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by-Ravindra Sikarwar

लखनऊ: समाजवादी पार्टी (सपा) के प्रमुख और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने बागेश्वर धाम के प्रमुख पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री पर एक बड़ा और सीधा आरोप लगाया है। उन्होंने कहा है कि पंडित धीरेन्द्र शास्त्री अपनी कथाओं के लिए ‘अंडरटेबल’ यानी गुप्त रूप से 50 लाख रुपये तक की फीस लेते हैं। यह बयान ऐसे समय में आया है जब पंडित धीरेन्द्र शास्त्री की लोकप्रियता और उनके कार्यक्रमों का प्रभाव लगातार बढ़ रहा है, जिससे राजनीतिक हलकों में एक नई बहस छिड़ गई है।

क्या है अखिलेश यादव का आरोप?
लखनऊ में मीडिया से बात करते हुए, अखिलेश यादव ने कहा, “कुछ लोग समाज में पाखंड और अंधविश्वास फैला रहे हैं और उन्हें सरकार का संरक्षण मिल रहा है। मेरा सवाल यह है कि क्या ये लोग ‘अंडरटेबल कथा’ के लिए 50 लाख रुपये तक लेते हैं? क्या इनके धन का कोई हिसाब है?”

अखिलेश यादव ने सीधे तौर पर पंडित धीरेन्द्र शास्त्री का नाम लिया और उनके ‘दिव्य दरबार’ पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि आस्था अपनी जगह है, लेकिन जब कोई व्यक्ति अंधविश्वास को बढ़ावा देता है और इसके बदले में मोटी रकम लेता है, तो उस पर सवाल उठाना जरूरी है। उन्होंने सरकार से ऐसे धार्मिक कार्यक्रमों की फंडिंग की जांच कराने की भी मांग की, ताकि पारदर्शिता सुनिश्चित हो सके।

आरोप पर क्यों हो रही है सियासत?
अखिलेश यादव का यह आरोप राजनीतिक रूप से काफी महत्वपूर्ण है। पंडित धीरेन्द्र शास्त्री का उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में बड़ा जनाधार है। उनकी सभाओं में लाखों की भीड़ जुटती है और उनके बयानों का राजनीतिक प्रभाव भी होता है।

सपा हमेशा से ही ऐसे धार्मिक मुद्दों पर बीजेपी की आलोचना करती रही है। अखिलेश यादव का यह बयान बीजेपी और उनके समर्थकों पर सीधा हमला माना जा रहा है, जिन पर अक्सर धार्मिक प्रतीकों और नेताओं को बढ़ावा देने का आरोप लगता है। सपा का मानना है कि ऐसे आरोप लगाकर वे जनता के बीच यह संदेश दे सकते हैं कि इन धार्मिक आयोजनों का उद्देश्य केवल पैसा कमाना है, न कि धर्म का प्रचार करना।

बागेश्वर धाम की प्रतिक्रिया:
दूसरी ओर, बागेश्वर धाम के प्रतिनिधियों ने अखिलेश यादव के आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है। बागेश्वर धाम के एक प्रवक्ता ने कहा कि यह आरोप “पूरी तरह से निराधार और राजनीति से प्रेरित” है।

प्रवक्ता ने कहा, “हमारी सभी कथाएं और कार्यक्रम पारदर्शी तरीके से आयोजित किए जाते हैं। सभी दान और आय का हिसाब रखा जाता है और इसका उपयोग सामाजिक कार्यों जैसे कि अस्पताल, गौशाला और गरीब कन्याओं के विवाह के लिए किया जाता है। एक संत पर इस तरह का आरोप लगाना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है।”

यह देखना दिलचस्प होगा कि यह आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला कहां तक जाता है, क्योंकि यह सीधे तौर पर आस्था और राजनीति के बीच चल रही बहस को और गहरा कर रहा है।

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