by-Ravindra Sikarwar
हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने दो महत्वपूर्ण फैसले सुनाए हैं, जिनका देश की कानूनी और सामाजिक व्यवस्था पर गहरा प्रभाव पड़ेगा। ये फैसले कैदियों की रिहाई और नागरिकता साबित करने से संबंधित हैं।
कैदियों की रिहाई पर निर्देश:
सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया है कि वे उन कैदियों की समीक्षा करें और उन्हें तुरंत रिहा करें, जिन्होंने अपनी सजा पूरी कर ली है। यह फैसला उन हजारों कैदियों के लिए एक बड़ी राहत है, जो कानूनी प्रक्रिया में देरी और प्रशासनिक लापरवाही के कारण जेलों में बंद हैं, जबकि उनकी सजा की अवधि समाप्त हो चुकी है।
मुख्य बिंदु:
- समीक्षा का आदेश: सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को एक समयबद्ध तरीके से ऐसे मामलों की पहचान करने और उनकी समीक्षा करने का आदेश दिया है।
- न्यायिक मानवाधिकार: इस फैसले का उद्देश्य कैदियों के मानवाधिकारों की रक्षा करना है, क्योंकि सजा पूरी होने के बाद भी जेल में रहना उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।
- प्रशासनिक सुधार: यह निर्देश जेल प्रशासन और कानूनी सहायता प्रणालियों को अपनी प्रक्रियाओं में सुधार करने के लिए प्रेरित करेगा ताकि ऐसे मामले भविष्य में न हों।
नागरिकता प्रमाण पर स्पष्टीकरण:
एक अन्य महत्वपूर्ण फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि आधार कार्ड, पैन कार्ड और वोटर आईडी कार्ड जैसे दस्तावेज अकेले नागरिकता साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं। यह फैसला उन मामलों में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है जहाँ लोगों को अपनी नागरिकता साबित करने में कठिनाई हो रही है।
मुख्य बिंदु:
- नागरिकता और पहचान पत्र: कोर्ट ने कहा कि ये दस्तावेज केवल भारत में निवास और एक विशिष्ट पहचान को दर्शाते हैं, न कि जन्म से नागरिकता को।
- कानूनी आधार: नागरिकता के लिए वैध प्रमाण पत्र में जन्म प्रमाण पत्र, पासपोर्ट, या अन्य दस्तावेज शामिल हो सकते हैं जो भारतीय नागरिकता अधिनियम, 1955 के तहत निर्धारित हैं।
- प्रवासियों पर प्रभाव: यह फैसला उन प्रवासियों और विशेष रूप से असम जैसे राज्यों में रहने वाले लोगों के लिए एक स्पष्ट दिशानिर्देश है, जहाँ राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) की प्रक्रिया चल रही है।
ये दोनों फैसले न्यायपालिका की ओर से मानवाधिकारों की सुरक्षा और कानूनी प्रक्रियाओं में पारदर्शिता लाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम हैं।