By: Ravindra Sikarwar
नई दिल्ली: 2017 के चर्चित उन्नाव रेप केस में दोषी ठहराए गए पूर्व भाजपा विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। सोमवार (29 दिसंबर 2025) को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें सेंगर की उम्रकैद की सजा को निलंबित कर सशर्त जमानत दी गई थी। अब सेंगर जेल में ही रहेंगे और उनकी रिहाई पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। कोर्ट ने इस मामले में गंभीरता को देखते हुए यह फैसला सुनाया।
यह मामला 2017 का है, जब उन्नाव में एक नाबालिग लड़की के साथ सामूहिक दुष्कर्म का आरोप लगा था। कुलदीप सिंह सेंगर, जो उस समय उत्तर प्रदेश के बांगरमऊ से विधायक थे, पर मुख्य आरोपी के रूप में मुकदमा चला। दिसंबर 2019 में दिल्ली की एक ट्रायल कोर्ट ने उन्हें भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (दुष्कर्म) और पॉक्सो एक्ट की संबंधित धाराओं के तहत दोषी ठहराया। कोर्ट ने उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई साथ ही 25 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया। इस सजा के खिलाफ सेंगर ने दिल्ली हाईकोर्ट में अपील दायर की थी।
23 दिसंबर 2025 को दिल्ली हाईकोर्ट ने सेंगर की अपील लंबित रहने तक उनकी सजा को निलंबित कर दिया और सशर्त जमानत दे दी। हाईकोर्ट ने तर्क दिया कि सेंगर ने पहले ही सात साल से अधिक समय जेल में बिता लिया है और वह जुर्म के समय ‘लोक सेवक’ की परिभाषा में नहीं आते। जमानत की शर्तों में शामिल था कि वे पीड़िता के निवास स्थान से 5 किलोमीटर की दूरी बनाए रखें और पीड़िता या उसके परिवार को किसी तरह की धमकी न दें। हालांकि, एक अलग मामले में पीड़िता के पिता की हिरासत में मौत के लिए सेंगर को 10 साल की सजा मिली हुई है, इसलिए हाईकोर्ट के फैसले के बावजूद उनकी तत्काल रिहाई नहीं होनी थी।
हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका (SLP) दायर की। CBI ने इसे एक ‘अत्यंत भयावह’ मामला बताते हुए जमानत का विरोध किया। सोमवार को चीफ जस्टिस सूर्या कांत, जस्टिस जे.के. माहेश्वरी और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने मामले की सुनवाई की। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने CBI की ओर से दलीलें पेश कीं। उन्होंने कहा कि यह गंभीर अपराध है, जिसमें पॉक्सो एक्ट और IPC की कठोर धाराएं लागू होती हैं, जिनमें न्यूनतम सजा 20 साल से लेकर उम्रकैद तक है।
पीठ ने दोनों पक्षों को सुना और हाईकोर्ट के आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी। चीफ जस्टिस ने टिप्पणी की कि पॉक्सो एक्ट में ‘लोक सेवक’ की परिभाषा को लेकर असमानता नजर आती है। उन्होंने सवाल उठाया कि एक पुलिसकर्मी को लोक सेवक माना जाता है, लेकिन निर्वाचित विधायक को क्यों नहीं? कोर्ट ने माना कि मामले में कई कानूनी सवाल उठते हैं, जिन पर विस्तृत विचार की जरूरत है। साथ ही, सेंगर पहले से ही एक अन्य मामले में दोषी हैं और जेल में हैं, इस विशेष परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए रोक लगाई गई।
सुप्रीम कोर्ट ने सेंगर को नोटिस जारी कर चार हफ्ते में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। मामले की अगली सुनवाई जनवरी के अंतिम सप्ताह में होगी। इस फैसले से पीड़िता और उसके परिवार को राहत मिली है। पीड़िता ने पहले हाईकोर्ट के फैसले पर निराशा जताई थी और सुप्रीम कोर्ट पर भरोसा व्यक्त किया था। कई महिला संगठनों और कार्यकर्ताओं ने भी हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ प्रदर्शन किए थे, जिसमें जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन शामिल था।
यह मामला न केवल अपराध की गंभीरता बल्कि सत्ता के दुरुपयोग और राष्ट्रीय प्रतीकों से जुड़े कानूनी मुद्दों को भी उजागर करता है। पॉक्सो एक्ट जैसे कानूनों का उद्देश्य नाबालिगों की रक्षा करना है, और ऐसे मामलों में जमानत या सजा निलंबन पर सख्ती बरतना जरूरी माना जाता है। सुप्रीम कोर्ट का यह अंतरिम आदेश न्याय प्रक्रिया में संतुलन बनाए रखने की दिशा में एक कदम है। फिलहाल, कुलदीप सिंह सेंगर जेल में ही रहेंगे और अंतिम फैसले का इंतजार किया जाएगा।
यह घटना एक बार फिर समाज में यौन अपराधों के खिलाफ सख्त कानूनों की जरूरत और पीड़ितों की सुरक्षा पर बहस छेड़ती है। उम्मीद है कि कोर्ट का अंतिम निर्णय न्याय के सिद्धांतों को मजबूत करेगा।
