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by-Ravindra Sikarwar

मुंबई, महाराष्ट्र: महाराष्ट्र की राजनीति में इन दिनों एक बड़े सियासी समीकरण के आकार लेने की अटकलें तेज हो गई हैं। शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) गुट के प्रमुख उद्धव ठाकरे और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के अध्यक्ष राज ठाकरे के बीच संभावित सुलह की खबरें जोर पकड़ रही हैं। खास बात यह है कि महा विकास अघाड़ी (MVA) के सहयोगी दल भी इस संभावित गठबंधन के लिए अपनी सहमति और समर्थन व्यक्त कर रहे हैं, जिससे महाराष्ट्र के राजनीतिक गलियारों में बड़ी हलचल मच गई है।

एक दशक पुरानी दरार और अब सुलह की आहट:
राज ठाकरे ने 2006 में शिवसेना (अविभाजित) से अलग होकर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) का गठन किया था। तब से लेकर अब तक, दोनों चचेरे भाइयों के राजनीतिक रास्ते अलग-अलग रहे हैं और अक्सर उनके बीच तीखी बयानबाजी भी देखने को मिली है। हालांकि, महाराष्ट्र के मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य ने एक बार फिर ठाकरे परिवार के इन दो धुरंधरों को एक साथ लाने की संभावना को बल दिया है।

हाल ही में, राज ठाकरे ने एक पॉडकास्ट में कहा था कि उनके और उद्धव के बीच के झगड़े छोटे हैं और महाराष्ट्र इन सबसे बड़ा है। उन्होंने साथ आने को ‘केवल इच्छा का विषय’ बताया था। इसके जवाब में, उद्धव ठाकरे ने भी सकारात्मक रुख दिखाते हुए कहा था कि वह छोटे-मोटे मतभेद भुलाने को तैयार हैं, बशर्ते बार-बार पक्ष बदलने का खेल न हो और कोई भी महाराष्ट्र के हितों के खिलाफ काम न करे। इन बयानों के बाद से ही सुलह की अटकलों को और हवा मिली है। मुंबई के गिरगांव जैसे इलाकों में तो दोनों नेताओं को एक साथ लाने की अपील करते हुए पोस्टर भी सामने आए हैं, जिन पर ‘8 करोड़ मराठी जनता एक साथ आने के लिए बेसब्री से इंतजार कर रही है’ जैसे संदेश लिखे हैं।

MVA क्यों कर रहा समर्थन?
वर्तमान में उद्धव ठाकरे की शिवसेना महा विकास अघाड़ी (कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी – शरदचंद्र पवार गुट) का हिस्सा है। MVA सहयोगी राज ठाकरे के साथ उद्धव के संभावित गठबंधन का समर्थन कर रहे हैं क्योंकि उनका मानना है कि इससे गठबंधन की ताकत में उल्लेखनीय वृद्धि होगी। शिवसेना में टूट और एनसीपी में विभाजन के बाद, ‘ठाकरे’ नाम और मराठी मानुष के वोटों का एकीकरण MVA के लिए बड़ा फायदेमंद साबित हो सकता है।

मनसे के मराठी वोट बैंक और राज ठाकरे के करिश्माई नेतृत्व को साथ लाने से MVA को आगामी विधानसभा चुनावों और विशेष रूप से मुंबई व ठाणे जैसे शहरी क्षेत्रों में भाजपा और शिंदे गुट-अजित पवार गुट के गठबंधन के खिलाफ मजबूत स्थिति मिलेगी। कांग्रेस और एनसीपी (शरद पवार गुट) इस कदम को एक रणनीतिक आवश्यकता के रूप में देख रहे हैं ताकि राज्य में सत्ताधारी गठबंधन को कड़ी चुनौती दी जा सके।

चुनौतियाँ और भविष्य की संभावनाएं:
हालांकि, इस संभावित सुलह में कुछ चुनौतियाँ भी हैं। राज ठाकरे के राजनीतिक रुख में उतार-चढ़ाव और उनकी हिंदुत्ववादी विचारधारा का MVA के धर्मनिरपेक्ष मंच के साथ तालमेल बिठाना एक मुश्किल काम हो सकता है। पुरानी राजनीतिक कड़वाहट को पूरी तरह से मिटाना भी आसान नहीं होगा।

लेकिन, यदि यह सुलह मूर्त रूप लेती है, तो महाराष्ट्र के राजनीतिक समीकरणों में बड़ा बदलाव आ सकता है। यह न केवल ठाकरे परिवार की राजनीतिक विरासत को फिर से मजबूत कर सकता है, बल्कि राज्य में आने वाले चुनावों के परिणामों पर भी गहरा प्रभाव डाल सकता है। फिलहाल, सभी की निगाहें ठाकरे चचेरे भाइयों पर टिकी हैं कि क्या वे अपने मतभेदों को भुलाकर एक साथ आएंगे और महाराष्ट्र की राजनीति में एक नए अध्याय की शुरुआत करेंगे।

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