by-Ravindra Sikarwar
रायपुर, छत्तीसगढ़: छत्तीसगढ़ से वैवाहिक हिंसा और घरेलू अपराधों का एक भयावह आंकड़ा सामने आया है, जो राज्य में महिलाओं की सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े करता है। प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, छत्तीसगढ़ में पिछले 115 दिनों में (यानी लगभग चार महीनों में) पतियों द्वारा 30 पत्नियों की हत्या कर दी गई है। यह आंकड़ा न केवल चौंकाने वाला है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि कैसे पारिवारिक संबंधों के भीतर ही महिलाएं क्रूर हिंसा का शिकार हो रही हैं।
आंकड़ों का विश्लेषण और भयावह सच्चाई:
यह आंकड़ा राज्य पुलिस या संबंधित एजेंसियों द्वारा जारी किया गया है, जो घरेलू हिंसा की भयावहता को उजागर करता है। 115 दिनों में 30 हत्याएं होने का मतलब है कि औसतन हर 3.8 दिन में एक पत्नी की उसके पति द्वारा हत्या कर दी गई है। यह दर अत्यधिक चिंताजनक है और बताता है कि महिलाएं अपने ही घरों में, उन लोगों से सुरक्षित नहीं हैं जिन पर उन्हें सबसे ज्यादा भरोसा होता है।
ये हत्याएं केवल आंकड़े नहीं हैं, बल्कि यह उन जीवन की कहानियां हैं जो क्रूरता और हिंसा का शिकार हुई हैं। इन मामलों में विभिन्न कारण हो सकते हैं, जैसे घरेलू विवाद, वित्तीय मुद्दे, अवैध संबंध का संदेह, शराब या नशे की लत, या पति की मानसिक स्थिति। हालांकि, कारण कोई भी हो, यह कृत्य एक जघन्य अपराध है और समाज में बढ़ती हिंसा और संयम की कमी को दर्शाता है।
घरेलू हिंसा का भयावह स्वरूप:
यह डेटा उस व्यापक घरेलू हिंसा की समस्या का एक हिस्सा है जिससे भारतीय समाज जूझ रहा है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) के आंकड़े भी बताते हैं कि भारत में एक बड़ी संख्या में महिलाएं अपने जीवनसाथी द्वारा शारीरिक, भावनात्मक या यौन हिंसा का सामना करती हैं। छत्तीसगढ़ के ये विशेष आंकड़े दिखाते हैं कि यह हिंसा कितनी चरम सीमा तक पहुंच सकती है, जहां जान तक ले ली जाती है।
अक्सर, घरेलू हिंसा के मामले रिपोर्ट नहीं हो पाते या उन्हें “पारिवारिक मामला” मानकर दबा दिया जाता है। लेकिन जब स्थिति हत्या तक पहुंचती है, तो यह कानून प्रवर्तन एजेंसियों और समाज के लिए एक गंभीर चुनौती बन जाती है।
पुलिस और प्रशासन के लिए चुनौतियां:
यह आंकड़ा छत्तीसगढ़ पुलिस के लिए एक बड़ी चुनौती पेश करता है। उन्हें न केवल इन हत्याओं के दोषियों को न्याय के कटघरे में लाना है, बल्कि घरेलू हिंसा को रोकने के लिए प्रभावी कदम भी उठाने हैं। इसमें शामिल हो सकता है:
- जन जागरूकता अभियान: लोगों को घरेलू हिंसा के दुष्परिणामों और इसके खिलाफ कानूनी प्रावधानों के बारे में जागरूक करना।
- परामर्श केंद्र: ऐसे जोड़ों के लिए परामर्श सेवाएं उपलब्ध कराना जो गंभीर वैवाहिक विवादों का सामना कर रहे हैं।
- महिलाओं के लिए हेल्पलाइन: पीड़ित महिलाओं के लिए आसान पहुंच वाली हेल्पलाइन और आश्रय गृह प्रदान करना।
- पुलिस की संवेदनशीलता: घरेलू हिंसा के मामलों को गंभीरता से लेने और पीड़ितों के प्रति संवेदनशीलता बढ़ाने के लिए पुलिस कर्मियों को प्रशिक्षित करना।
- त्वरित न्याय: ऐसे मामलों में त्वरित जांच और दोषियों को सजा दिलाना ताकि दूसरों के लिए एक निवारक के रूप में कार्य करे।
सामाजिक जिम्मेदारी:
यह केवल पुलिस या प्रशासन की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि पूरे समाज की है। पड़ोसियों, रिश्तेदारों और समुदाय के नेताओं को घरेलू हिंसा के संकेतों को पहचानने और पीड़ितों की मदद के लिए आगे आने की जरूरत है। चुप्पी तोड़ना और ऐसे अपराधों की निंदा करना ही इस भयावह चक्र को तोड़ने का पहला कदम है।
छत्तीसगढ़ में पतियों द्वारा पत्नियों की हत्या के ये आंकड़े एक गंभीर चेतावनी हैं, जो हमें वैवाहिक संबंधों के भीतर छिपी हिंसा और महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए तत्काल और ठोस कदम उठाने की आवश्यकता को याद दिलाते हैं।