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by-Ravindra Sikarwar

नई दिल्ली: भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने न्यायाधीशों के खिलाफ कथित तौर पर अपमानजनक और निंदनीय टिप्पणी करने के मामले में यूट्यूबर अजय शुक्ला के खिलाफ स्वतः संज्ञान लेते हुए अवमानना की कार्यवाही शुरू कर दी है। न्यायालय ने इन टिप्पणियों को “अपमानजनक” और “न्यायिक प्रशासन को बाधित करने वाला” करार दिया है, जो न्यायपालिका की गरिमा और कार्यप्रणाली पर सीधा हमला माना गया है।

अवमानना की कार्यवाही का आधार:
न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की अवकाशकालीन पीठ ने इस मामले में संज्ञान लिया। पीठ ने अपने आदेश में कहा कि अजय शुक्ला द्वारा की गई टिप्पणियां प्रथम दृष्टया न्यायपालिका के खिलाफ अपमानजनक और न्याय के प्रशासन में बाधा डालने वाली प्रतीत होती हैं। ये टिप्पणियां न केवल न्यायाधीशों के व्यक्तिगत सम्मान को ठेस पहुंचाती हैं, बल्कि न्यायिक प्रक्रिया की पवित्रता और विश्वसनीयता को भी कमज़ोर करती हैं, जो देश के लोकतांत्रिक ढांचे के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

न्यायपालिका की स्वतंत्रता और सम्मान का महत्व:
न्यायाधीशों पर इस तरह की टिप्पणियों को न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर एक गंभीर खतरा माना जाता है। एक स्वतंत्र और निष्पक्ष न्यायपालिका ही कानून के शासन को बनाए रखने और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करने की आधारशिला है। अगर न्यायाधीशों को उनके कर्तव्यों के निर्वहन में बिना किसी उचित आधार के अपमानित या बदनाम किया जाता है, तो यह उनके काम करने की क्षमता को प्रभावित कर सकता है और जनता के विश्वास को कमजोर कर सकता है।

यूट्यूबर पर लगे आरोप:
अजय शुक्ला पर आरोप है कि उन्होंने अपने यूट्यूब चैनल के माध्यम से सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के खिलाफ बेहद अनुचित और अपमानजनक टिप्पणी की है। हालांकि, न्यायालय ने अपने आदेश में इन विशिष्ट टिप्पणियों का विवरण नहीं दिया है, लेकिन उनके स्वरूप को “अवमाननापूर्ण” बताया है।

अगली सुनवाई और प्रक्रिया:
सर्वोच्च न्यायालय ने अब इस मामले में स्वतः संज्ञान लिया है और अजय शुक्ला को नोटिस जारी कर इस अवमानना मामले में अपना पक्ष रखने का निर्देश दिया है। मामले की अगली सुनवाई अब 11 जुलाई को होनी है। इस सुनवाई में अजय शुक्ला को यह स्पष्ट करना होगा कि उन्होंने ऐसी टिप्पणियां क्यों कीं और उनका क्या आशय था। अवमानना साबित होने पर न्यायालय उचित दंडात्मक कार्रवाई कर सकता है, जिसमें जुर्माना या कारावास शामिल हो सकता है।

यह मामला एक महत्वपूर्ण संदेश देता है कि सर्वोच्च न्यायालय न्यायपालिका की गरिमा और सम्मान को बनाए रखने के लिए गंभीर है और अनुचित हमलों को बर्दाश्त नहीं करेगा।

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