
डोनाल्ड ट्रंप ने चीन, वियतनाम और बांग्लादेश जैसे देशों पर भारी टैरिफ लगाए हैं, जिससे अमेरिकी बाजार में भारतीय कंपनियों के लिए प्रतिस्पर्धा के नए अवसर पैदा हुए हैं। भारत सरकार यदि सही नीतियां और श्रम सुधार लागू करती है, तो मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में तेजी से विकास हो सकता है और भारत ‘चाइना प्लस वन’ नीति का लाभ उठा सकता है।
हाइलाइट्स:
ट्रंप के टैरिफ से भारत को नए अवसर मिल सकते हैं।
टेक्सटाइल और लेदर उद्योग में प्रतिस्पर्धा बढ़ाने की आवश्यकता।
सरकार को सही नीतियों और सुधारों पर ध्यान देना होगा।
ट्रंप और व्यापार युद्ध:
डोनाल्ड ट्रंप ने तीन बार अमेरिकी राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ा और दो बार जीत हासिल की। 2016 और 2020 के चुनावों में उन्होंने ट्रेड वॉर को एक प्रमुख मुद्दा बनाया। पहले कार्यकाल में, उन्होंने चीन के खिलाफ ट्रेड वॉर की शुरुआत की थी। दूसरे कार्यकाल में, उन्होंने रेसिप्रोकल टैरिफ के तहत दुनिया भर के देशों से व्यापार युद्ध शुरू किया।
चीन पर भारी टैरिफ:
ट्रंप ने चीन पर पहले कार्यकाल में 25% टैरिफ और कुछ उपभोक्ता वस्तुओं पर 7.5% टैरिफ लगाया था, जिसे जो बाइडन ने बनाए रखा। अनुमान के मुताबिक, अमेरिका का कुल टैरिफ अब चीन पर 60% तक पहुंच चुका है। इस वजह से चीन के लिए अमेरिकी बाजार में प्रतिस्पर्धा करना मुश्किल हो गया है, क्योंकि सस्ते श्रम का लाभ पहले ही खत्म हो चुका है।
दूसरे देशों पर टैरिफ:
ट्रंप ने वियतनाम, थाईलैंड, इंडोनेशिया और बांग्लादेश जैसे देशों पर भी अधिक टैरिफ लगाए हैं, जो भारत से अधिक हैं। उदाहरण के लिए, बांग्लादेश पर 37% का टैरिफ लगाया गया है, जबकि पाकिस्तान पर 29% का आयात शुल्क है। यह स्थिति भारत के लिए एक मौका पैदा करती है, क्योंकि यहां पर टैरिफ दर 26% है, जो अन्य देशों की तुलना में कम है।
भारत को क्या अवसर मिल सकते हैं?
चीन पर बढ़े हुए टैरिफ के बाद ‘चाइना प्लस वन’ का विचार फिर से गर्माया है। इससे वियतनाम और थाईलैंड जैसे देशों ने लाभ उठाया है, लेकिन भारत अभी तक इस अवसर का पूरा लाभ नहीं उठा सका है। हालांकि, ट्रंप के हालिया टैरिफ निर्णय के बाद भारत के लिए एक नई संभावना सामने आई है। वियतनाम पर 46% और थाईलैंड पर 36% का आयात शुल्क है, जबकि भारत पर यह 26% है। यदि भारत सरकार सही नीतियां अपनाती है और आवश्यक सुधार करती है, तो मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में गति पकड़ी जा सकती है।
टेक्सटाइल और लेदर उद्योग में भारत का अवसर:
बांग्लादेश की टेक्सटाइल इंडस्ट्री अमेरिका को बड़े पैमाने पर निर्यात करती है, लेकिन ट्रंप के द्वारा लगाए गए 44% टैरिफ के कारण अब इस उद्योग के लिए अमेरिकी बाजार में प्रतिस्पर्धा करना कठिन होगा। भारत के लिए यह एक मौका है, क्योंकि भारतीय टेक्सटाइल कंपनियां अब इन देशों से बेहतर प्रतिस्पर्धा कर सकती हैं। इसके अलावा, लेदर गुड्स जैसे उत्पादों में भी भारत को लाभ मिल सकता है, जहां वियतनाम अमेरिकी बाजार में प्रमुख खिलाड़ी है।
सरकार को सुधारों की आवश्यकता:
भारत में श्रम कानूनों की सख्ती उद्योगों की प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता को बाधित करती है। यदि भारत सरकार श्रम सुधार करती है, तो टेक्सटाइल और लेदर जैसी कंपनियों के लिए कार्यबल को समायोजित करना आसान हो जाएगा। इसके अलावा, अगर सरकार कंपनियों को नया प्लांट स्थापित करने के लिए भूमि और अन्य सुविधाएं जल्दी और बिना किसी समस्या के उपलब्ध कराती है, तो ‘चाइना प्लस वन’ का पूरा लाभ मिल सकता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुनौती:
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पहले कार्यकाल से ही मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र को मजबूत करने का इरादा रहा है। ‘आत्मनिर्भर भारत’ और ‘मेक इन इंडिया’ जैसी पहलें इसी का हिस्सा हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने पहले कहा है कि जैसे ट्रंप के लिए ‘अमेरिका फर्स्ट’ है, वैसे ही उनके लिए ‘इंडिया फर्स्ट’ है। अब उनकी सरकार के सामने यह बड़ी चुनौती है कि वे ट्रंप के द्वारा लगाए गए टैरिफ को अवसर में बदलें और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को प्रोत्साहित करें।
निष्कर्ष:
भारत के पास अब ‘चाइना प्लस वन’ के तहत ट्रेड वॉर से उत्पन्न अवसरों का लाभ उठाने का एक अच्छा मौका है। हालांकि, इसके लिए सही नीतियों, श्रम सुधारों और सरकारी समर्थन की आवश्यकता होगी। अगर भारत सही दिशा में कदम बढ़ाता है, तो यह भविष्य में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की विकास दर को बढ़ाने और वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धा करने में सफल हो सकता है।