by-Ravindra Sikarwar
नई दिल्ली: एक महत्वपूर्ण फैसले में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को यह व्यवस्था दी कि पति-पत्नी के बीच गोपनीय तरीके से रिकॉर्ड की गई फोन वार्तालाप को वैवाहिक विवादों में साक्ष्य के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है. इस फैसले ने पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के पहले के निर्णय को पलट दिया है.
पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने ऐसे रिकॉर्डिंग को निजता का उल्लंघन मानते हुए साक्ष्य के रूप में स्वीकार नहीं करने का फैसला सुनाया था. हालांकि, न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने यह माना कि यदि पति-पत्नी गुप्त रूप से रिकॉर्डिंग का सहारा लेते हैं, तो यह विवाह में विश्वास के टूटने को दर्शाता है, और इस प्रकार यह तलाक या क्रूरता के दावों के लिए स्वयं प्रासंगिक है.
क्या था मामला?
यह मामला बठिंडा परिवार न्यायालय में शुरू हुआ, जहाँ एक पति ने अपनी पत्नी से क्रूरता के आधार पर तलाक मांगा था. उसने अपने आरोपों के सबूत के तौर पर कॉल रिकॉर्डिंग वाली एक सीडी अदालत में पेश की, जिसे परिवार न्यायालय ने स्वीकार कर लिया था.
इससे व्यथित होकर पत्नी ने पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय का रुख किया. पत्नी ने तर्क दिया कि बातचीत उसकी सहमति के बिना रिकॉर्ड की गई थी और उसने इन्हें साक्ष्य के रूप में स्वीकार न करने की अपील की. उच्च न्यायालय ने परिवार न्यायालय के सीडी को स्वीकार करने वाले आदेश को रद्द कर दिया और टिप्पणी की कि पति-पत्नी कॉल पर खुलकर बात करते हैं, यह सोचे बिना कि उनके शब्दों की अदालत में जाँच की जाएगी.
इसके बाद पति ने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया.
सुप्रीम कोर्ट का फैसला:
शीर्ष अदालत ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 121 (पहले भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 122) का हवाला देते हुए इन रिकॉर्ड की गई संचार को साक्ष्य के रूप में स्वीकार करने का एक अपवाद बताया और कहा कि इसमें निजता का कोई उल्लंघन नहीं है.
सर्वोच्च न्यायालय ने परिवार न्यायालय के निर्णय को बहाल कर दिया है, जिसमें उसे रिकॉर्डिंग की प्रासंगिकता और प्रामाणिकता पर विचार करने का निर्देश दिया गया है. यह फैसला वैवाहिक विवादों में डिजिटल साक्ष्य की स्वीकार्यता को लेकर एक महत्वपूर्ण नजीर स्थापित करता है.