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इस्तांबुल/मॉस्को/कीव: यूक्रेन संघर्ष को समाप्त करने के लिए राजनयिक प्रयासों के बीच, रूस ने यूक्रेन के साथ सीधे शांति वार्ता के अगले दौर के लिए 2 जून की तारीख प्रस्तावित की है। यह प्रस्ताव इस्तांबुल में होगा, जो पहले भी दोनों पक्षों के बीच बैठकों का स्थल रहा है। रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने बुधवार को इस प्रस्ताव की घोषणा की, साथ ही यह भी कहा कि रूस बैठक में एक “ज्ञापन” पेश करेगा जिसमें “संकट के मूल कारणों को विश्वसनीय रूप से दूर करने” पर मॉस्को की स्थिति का उल्लेख होगा।

रूस का प्रस्ताव और शर्तें:
रूसी विदेश मंत्रालय ने बताया कि लावरोव ने अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो के साथ एक फोन कॉल में मॉस्को की तैयारियों के बारे में जानकारी दी। लावरोव ने एक वीडियो बयान में कहा कि रूसी प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व फिर से राष्ट्रपति के सहयोगी व्लादिमीर मेडिन्स्की करेंगे। उन्होंने उम्मीद जताई कि जो लोग वास्तव में शांति प्रक्रिया की सफलता में रुचि रखते हैं, वे इस्तांबुल में सीधे रूसी-यूक्रेनी वार्ताओं के एक नए दौर का समर्थन करेंगे।

रूस की ओर से प्रस्तावित ज्ञापन में मुख्य रूप से यूक्रेन के नाटो में शामिल होने की आकांक्षाओं को त्यागने, रूस द्वारा नियंत्रित किए गए क्षेत्रों से यूक्रेन को पीछे हटने और रूसी संघ के कुछ हिस्सों के रूप में मॉस्को द्वारा कब्जा किए गए चार आंशिक रूप से कब्जे वाले यूक्रेनी क्षेत्रों से कीव की वापसी जैसी पुरानी मांगें शामिल होने की संभावना है। रूस पश्चिमी प्रतिबंधों को हटाने और जमे हुए रूसी संपत्तियों के समाधान के साथ-साथ “रूसी भाषी यूक्रेनियों के संरक्षण” की भी मांग कर सकता है।

यूक्रेन की प्रतिक्रिया: सशर्त स्वीकृति और अपेक्षाएँ:
यूक्रेन ने हालांकि, इन वार्ताओं के प्रति सशर्त खुलापन दिखाया है। यूक्रेनी रक्षा मंत्री रुस्तम उमेरोव ने पुष्टि की है कि कीव बातचीत में शामिल होने के लिए तैयार है, लेकिन उन्होंने रूस पर अपनी युद्धविराम ज्ञापन जमा करने में देरी करने के लिए आलोचना की। उमेरोव ने कहा, “हम एक पूर्ण और बिना शर्त युद्धविराम और निरंतर राजनयिक जुड़ाव के लिए यूक्रेन की तत्परता की पुष्टि करते हैं।” उन्होंने आगे कहा, “हम आगे की बैठकों के विरोध में नहीं हैं… लेकिन हम उनके ज्ञापन का इंतजार कर रहे हैं ताकि बैठक खाली न हो और वास्तव में हमें युद्ध समाप्त करने के करीब ले जा सके।”

उमेरोव ने इस बात पर जोर दिया कि यूक्रेन पहले ही अपनी शर्तें रूसी पक्ष को सौंप चुका है और मॉस्को से 2 जून की समय सीमा से पहले अपना वादा पूरा करने का आग्रह किया। यूक्रेनी विदेश मंत्री एंड्री सिबिहा ने भी कहा कि रूस को तुरंत अपना ज्ञापन पेश करना चाहिए।

पहले की बैठक और आगे की चुनौतियाँ:
यह नया प्रस्ताव 16 मई को इस्तांबुल में रूस और यूक्रेन के निम्न-स्तरीय प्रतिनिधिमंडलों के बीच हुई पहली सीधी शांति वार्ता के बाद आया है। वह बैठक, जो दो घंटे तक चली थी, में कोई महत्वपूर्ण सफलता नहीं मिली थी, हालांकि दोनों पक्ष युद्ध के सबसे बड़े कैदी आदान-प्रदान पर सहमत हुए थे। यह आदान-प्रदान पिछले सप्ताहांत हुआ था, जिसमें दोनों पक्षों के 1,000 बंदी रिहा हुए थे।

हालांकि, जमीन पर लड़ाई जारी है। दोनों पक्ष एक-दूसरे पर ड्रोन और मिसाइल हमलों का आरोप लगा रहे हैं, जिससे संघर्ष की तीव्रता बढ़ रही है। हाल ही में, जर्मनी ने यूक्रेन को अपनी लंबी दूरी की मिसाइलें विकसित करने में मदद करने की पेशकश की है, जिस पर क्रेमलिन ने “गैर-जिम्मेदाराना” और संघर्ष को बढ़ावा देने वाला बताया है।

अंतर्राष्ट्रीय दबाव और नेताओं की भूमिका:
संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प, जो शांति समझौते कराने की कोशिश कर रहे हैं, ने रूसी नेता व्लादिमीर पुतिन द्वारा शांति प्रक्रिया में देरी करने के लिए बढ़ती निराशा व्यक्त की है। ट्रम्प ने कहा कि वह जारी रूसी बमबारी से “बहुत निराश” हैं, जबकि युद्धविराम वार्ता चल रही है। उन्होंने यह भी कहा कि अगर आवश्यक हो तो वह स्वयं यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोडिमिर ज़ेलेंस्की और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन दोनों के साथ बैठेंगे।

कुल मिलाकर, रूस का शांति वार्ता का प्रस्ताव एक महत्वपूर्ण राजनयिक कदम है, लेकिन यूक्रेन की सशर्त स्वीकृति और ज्ञापन की मांग दर्शाती है कि दोनों पक्षों के बीच अभी भी महत्वपूर्ण मतभेद हैं। इस संघर्ष के तीसरे वर्ष में प्रवेश करने के साथ, एक स्थायी शांति समझौते तक पहुँचना एक जटिल और चुनौतीपूर्ण प्रक्रिया बनी हुई है।

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