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नई दिल्ली: मुस्लिम बुद्धिजीवियों के संगठन ‘भारत फर्स्ट’ ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 का खुलकर समर्थन किया है। संगठन ने इस विधेयक को पारदर्शिता, जवाबदेही और जनहित की दिशा में एक “बेहद सामयिक व जरूरी” कदम बताते हुए कहा है कि यह कानून भारत की मस्जिदों, कब्रिस्तानों, मदरसों, दरगाहों और सामाजिक कल्याण के लिए दान की गई अचल संपत्तियों जैसी वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में लंबे समय से चली आ रही दुर्व्यवस्था, मुकदमों और अनियमितताओं को दूर करने के लिए एक व्यवस्थित समाधान प्रस्तुत करता है।

गुमराह करने के प्रयासों को खारिज
‘भारत फर्स्ट’ ने उन कुछ मुस्लिम नेताओं पर भी निशाना साधा है, जो “कौम का रहनुमा बनने के फेर में” इस विधेयक पर मुसलमानों को गुमराह कर रहे हैं। संगठन ने स्पष्ट किया कि ऐसे नेता यह भ्रांति फैला रहे हैं कि सरकार वक्फ की जमीन हड़पना चाहती है। ‘भारत फर्स्ट’ ने बताया कि विधेयक की धारा 91-ख में स्पष्ट प्रावधान है कि किसी वक्फ संपत्ति का अधिग्रहण तभी हो सकता है जब वक्फ बोर्ड की मंजूरी हो और उस संपत्ति की पूरी कीमत बाजार दर से वक्फ विकास कोष में जमा की जाए। महत्वपूर्ण बात यह है कि मालिकाना हक राज्य को हस्तांतरित नहीं होता।

धार्मिक स्वतंत्रता पर चोट के आरोपों का खंडन
‘भारत फर्स्ट’ के राष्ट्रीय संयोजक और अधिवक्ता शीराज़ क़ुरैशी ने एक सम्मेलन में इस विधेयक से धार्मिक स्वतंत्रता पर चोट लगने के आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि यह संशोधन मुख्य रूप से ऑडिट, डिजिटलीकरण और सीईओ की योग्यता जैसे प्रशासनिक पारदर्शिता से जुड़ा है और नमाज़, इमामत या अन्य मजहबी रस्मों में किसी प्रकार का कोई हस्तक्षेप नहीं करता है। कुरैशी ने सुप्रीम कोर्ट की 15 मई 2025 की सुनवाई का भी हवाला दिया, जिसमें अदालत ने इसी बिंदु को रेखांकित किया था कि वह केवल अंतरिम राहत पर सुनवाई कर रही है, न कि कानून के निलंबन पर।

विधेयक से मुस्लिम पहचान को खतरे के आरोपों को कुरैशी ने “हास्यास्पद” करार दिया। उन्होंने तर्क दिया कि तुर्किये, मलेशिया और खाड़ी देशों के औकाफ मॉडल में भी इसी तरह के ऑनलाइन रजिस्टर और सामाजिक-कल्याण कोटे के प्रावधान हैं, और जब वहां मुस्लिम पहचान को कोई खतरा नहीं हुआ तो भारत में ऐसा कैसे हो सकता है।

विरोध के पीछे छिपे स्वार्थ और जानकारी का अभाव
संगठन ने विधेयक के विरोध को खारिज करते हुए कहा कि कुछ लोग आगामी चुनावों में लाभ उठाने के लिए भावनाओं को भड़का रहे हैं। इस विरोध के पीछे एक बड़ा कारण यह भी है कि बोर्ड-स्तर पर पेशेवर भर्ती से उन लोगों की पकड़ ढीली पड़ सकती है जो वर्षों से बिना योग्यता के पदों पर बने हुए हैं।

‘भारत फर्स्ट’ ने यह भी कहा कि इस कानून के बारे में जानकारी का अभाव है और अधिकांश लोग डिजिटल प्लेटफॉर्म, कैग ऑडिट और 50% सामाजिक व्यय जैसे इसके महत्वपूर्ण प्रावधानों को पढ़े बिना ही इसका विरोध कर रहे हैं।

पारदर्शिता, डिजिटलीकरण और सामुदायिक कल्याण पर जोर
संगठन ने नए वक्फ कानून के सकारात्मक पहलुओं को उजागर किया:

  • पारदर्शिता और डिजिटलीकरण: नया कानून पारदर्शिता और डिजिटलीकरण को बढ़ावा देता है। इसमें “बेनामी” यानी दोहरी प्रविष्टियों पर रोक लगेगी और आम नागरिक भी संपत्ति का सत्यापन कर सकेंगे।
  • CAG ऑडिट: 100 करोड़ रुपए से अधिक की सालाना आय वाले वक्फों के वित्तीय ब्योरे अब नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) द्वारा ऑडिट योग्य होंगे, जिससे वित्तीय जवाबदेही बढ़ेगी।
  • सामुदायिक कल्याण: नए कानून में वक्फ की 50% आय का अब शिक्षा, वजीफों, स्वास्थ्य शिविर और महिला-स्वरोजगार जैसे सामुदायिक कार्यों पर खर्च करना अनिवार्य किया गया है। इसके उल्लंघन पर दोगुना जुर्माने का प्रावधान है।
  • ‘अमानत’ की बहाली: विधेयक में ‘अमानत’ को पुनर्स्थापित करने का अधिकार भी दिया गया है। इसका अर्थ है कि यदि किसी संपत्ति का धार्मिक स्वरूप बदल दिया गया है तो सीईओ को नोटिस देकर 30 दिन में उसका मूल स्वरूप बहाल करना होगा। इसमें किसी तरह की हीलाहवाली पर जिला मजिस्ट्रेट सीधे हस्तक्षेप करने के लिए बाध्य होंगे।

‘भारत फर्स्ट’ ने अंत में कहा कि अनुच्छेद 25-30 धार्मिक स्वतंत्रता के साथ राज्य के “सांविधानिक पितृत्व” को संतुलित करते हैं। प्रशासनिक निगरानी बढ़ाने से अल्पसंख्यकों के अधिकार बाधित नहीं होते, बल्कि इससे भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन से छुटकारा मिलता है और धार्मिक स्वतंत्रता को बढ़ावा मिलता है। तुर्किये, मलेशिया और सऊदी अरब में “जन सेवा कोष” (औकाफ) मॉडल रिपोर्टें भी समान डिजिटल-पारदर्शी व्यवस्थाओं का सुझाव देती हैं।

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