अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) पर लंबे समय तक रहने के बाद सुनीता विलियम्स और उनके साथी बैरी “बच” विलमोर सुरक्षित धरती पर लौट आए हैं। उनका मिशन, जो 5 जून 2024 को शुरू हुआ था, केवल 8 दिनों का होना था, लेकिन तकनीकी समस्याओं के कारण यह 9 महीने तक चला। ऐसे लंबे समय तक अंतरिक्ष में रहने से अंतरिक्ष यात्रियों के शरीर पर गहरा प्रभाव पड़ता है। आइए जानते हैं कि सुनीता विलियम्स और उनके साथियों के लिए क्या चुनौतियां आने वाली हैं।

अंतरिक्ष में शरीर पर पड़ने वाले प्रभाव
अंतरिक्ष में माइक्रोग्रैविटी (शून्य गुरुत्वाकर्षण) के कारण शरीर में कई बदलाव आते हैं। धरती पर गुरुत्वाकर्षण हमारी मांसपेशियों और हड्डियों को लगातार सक्रिय रखता है, लेकिन अंतरिक्ष में इसके अभाव में शरीर कमजोर होने लगता है।
- हड्डियों और मांसपेशियों का कमजोर होना
- अंतरिक्ष में हड्डियों का घनत्व कम होने लगता है। अंतरिक्ष यात्री हर महीने लगभग 1% हड्डियों का घनत्व खो देते हैं, खासकर रीढ़, कूल्हों और जांघों में।
- मांसपेशियां भी कमजोर हो जाती हैं क्योंकि उन्हें गुरुत्वाकर्षण के खिलाफ काम नहीं करना पड़ता।
- इसे रोकने के लिए अंतरिक्ष यात्री रोजाना कड़ी एक्सरसाइज करते हैं, लेकिन धरती पर लौटने के बाद भी उन्हें लंबे समय तक रिहैबिलिटेशन की जरूरत होती है।
- रीढ़ की हड्डी में बदलाव
- अंतरिक्ष में रीढ़ की हड्डी फैलती है, जिससे अंतरिक्ष यात्री कुछ इंच लंबे हो जाते हैं। हालांकि, धरती पर लौटने के बाद यह अस्थायी बदलाव वापस सामान्य हो जाता है, लेकिन इससे पीठ दर्द की समस्या हो सकती है।
- पैरों की त्वचा का नरम होना
- अंतरिक्ष में पैरों पर दबाव नहीं पड़ता, जिससे त्वचा की सख्त परत (कॉलस) नरम हो जाती है।
- धरती पर लौटने के बाद पैरों की त्वचा छिलने लगती है और वह बच्चों के पैरों की तरह नरम हो जाती है।
हृदय और रक्त प्रवाह पर प्रभाव
- शरीर के तरल पदार्थों का पुनर्वितरण
- धरती पर गुरुत्वाकर्षण के कारण खून और अन्य तरल पदार्थ शरीर के निचले हिस्से में जमा होते हैं। लेकिन अंतरिक्ष में यह तरल पदार्थ ऊपर की ओर बढ़ने लगता है, जिससे चेहरा सूज जाता है और सिर में दबाव बढ़ जाता है।
- इसके विपरीत, पैर पतले और कमजोर हो जाते हैं। इसे “पफी-हेड बर्ड-लेग्स सिंड्रोम” कहा जाता है।
- हृदय की संरचना में बदलाव
- अंतरिक्ष में हृदय को धरती की तरह मेहनत नहीं करनी पड़ती, जिससे इसकी संरचना बदल जाती है।
- अध्ययनों के अनुसार, हृदय 9.4% अधिक गोल हो जाता है। हालांकि यह बदलाव अस्थायी होता है, लेकिन धरती पर लौटने के बाद हृदय को सामान्य होने में समय लगता है।
लंबे समय तक प्रभाव
- हड्डियों का घनत्व कम होना
- अंतरिक्ष में लंबे समय तक रहने के बाद हड्डियों का घनत्व पूरी तरह से ठीक होने में सालों लग सकते हैं।
- कुछ मामलों में अंतरिक्ष यात्री अपनी पहले वाली हड्डियों की मजबूती कभी हासिल नहीं कर पाते, जिससे उन्हें ऑस्टियोपोरोसिस और फ्रैक्चर का खतरा बढ़ जाता है।
- कॉस्मिक रेडिएशन का खतरा
- अंतरिक्ष में पृथ्वी की तरह विकिरण से सुरक्षा नहीं होती। अंतरिक्ष यात्री सूर्य से निकलने वाली उच्च ऊर्जा वाली किरणों के संपर्क में आते हैं।
- 9 महीने के मिशन के दौरान सुनीता विलियम्स लगभग 270 चेस्ट एक्स-रे के बराबर विकिरण के संपर्क में आई होंगी।
- इससे रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो सकती है, ऊतकों को नुकसान पहुंच सकता है और कैंसर का खतरा बढ़ सकता है।
- मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव
- अंतरिक्ष में लंबे समय तक रहने से अंतरिक्ष यात्रियों का मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है।
- ISS हर 90 मिनट में पृथ्वी का चक्कर लगाता है, जिससे अंतरिक्ष यात्री हर दिन 16 बार सूर्योदय और सूर्यास्त देखते हैं। इससे उनका सर्कैडियन रिदम (शरीर की आंतरिक घड़ी) बिगड़ जाता है।
- सीमित स्थान और अकेलापन डिप्रेशन, चिंता और संज्ञानात्मक क्षमता में कमी का कारण बन सकता है।
अंतरिक्ष यात्रियों की मानसिक मजबूती
अंतरिक्ष यात्री कोई साधारण इंसान नहीं होते। वे शारीरिक और मानसिक रूप से दुनिया के सबसे मजबूत लोगों में से होते हैं। उदाहरण के लिए, सोवियत कॉस्मोनॉट वैलेरी पोल्याकोव ने अंतरिक्ष में 437 दिन बिताए और धरती पर लौटने के बाद उन्होंने खुद चलकर अपनी कुर्सी तक का सफर तय किया। उन्होंने यह साबित कर दिया कि मंगल ग्रह पर भी इंसान काम करने में सक्षम हो सकता है।
सुनीता विलियम्स ने भी अपने 9 महीने के मिशन के दौरान यह साबित कर दिया कि मानवीय जज्बा और हौसला किसी भी चुनौती का सामना कर सकता है।
निष्कर्ष
अंतरिक्ष में लंबे समय तक रहने के बाद धरती पर लौटना आसान नहीं होता। हड्डियों, मांसपेशियों, हृदय और मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों को ठीक होने में समय लगता है। लेकिन सुनीता विलियम्स जैसे अंतरिक्ष यात्रियों की मानसिक मजबूती और दृढ़ संकल्प ही उन्हें इन चुनौतियों का सामना करने की ताकत देता है।