माध्यम से 400 एकड़ भूमि की नीलामी करने का फैसला किया। पर्यावरणविदों ने इसे “वन भूमि” बताते हुए तेलंगाना उच्च न्यायालय में याचिका दायर की और इसे “राष्ट्रीय उद्यान” घोषित करने की मांग की।
उच्चतम न्यायालय ने 1996 के एक फैसले में कहा था कि किसी भी हरित क्षेत्र को वन माना जाएगा, चाहे वह राजस्व रिकॉर्ड में अधिसूचित हो या नहीं। इस फैसले के आधार पर, पर्यावरण कार्यकर्ताओं का कहना है कि सरकार को इस भूमि पर कोई निर्माण नहीं करना चाहिए।
रेवंत रेड्डी का जवाब
26 मार्च को विधानसभा में बोलते हुए रेवंत रेड्डी ने इन विरोध प्रदर्शनों को “राजनीतिक” करार दिया और आरोप लगाया कि BRS सरकार को बदनाम करने के लिए आंदोलन को भड़का रही है। उन्होंने कहा,
“इस क्षेत्र में न तो बाघ हैं और न ही हिरण, बस कुछ चालाक लोमड़ियां हैं जो विकास कार्यों में बाधा डालने की कोशिश कर रही हैं।”
कांग्रेस सरकार ने यह भी दावा किया कि यह भूमि कभी भी “वन भूमि” के रूप में राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज नहीं थी और 1974 में इसे विश्वविद्यालय के लिए आवंटित किया गया था।
छात्रों और पर्यावरणविदों की चिंताएं
- विश्वविद्यालय और वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर (WWF) इंडिया के संयुक्त अध्ययन में पाया गया कि यह क्षेत्र 455 प्रजातियों के वनस्पतियों और जीवों का घर है।
- यहां 237 प्रकार के पक्षी, 15 स्तनधारी प्रजातियां और एक दुर्लभ “स्टार कछुआ” पाया जाता है, जो संरक्षित प्रजातियों में शामिल है।
- छात्रों का कहना है कि यह भूमि विश्वविद्यालय के विस्तार के लिए जरूरी है, क्योंकि भविष्य में संस्थान 5,000 की जगह 25,000 छात्रों को प्रवेश देने की योजना बना रहा है।
विपक्ष की तीखी आलोचना
- BRS नेता दासोजु श्रवण ने सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि “यह केवल रियल एस्टेट प्रोजेक्ट को बढ़ावा देने का प्रयास है”। उन्होंने सवाल उठाया कि अगर सरकार को विकास कार्य करना ही था तो “फ्यूचर सिटी” प्रोजेक्ट के लिए अधिग्रहित 45,000 एकड़ भूमि का उपयोग क्यों नहीं किया?”
- BJP विधायक अलेटी महेश्वर रेड्डी ने कहा,
“जब रेवंत रेड्डी विपक्ष में थे, तो वह सरकारी जमीन बेचने के खिलाफ थे। अब मुख्यमंत्री बनकर खुद वही कर रहे हैं। कांग्रेस और BRS में कोई अंतर नहीं है।”
क्या कहता है सुप्रीम कोर्ट का फैसला?
मई 2024 में उच्चतम न्यायालय ने इस भूमि पर तेलंगाना सरकार के स्वामित्व को सही ठहराया। हालांकि, यह विवाद अब भी उच्च न्यायालय में लंबित है और अगली सुनवाई 7 अप्रैल को होगी।
सरकार की रणनीति और आगे की राह
सरकार के एक वरिष्ठ नेता ने संकेत दिया कि यदि छात्रों की चिंताएं वास्तव में वैध पाई जाती हैं, तो सरकार परियोजना पर पुनर्विचार कर सकती है। इससे पहले लागचर्ला भूमि विवाद में सरकार ने जनता के विरोध के चलते कदम पीछे खींच लिए थे।
निष्कर्ष
हैदराबाद विश्वविद्यालय के छात्र, पर्यावरणविद और विपक्षी दल इस भूमि की नीलामी के खिलाफ खड़े हैं। कांग्रेस सरकार इस मामले को “राजनीतिक मुद्दा” बता रही है, लेकिन विरोध प्रदर्शन थमने के आसार नहीं दिख रहे। अब 7 अप्रैल को हाईकोर्ट की सुनवाई इस विवाद का भविष्य तय करेगी।