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by-Ravindra Sikarwar

हाल ही में, अमेरिकी वाणिज्य सचिव हॉवर्ड लुटनिक के भारत के रूस के साथ रक्षा संबंधों और BRICS समूह में उसकी सक्रिय भूमिका पर दिए गए बयान ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हलचल मचा दी है। यह बयान वाशिंगटन में यूएस-इंडिया स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप फोरम के आठवें वार्षिक नेतृत्व शिखर सम्मेलन के दौरान आया, जहाँ लुटनिक भारत और अमेरिका के बीच प्रस्तावित व्यापार समझौते पर चर्चा कर रहे थे। उनके बयान ने भारत की संप्रभुता और स्वतंत्र विदेश नीति पर फिर से बहस छेड़ दी है।

लुटनिक के बयान का मुख्य बिंदु:
लुटनिक ने खुलकर कहा कि भारत द्वारा रूस से सैन्य उपकरण खरीदना और BRICS का हिस्सा बनकर अमेरिकी डॉलर की वैश्विक बादशाहत को चुनौती देना अमेरिका को “परेशान” करता है। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि यह “अमेरिका में दोस्त बनाने और लोगों को प्रभावित करने का तरीका नहीं है।”

रूस से रक्षा खरीद पर आपत्ति:
लुटनिक ने विशेष रूप से भारत की रूस से रक्षा खरीद पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा, “आप आम तौर पर अपने सैन्य उपकरण रूस से खरीदते हैं। अगर आप रूस से अपने हथियार खरीदने जाते हैं तो यह अमेरिका की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का एक तरीका है।” उन्होंने आगे कहा कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस मुद्दे को सीधे तौर पर उठाया है और उन्हें लगता है कि भारत अब अमेरिका से सैन्य उपकरण खरीदने की दिशा में आगे बढ़ रहा है, हालांकि इसमें अभी लंबा सफर तय करना है।

भारत की सेना का एक बड़ा हिस्सा अभी भी रूसी मूल के हथियारों पर निर्भर है। भारत ने रूस से एस-400 एयर डिफेंस सिस्टम सहित कई बड़े रक्षा सौदे किए हैं, जिन पर अमेरिका ने पूर्व में प्रतिबंध लगाने की धमकी भी दी थी। भारत ने हमेशा इन सौदों को अपने राष्ट्रीय सुरक्षा हितों के लिए आवश्यक बताया है।

BRICS में भारत की भूमिका पर चिंता:
लुटनिक ने BRICS समूह में भारत की सक्रिय भागीदारी पर भी अपनी असहमति व्यक्त की। BRICS (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) एक ऐसा समूह है जो वैश्विक दक्षिण के हितों को बढ़ावा देता है और पश्चिमी प्रभुत्व वाली वित्तीय व्यवस्था, विशेष रूप से अमेरिकी डॉलर के एकाधिकार, के विकल्प की तलाश करता है। BRICS देश स्थानीय मुद्राओं में व्यापार को बढ़ावा दे रहे हैं, जिसे अमेरिका अपने लिए खतरा मानता है। लुटनिक ने स्पष्ट रूप से कहा कि “डॉलर और डॉलर के आधिपत्य का समर्थन न करना” अमेरिका में दोस्त बनाने का तरीका नहीं है।

भारत की प्रतिक्रिया और भविष्य के संबंध:
भारत ने हमेशा अपनी विदेश नीति में बाहरी दबाव को अस्वीकार किया है और स्पष्ट किया है कि उसकी विदेश नीति स्वतंत्र और संतुलित है, जिसमें राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता दी जाती है। भारत ने बार-बार यह भी स्पष्ट किया है कि वह बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था का समर्थक है और वैश्विक दक्षिण के नेतृत्व में अपनी भूमिका निभाना चाहता है। रूस के साथ मजबूत रक्षा संबंध और BRICS जैसी बहुपक्षीय संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी इसी नीति का हिस्सा है।
लुटनिक ने व्यापार समझौते को लेकर भी आशावादी रुख दिखाया और कहा कि वे एक ऐसे बिंदु पर पहुंच चुके हैं जो “वास्तव में दोनों देशों के लिए काम करता है।” हालांकि, भारत के कुछ “संरक्षणवादी” रवैये, जैसे कुछ वस्तुओं पर उच्च टैरिफ, पर भी उन्होंने टिप्पणी की।

निष्कर्ष:
अमेरिकी वाणिज्य सचिव का बयान भारत-अमेरिका संबंधों में एक जटिल चुनौती प्रस्तुत करता है। यह अमेरिका की असहजता को दर्शाता है कि भारत एक तरफ उसके साथ मजबूत संबंध बनाना चाहता है, वहीं दूसरी तरफ वह अपने पारंपरिक सहयोगी रूस के साथ रक्षा संबंधों को बनाए रखता है और BRICS जैसे मंचों पर सक्रिय रहता है, जो अमेरिकी प्रभुत्व को चुनौती देते हैं। यह भारत के लिए एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक संतुलन की मांग करता है, जहाँ उसे अपने राष्ट्रीय हितों और स्वतंत्र विदेश नीति को बनाए रखते हुए अमेरिका के साथ व्यापारिक और रणनीतिक साझेदारी को भी मजबूत करना है।

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