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by-Ravindra Sikarwar

शहरी भारत में बच्चों के पालन-पोषण की बढ़ती लागत पर एक लिंक्डइन पोस्ट ने व्यापक बहस छेड़ दी है। पोस्ट में दावा किया गया है कि एक बच्चे पर सालाना लगभग 13 लाख रुपये का खर्च आता है, जिससे कई माता-पिता और विशेषज्ञ आश्चर्यचकित हैं। यह आंकड़ा शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, पोषण और अन्य खर्चों को मिलाकर बताया गया है, जो तेजी से महंगे होते जा रहे हैं।

यह चर्चा तब शुरू हुई जब एक लिंक्डइन उपयोगकर्ता ने अपने अनुभव और अनुमानित लागतों को साझा करते हुए एक विस्तृत पोस्ट लिखी। पोस्ट में, उन्होंने बताया कि कैसे महानगरों में बच्चों की परवरिश में शिक्षा शुल्क, ट्यूशन, पाठ्येतर गतिविधियाँ, चिकित्सा व्यय, पौष्टिक भोजन और मनोरंजन जैसी चीजें एक बड़ी लागत बन गई हैं। इस पोस्ट ने तुरंत हजारों टिप्पणियां और प्रतिक्रियाएं बटोरीं, जहां लोगों ने अपने अनुभव साझा किए और इस मुद्दे पर अपनी चिंता व्यक्त की।

कुछ उपयोगकर्ताओं ने इस आंकड़े को “अवास्तविक” बताया, जबकि कई अन्य ने स्वीकार किया कि यह वास्तविकता के करीब है, खासकर उन परिवारों के लिए जो अपने बच्चों को सर्वोत्तम सुविधाएं प्रदान करना चाहते हैं। एक टिप्पणीकर्ता ने लिखा, “यह आंकड़ा चौंकाने वाला लग सकता है, लेकिन अगर आप एक अच्छे स्कूल, कोचिंग और बच्चों के अन्य विकासशील खर्चों को जोड़ते हैं, तो यह बहुत करीब है।”

यह बहस ऐसे समय में सामने आई है जब भारत में शहरी जीवन की लागत लगातार बढ़ रही है। बढ़ती महंगाई, निजी स्कूलों की फीस में वृद्धि और स्वास्थ्य सेवाओं के महंगे होने से मध्यम वर्ग के परिवारों पर भारी वित्तीय बोझ पड़ रहा है। कई माता-पिता ने साझा किया कि उन्हें अपने बच्चों के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए अतिरिक्त काम करना पड़ रहा है या बचत में कटौती करनी पड़ रही है।

विशेषज्ञों का मानना है कि यह स्थिति भारत की जनसांख्यिकीय चुनौतियों को और बढ़ा सकती है। यदि बच्चों के पालन-पोषण की लागत इतनी अधिक बनी रहती है, तो यह परिवारों को कम बच्चे पैदा करने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है, जिससे लंबी अवधि में देश की युवा आबादी पर असर पड़ सकता है।

इस लिंक्डइन पोस्ट ने न केवल एक महत्वपूर्ण सामाजिक मुद्दे पर ध्यान आकर्षित किया है, बल्कि शहरी भारत में परिवारों के सामने आने वाली आर्थिक चुनौतियों को भी उजागर किया है। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या यह बहस नीति निर्माताओं का ध्यान खींचती है और क्या सरकारें बढ़ती लागतों को कम करने के लिए कोई कदम उठाती हैं।

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