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by-Ravindra Sikarwar

बेंगलुरु: कर्नाटक सरकार ने एक बार फिर सभी सरकारी विभागों को कड़े निर्देश जारी किए हैं कि वे अपने प्रशासनिक कामकाज के लिए केवल कन्नड़ भाषा का उपयोग करें। इन निर्देशों का पालन न करने पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की चेतावनी भी दी गई है। यह कदम राज्य की भाषा और संस्कृति को बढ़ावा देने और शासन में भाषाई एकरूपता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से उठाया गया है।

नए निर्देश और सख्ती:
राज्य सरकार ने एक परिपत्र जारी किया है जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि सरकारी कार्यालयों, बोर्डों, निगमों और अन्य सार्वजनिक संस्थाओं में सभी आधिकारिक पत्राचार, रिपोर्ट, ज्ञापन और संचार केवल कन्नड़ में होने चाहिए। पहले से लागू नियमों को दोहराते हुए, इन निर्देशों को और भी सख्त बनाया गया है।

उल्लंघन पर कार्रवाई की चेतावनी:
परिपत्र में यह भी कहा गया है कि यदि कोई अधिकारी या कर्मचारी इन निर्देशों का पालन नहीं करता है, तो उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी। यह चेतावनी बताती है कि सरकार इस बार नियमों को सख्ती से लागू करने के लिए कितनी गंभीर है। यह कदम यह सुनिश्चित करने के लिए उठाया गया है कि सरकार के सभी स्तरों पर कन्नड़ का उपयोग बिना किसी अपवाद के हो।

भाषा अधिनियम का पालन:
यह निर्देश कर्नाटक राजभाषा अधिनियम, 1963 के प्रावधानों के अनुरूप हैं, जिसमें सरकारी कामकाज में कन्नड़ के उपयोग को अनिवार्य बनाया गया था। हालांकि, समय-समय पर यह देखा गया है कि कुछ विभाग और अधिकारी अंग्रेजी या अन्य भाषाओं का उपयोग करते रहे हैं, जिससे यह कदम उठाना जरूरी हो गया।

इसका क्या मतलब है?
इस फैसले का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि राज्य का प्रशासन स्थानीय भाषा में हो, जिससे आम लोगों को सरकारी सेवाओं और सूचनाओं तक पहुंचने में आसानी हो। यह भाषा के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता को भी दर्शाता है। राज्य सरकार ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह अपनी भाषाई विरासत की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है और प्रशासन को लोगों की भाषा में सुलभ बनाना चाहती है।

यह सख्ती कर्नाटक में भाषा नीति को लेकर सरकार के दृढ़ रुख को दर्शाती है।

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