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पूर्वी चंपारण: प्यार और समर्पण की अनूठी मिसाल पेश करते हुए, रिटायर्ड पंचायत सेवक बाल किशुन राम ने अपनी दिवंगत पत्नी शारदा देवी की याद में एक भव्य मंदिर का निर्माण कराया है। इस मंदिर की लागत लगभग 60 लाख रुपये आई है। अपनी सफलता का श्रेय पत्नी के त्याग और समर्थन को देते हुए, उन्होंने उनकी स्मृति को चिरस्थायी बनाने के लिए यह कदम उठाया।

पत्नी की याद में मंदिर निर्माण, प्रतिमा की हुई स्थापना
पूर्वी चंपारण जिले के कल्याणपुर प्रखंड स्थित मधुचाई गांव में, बाल किशुन राम ने अपनी पत्नी शारदा देवी की प्रतिमा स्थापित कर विधिवत पूजा-अर्चना शुरू की है। बिहार सरकार के पर्यटन मंत्री राजू सिंह ने इस मंदिर का उद्घाटन किया और इसे पति-पत्नी के प्रेम का एक अद्वितीय प्रतीक बताया।

पति की सफलता में पत्नी का महत्वपूर्ण योगदान
बाल किशुन राम ने अपने जीवन संघर्ष को याद करते हुए बताया कि गरीबी के कारण उनकी पढ़ाई बीच में छूट गई थी और वे मजदूरी करने लगे। इस दौरान उनकी शादी शारदा देवी से हुई। शादी के बाद, पत्नी ने उन्हें पढ़ाई जारी रखने के लिए प्रेरित किया, जिसके बाद वे परीक्षा देकर ग्राम रक्षा दल में भर्ती हुए और मात्र 30 रुपये मासिक वेतन पर काम करने लगे।

1987 में पंचायत सेवक की भर्ती निकली, जिसमें उन्होंने सफलता प्राप्त की और सरकारी नौकरी पाई। वे मानते हैं कि उनकी शिक्षा और नौकरी उनकी पत्नी के बलिदान और प्रेरणा की देन थी।

पत्नी के निधन के बाद लिया मंदिर निर्माण का फैसला
लगभग छह साल पहले, बाल किशुन राम की पत्नी शारदा देवी का निधन हो गया। उनकी अनुपस्थिति ने बाल किशुन राम को भावनात्मक रूप से झकझोर दिया। तब उन्होंने ठान लिया कि वे पत्नी की स्मृति को अमर बनाने के लिए कुछ खास करेंगे।

रिटायरमेंट के बाद, उन्होंने मंदिर निर्माण की नींव रखी, और तीन साल की मेहनत के बाद यह भव्य मंदिर तैयार हुआ।

मंदिर निर्माण में खर्च हुए 60 लाख रुपये
बाल किशुन राम ने रिटायरमेंट के दौरान मिले पैसों से मंदिर का निर्माण कराया, जिसमें करीब 60 लाख रुपये की लागत आई।

समाज के लिए एक प्रेरणादायक उदाहरण
उद्घाटन समारोह में उपस्थित बिहार के पर्यटन मंत्री राजू सिंह ने इस मंदिर को पति-पत्नी के प्रेम और समर्पण का प्रतीक बताया। उन्होंने कहा कि सरकार इस अनोखे मंदिर को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिए हर संभव प्रयास करेगी।

निष्कर्ष
बाल किशुन राम द्वारा बनाया गया यह मंदिर न केवल प्रेम और समर्पण की एक अद्भुत मिसाल है, बल्कि यह समाज को यह संदेश भी देता है कि सच्चा प्यार कभी नहीं मरता। अपनी पत्नी की प्रेरणा और त्याग से एक मजदूर से सरकारी अधिकारी बनने तक की यात्रा तय करने वाले बाल किशुन राम ने यह साबित कर दिया कि सच्चा प्रेम सिर्फ साथ जीने का नाम नहीं, बल्कि अपने साथी की यादों को सहेजने का भी नाम है।

यह मंदिर आने वाली पीढ़ियों को प्रेम, त्याग और समर्पण की सीख देता रहेगा।

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