by-Ravindra Sikarwar
नई दिल्ली: भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने अपनी पूरी शक्ति पुनः प्राप्त कर ली है, क्योंकि तीन नए न्यायाधीशों ने गुरुवार को शपथ ग्रहण कर लिया है। इन नियुक्तियों के साथ, देश के सर्वोच्च न्यायालय में अब मुख्य न्यायाधीश सहित कुल 34 न्यायाधीश हो गए हैं, जो कि संविधान द्वारा निर्धारित अधिकतम संख्या है। यह घटनाक्रम न्यायपालिका के लिए एक महत्वपूर्ण क्षण है, क्योंकि यह मामलों के त्वरित निपटान और न्यायिक प्रक्रिया को मजबूत करने में सहायक होगा।
शपथ ग्रहण समारोह और नव-नियुक्त न्यायाधीश:
गुरुवार को हुए एक गरिमामय समारोह में, भारत के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एन. वी. अंजारिया, गुवाहाटी उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति विजय बिश्नोई और बंबई उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति अतुल एस. चंदुरकर को पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई। जस्टिस बिश्नोई ने हिंदी में शपथ ग्रहण किया, जो एक महत्वपूर्ण पहलू था। इन तीनों न्यायाधीशों की नियुक्ति ऐसे समय में हुई है जब सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों के तीन पद रिक्त थे, जो पूर्व मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय की सेवानिवृत्ति के कारण खाली हुए थे।
कॉलेजियम प्रणाली और नियुक्तियों की प्रक्रिया:
इन नियुक्तियों को सर्वोच्च न्यायालय कॉलेजियम की सिफारिशों के बाद केंद्रीय कानून मंत्रालय द्वारा अधिसूचित किया गया था। कॉलेजियम, जिसमें भारत के मुख्य न्यायाधीश और सर्वोच्च न्यायालय के चार वरिष्ठतम न्यायाधीश शामिल होते हैं, न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण के लिए नामों की सिफारिश करता है। यह प्रणाली भारत में न्यायिक स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए एक महत्वपूर्ण स्तंभ मानी जाती है। हालांकि, कॉलेजियम प्रणाली समय-समय पर पारदर्शिता और जवाबदेही को लेकर बहस का विषय भी रही है। इन नियुक्तियों के माध्यम से, सरकार ने कॉलेजियम की सिफारिशों पर त्वरित कार्रवाई की है, जिससे सर्वोच्च न्यायालय में आवश्यक संख्या बल बहाल हो गया है।
पूर्ण क्षमता का महत्व:
सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की पूर्ण क्षमता का होना कई कारणों से महत्वपूर्ण है। सबसे पहले, यह लंबित मामलों के बोझ को कम करने में मदद करता है। भारत में न्यायिक प्रणाली पर अत्यधिक दबाव है, और न्यायाधीशों की कमी अक्सर मामलों के निपटान में देरी का कारण बनती है। पूर्ण क्षमता के साथ, सर्वोच्च न्यायालय अधिक पीठें (बेंच) गठित कर सकता है, जिससे मामलों की सुनवाई तेज हो सकेगी। दूसरे, यह न्यायिक दक्षता और प्रभावशीलता को बढ़ाता है। विभिन्न प्रकार के मामलों को संभालने और संवैधानिक मुद्दों पर महत्वपूर्ण निर्णय लेने के लिए पर्याप्त संख्या में न्यायाधीशों का होना आवश्यक है।
भविष्य की संभावनाएं और चुनौतियां:
हालांकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि 9 जून को न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी की सेवानिवृत्ति के बाद सर्वोच्च न्यायालय में एक और रिक्ति उत्पन्न होगी। इसका अर्थ है कि सर्वोच्च न्यायालय को फिर से पूर्ण क्षमता बनाए रखने के लिए जल्द ही एक और नियुक्ति प्रक्रिया शुरू करनी होगी। न्यायपालिका की स्वतंत्रता और क्षमता को बनाए रखने के लिए यह निरंतर प्रक्रिया आवश्यक है।
यह नियुक्ति भारत के न्यायिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो देश के सर्वोच्च न्यायालय को अपनी संवैधानिक भूमिका को और अधिक प्रभावी ढंग से निभाने में सक्षम बनाएगी।