BY: Yoganand Shrivastva
ग्वालियर: हाईकोर्ट परिसर में डॉ. भीमराव अंबेडकर की प्रतिमा स्थापना को लेकर विवाद तेज हो गया है। बार एसोसिएशन ने इसके खिलाफ मोर्चा खोलते हुए विरोध प्रदर्शन किया, जबकि प्रतिमा स्थापना के पक्षधर अधिवक्ताओं का कहना है कि उन्हें विधिवत अनुमति प्राप्त है।
विरोध में बार एसोसिएशन का प्रदर्शन
शुक्रवार को बार एसोसिएशन के सदस्यों ने परिसर में रेड रिबन बांधकर प्रदर्शन किया और बिना अनुमति मूर्ति निर्माण को रोक दिया। एसोसिएशन का कहना है कि जब तक उचित अनुमति नहीं मिलती, तब तक कोई भी मूर्ति स्थापित नहीं की जानी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश का दिया हवाला
बार एसोसिएशन के अध्यक्ष पवन पाठक ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट किया है कि चौक-चौराहों और सार्वजनिक स्थलों पर महापुरुषों की मूर्तियां लगाने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। इसके बावजूद हाईकोर्ट परिसर में बिना आधिकारिक स्वीकृति के फाउंडेशन स्ट्रक्चर तैयार कर दिया गया। अधिकारियों से जब इस संबंध में जवाब मांगा गया, तो कोई संतोषजनक उत्तर नहीं मिला। इसी आधार पर एसोसिएशन ने प्रस्ताव पारित कर मूर्ति स्थापना का विरोध किया।
न्यायालय परिसर में सर्वधर्म समभाव की बात
बार एसोसिएशन का कहना है कि न्यायालय को किसी धर्म, जाति या व्यक्ति-विशेष से ऊपर रहकर कार्य करना चाहिए। इसीलिए न्यायालय परिसर में किसी भी महापुरुष की प्रतिमा नहीं लगाई जानी चाहिए, चाहे वह भगवान राम हो, भगवान कृष्ण हो या फिर डॉ. अंबेडकर।
मूर्ति स्थापना के समर्थकों की दलील
वहीं, प्रतिमा स्थापित करने का समर्थन कर रहे अधिवक्ता धर्मेंद्र कुशवाह ने कहा कि देश के सुप्रीम कोर्ट परिसर में भी डॉ. अंबेडकर की प्रतिमा स्थापित है। इसी तरह, मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की जबलपुर पीठ में भी उनकी मूर्ति लगाई गई है। ऐसे में ग्वालियर हाईकोर्ट में मूर्ति लगाने का विरोध गलत है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि प्रतिमा केवल आधिकारिक अनुमति मिलने के बाद ही स्थापित की जाएगी।
निष्कर्ष:
हाईकोर्ट परिसर में अंबेडकर प्रतिमा को लेकर बार एसोसिएशन और अन्य अधिवक्ताओं के बीच मतभेद बना हुआ है। एक पक्ष इसे न्यायिक आदेशों के विरुद्ध बता रहा है, जबकि दूसरा पक्ष इसे न्यायोचित बताते हुए अनुमति के आधार पर स्थापित करने की बात कर रहा है। अब देखना होगा कि यह मामला किस दिशा में आगे बढ़ता है।