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by-Ravindra Sikarwar

वाशिंगटन डी.सी. / न्यू जर्सी: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने एक बार फिर अपनी ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति को एक नई दिशा देते हुए वैश्विक बाजारों में हलचल मचा दी है। उन्होंने स्पष्ट किया है कि उनकी टैरिफ नीतियों का प्राथमिक उद्देश्य अब ‘स्नीकर्स और टी-शर्ट’ जैसे हल्के उपभोक्ता वस्तुओं का घरेलू विनिर्माण नहीं है, बल्कि ‘टैंक, उन्नत कंप्यूटर और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) से जुड़े उत्पाद’ जैसे भारी उद्योग और उच्च-तकनीकी रक्षा उपकरणों के उत्पादन को बढ़ावा देना है।

‘टी-शर्ट नहीं, टैंक’: ट्रम्प के बयान का विस्तृत विश्लेषण
रविवार, 25 मई, 2025 को न्यू जर्सी में अपने एयर फ़ोर्स वन विमान में चढ़ने से पहले पत्रकारों से बात करते हुए, राष्ट्रपति ट्रम्प ने अमेरिकी औद्योगिक प्राथमिकताओं पर अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने 29 अप्रैल को ट्रेजरी सचिव स्कॉट बेसेंट (जो वित्त मंत्री के समकक्ष हैं) द्वारा की गई उन टिप्पणियों से सहमति व्यक्त की, जिसमें बेसेंट ने कहा था कि अमेरिका को “बढ़ते कपड़ा उद्योग” की आवश्यकता नहीं है। बेसेंट की इन टिप्पणियों की राष्ट्रीय कपड़ा संगठनों की परिषद ने तीखी आलोचना की थी।

ट्रम्प ने बेसेंट के रुख का समर्थन करते हुए कहा, “हम स्नीकर्स और टी-शर्ट बनाना नहीं चाह रहे हैं। हम सैन्य उपकरण बनाना चाहते हैं। हम बड़ी चीजें बनाना चाहते हैं। हम कंप्यूटर के साथ AI का काम करना चाहते हैं।” उन्होंने आगे स्पष्ट किया, “ईमानदारी से कहूं तो मैं टी-शर्ट बनाने के बारे में नहीं सोच रहा हूं। मैं मोजे बनाने के बारे में नहीं सोच रहा हूं। हम इसे अन्य स्थानों पर बहुत अच्छी तरह से कर सकते हैं। हम चिप्स और कंप्यूटर और कई अन्य चीजें, और टैंक और जहाज बनाना चाह रहे हैं।”

ट्रम्प का यह बयान अमेरिकी औद्योगिक नीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव का संकेत देता है। यह उनकी ‘अमेरिका फर्स्ट’ रणनीति का एक विस्तार है, जो देश की राष्ट्रीय सुरक्षा और तकनीकी आत्मनिर्भरता को प्राथमिकता देती है। उनका मानना है कि वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं पर अत्यधिक निर्भरता, विशेष रूप से उपभोक्ता वस्तुओं के लिए, अमेरिका को कमजोर करती है। इसके बजाय, वह रक्षा औद्योगिक आधार को मजबूत करने और महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों के घरेलू उत्पादन पर जोर दे रहे हैं।

टैरिफ नीति और वैश्विक व्यापार पर प्रभाव
राष्ट्रपति ट्रम्प ने दूसरी बार अमेरिकी राष्ट्रपति का पद संभालने के बाद से अपनी कठोर टैरिफ नीतियों से वैश्विक बाजारों को लगातार प्रभावित किया है। उन्होंने शुक्रवार, 23 मई को अपनी कड़ी टैरिफ नीति को फिर से लागू करने की धमकी दी थी, जिसमें 1 जून से यूरोपीय संघ के सामानों पर 50% टैरिफ लगाने की बात कही गई थी। हालांकि, बाद में उन्होंने इस समय सीमा को 9 जून तक के लिए टाल दिया।

यह धमकी यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन के उस बयान के ठीक बाद आई थी, जिसमें उन्होंने कहा था कि रविवार को ट्रम्प के साथ उनकी “अच्छी बातचीत” हुई। इससे यह स्पष्ट होता है कि ट्रंप व्यापार वार्ताओं में दबाव बनाने के लिए टैरिफ को एक उपकरण के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं।

ट्रम्प ने एप्पल जैसी बड़ी अमेरिकी कंपनियों को भी चेतावनी दी है। उन्होंने संकेत दिया है कि अमेरिकी उपभोक्ताओं द्वारा खरीदे गए सभी आयातित आईफोन पर 25% टैरिफ लगाया जा सकता है। यह कदम कंपनियों पर अपने उत्पादन को अमेरिका में वापस लाने का दबाव डालने के लिए डिज़ाइन किया गया है।

ट्रम्प के बयानों के निहितार्थ

  • राष्ट्रीय सुरक्षा पर जोर: ‘टैंक’ और ‘सैन्य उपकरण’ बनाने पर जोर सीधे तौर पर अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करने की उनकी इच्छा को दर्शाता है। उनका मानना है कि एक मजबूत घरेलू रक्षा उद्योग रणनीतिक स्वायत्तता के लिए महत्वपूर्ण है।
  • उच्च-तकनीकी विनिर्माण पर ध्यान: ‘कंप्यूटर के साथ AI का काम’ और ‘चिप्स’ बनाने की बात से पता चलता है कि ट्रम्प प्रशासन भविष्य के उद्योगों, विशेष रूप से उच्च-तकनीकी विनिर्माण और कृत्रिम बुद्धिमत्ता में अमेरिका को अग्रणी बनाए रखना चाहता है।
  • वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में परिवर्तन: ट्रम्प की नीतियां वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं को पुनर्गठित करने का प्रयास करती हैं, जिससे अमेरिका में अधिक उत्पादन हो सके, भले ही इसका मतलब कुछ उपभोक्ता वस्तुओं के लिए उच्च लागत हो।
  • टैरिफ एक कूटनीतिक उपकरण के रूप में: यूरोपीय संघ और एप्पल को दी गई चेतावनियों से स्पष्ट है कि ट्रम्प टैरिफ को केवल राजस्व उत्पन्न करने के लिए नहीं, बल्कि व्यापार समझौतों को फिर से आकार देने और अमेरिकी हितों को आगे बढ़ाने के लिए एक शक्तिशाली सौदेबाजी उपकरण के रूप में देखते हैं।

राष्ट्रपति ट्रम्प के ये बयान आगामी अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के लिए उनकी आर्थिक और विदेश नीति का एक स्पष्ट खाका प्रस्तुत करते हैं। यह देखना बाकी है कि इन नीतियों का अमेरिकी अर्थव्यवस्था और वैश्विक व्यापार संबंधों पर दीर्घकालिक प्रभाव क्या होगा।

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