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मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद के बीच चल रहे दशकों पुराने विवाद में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण सुनवाई की है। इस मामले से जुड़ी 18 याचिकाओं पर शुक्रवार को सुनवाई हुई, जिसके बाद अब अगली सुनवाई के लिए 4 जुलाई की तारीख तय की गई है। कोर्ट ने दोनों पक्षों से उनके जवाब दाखिल करने को कहा है।

अदालत में क्या हुआ?
इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा की एकल पीठ ने इस जटिल मामले से संबंधित कुल 18 याचिकाओं पर सुनवाई की। हिंदू पक्ष की ओर से दायर इन याचिकाओं में प्रमुख मांग यह है कि शाही ईदगाह मस्जिद को एक ‘विवादित ढांचा’ घोषित किया जाए और उसकी भूमि को श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट को सौंपा जाए। हिंदू पक्ष का दावा है कि मस्जिद का निर्माण भगवान श्रीकृष्ण के वास्तविक जन्मस्थान पर स्थित एक प्राचीन मंदिर को तोड़कर किया गया था।

वहीं, मुस्लिम पक्ष ने इन दावों का पुरजोर खंडन किया है। उनका तर्क है कि शाही ईदगाह मस्जिद एक वैध धार्मिक स्थल है, जिसका निर्माण नियमों के अनुसार हुआ है। मुस्लिम पक्ष का कहना है कि हिंदू पक्ष के पास अपने दावों को साबित करने के लिए कोई ठोस ऐतिहासिक या दस्तावेजी सबूत नहीं हैं।

सुनवाई के दौरान, कोर्ट ने कुछ याचिकाओं में दाखिल अर्जियों पर विचार किया और दोनों पक्षों को अपने-अपने जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया। इस आदेश के साथ ही, अगली सुनवाई की तारीख 4 जुलाई निर्धारित की गई है, जिस दिन कोर्ट दोनों पक्षों के जवाबों और आगे की दलीलों पर विचार करेगा।

विवाद की जड़ क्या है?
यह विवाद मथुरा की कुल 13.37 एकड़ भूमि के स्वामित्व को लेकर है। इस भूमि का एक बड़ा हिस्सा वर्तमान में श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर परिसर के अंतर्गत आता है। हालांकि, विवाद का मुख्य केंद्र 2.37 एकड़ का वह भूखंड है, जिस पर शाही ईदगाह मस्जिद स्थित है।

हिंदू पक्ष का यह अटल विश्वास है कि वर्तमान मस्जिद का स्थान ही भगवान श्रीकृष्ण का मूल जन्मस्थान है। उनका दावा है कि मुगल शासक औरंगजेब ने 1670 ईस्वी में प्राचीन केशवदेव मंदिर को ध्वस्त कर दिया था और उसी के अवशेषों पर शाही ईदगाह मस्जिद का निर्माण कराया था। सदियों से, यह मान्यता हिंदू समुदाय के लिए गहरी आस्था का विषय रही है।

दूसरी ओर, मुस्लिम पक्ष इन दावों को पूरी तरह से खारिज करता है। उनका तर्क है कि मस्जिद का निर्माण वैध रूप से किया गया था और यह किसी भी ऐतिहासिक तथ्यों या दस्तावेजों का उल्लंघन नहीं करती। मुस्लिम पक्ष का मानना है कि इस मस्जिद को लेकर किसी भी तरह का विवाद नहीं होना चाहिए और यह एक स्थापित धार्मिक स्थल है।

अयोध्या विवाद की तर्ज पर सुनवाई
इलाहाबाद हाई कोर्ट इस मामले की सुनवाई अयोध्या राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद की तर्ज पर कर रहा है। इसका अर्थ यह है कि कोर्ट सभी संबंधित याचिकाओं को एक साथ मिलाकर उन पर सुनवाई कर रहा है, ताकि इस जटिल और बहुआयामी विवाद का एक समग्र और स्थायी समाधान निकाला जा सके। इस रणनीति से उम्मीद है कि विभिन्न याचिकाओं में उठाई गई सभी आपत्तियों और दावों पर एक साथ विचार किया जा सकेगा, जिससे न्यायिक प्रक्रिया में तेजी आएगी।

यह फैसला आने वाले समय में इस ऐतिहासिक विवाद की दिशा और परिणाम को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर सकता है। कोर्ट का यह दृष्टिकोण एक व्यापक समाधान की संभावना को दर्शाता है, जैसा कि अयोध्या मामले में देखा गया था।

सुप्रीम कोर्ट की राय
इस विवाद से जुड़ी एक याचिका पहले भारत के सर्वोच्च न्यायालय में भी दायर की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के पूर्व के फैसले को बरकरार रखा था और हिंदू पक्ष को अपनी याचिका में संशोधन करने की अनुमति दी थी। इसके साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू पक्ष को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को भी इस मामले में एक पक्षकार बनाने की इजाजत दी थी। एएसआई की भागीदारी इस विवाद में पुरातात्विक साक्ष्यों की भूमिका को महत्वपूर्ण बना सकती है, जैसा कि अयोध्या मामले में भी देखा गया था। सुप्रीम कोर्ट की इस राय ने इस मामले को आगे बढ़ाने में एक महत्वपूर्ण दिशा प्रदान की है।

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