by-Ravindra Sikarwar
डोनाल्ड ट्रम्प, अमेरिका के राष्ट्रपति, इजरायल-ईरान संघर्ष में अमेरिका की भूमिका को लेकर अगले दो हफ्तों के भीतर एक महत्वपूर्ण निर्णय लेने वाले हैं। व्हाइट हाउस ने यह जानकारी दी है, जिससे मध्य पूर्व में जारी तनाव और भी बढ़ने की आशंका है। इजरायल और ईरान के बीच पिछले एक सप्ताह से अधिक समय से भीषण संघर्ष जारी है, जिसमें दोनों देश एक-दूसरे पर मिसाइलों और ड्रोन से हमले कर रहे हैं।
वर्तमान स्थिति और ट्रंप का असमंजस:
यह संघर्ष इजरायल द्वारा ईरान के परमाणु ठिकानों पर हवाई हमले के बाद शुरू हुआ, जिसके जवाब में ईरान ने भी इजरायल पर मिसाइलें और ड्रोन दागे। इस बीच, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प इस बात पर विचार कर रहे हैं कि क्या अमेरिका को इस संघर्ष में शामिल होना चाहिए। उन्होंने पहले ही कहा है कि वह “हमला करेंगे भी, और नहीं भी”, जिससे उनके अंतिम निर्णय को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है।
व्हाइट हाउस के अनुसार, ट्रम्प हमेशा कूटनीतिक समाधान के पक्ष में रहे हैं और “शक्ति के माध्यम से शांति” के सिद्धांत में विश्वास करते हैं। हालांकि, उन्होंने यह भी स्पष्ट किया है कि यदि आवश्यकता पड़ी तो वह बल प्रयोग करने से पीछे नहीं हटेंगे। इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने भी इस बात पर जोर दिया है कि इजरायल ईरान की सभी परमाणु सुविधाओं पर हमला कर सकता है और ट्रम्प का इसमें शामिल होना पूरी तरह से उनका अपना निर्णय होगा।
ईरान और इजरायल के दावे:
ईरान का आरोप है कि इस संघर्ष को भड़काने में अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के महानिदेशक राफाएल ग्रोसी की दो बड़ी गलतियों का हाथ है। ईरान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता इस्माईल बकाई हमानेह ने कहा कि ग्रोसी की रिपोर्टिंग के आधार पर ही अमेरिका और यूरोपीय देशों ने ईरान के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया, जिसे इजरायल ने हमले का बहाना बना लिया। ईरान का दावा है कि IAEA अब निष्पक्ष नहीं है और NPT (परमाणु अप्रसार संधि) के दायरे में आने वाले देशों के अधिकारों को छीनने और गैर-NPT देशों (जैसे इजरायल) के हितों को साधने का एक साधन बन गया है।
अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की प्रतिक्रिया:
इस संघर्ष में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय भी बंटा हुआ नजर आ रहा है। जहां एक ओर रूस और चीन ने ईरान का समर्थन किया है, वहीं G7 देशों (इटली, अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, यूके, कनाडा और जापान) ने इजरायल का समर्थन करते हुए कहा है कि इजरायल को अपनी रक्षा करने का पूरा अधिकार है। पाकिस्तान जैसे कुछ मुस्लिम देश भी 21 मुस्लिम देशों को एकजुट करने का प्रयास कर रहे हैं ताकि वे ईरान के साथ खड़े हो सकें।
ट्रम्प के पिछले कार्यकाल और मध्य पूर्व नीति:
यह निर्णय ट्रम्प के लिए विशेष रूप से कठिन है क्योंकि उन्होंने अपने पिछले और वर्तमान कार्यकाल में अमेरिका को मध्य पूर्व के युद्धों से बाहर निकालने का वादा किया था। हालांकि, ईरान के परमाणु कार्यक्रम को खत्म करना उनकी प्राथमिकता बनी हुई है। उन्होंने इस क्षेत्र में अमेरिकी सैन्य उपस्थिति भी बढ़ाई है, जिससे यह सवाल उठ रहा है कि क्या वह ईरान के खिलाफ कोई ठोस सैन्य कार्रवाई करेंगे।
कुल मिलाकर, डोनाल्ड ट्रम्प का आने वाला फैसला मध्य पूर्व में इस संघर्ष की दिशा को तय कर सकता है और इसके वैश्विक परिणामों पर भी गहरा प्रभाव पड़ सकता है।