by-Ravindra Sikarwar
एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने अपने कर्मचारियों की भर्ती प्रक्रिया में अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए आरक्षण लागू कर दिया है। यह आरक्षण न केवल सीधी भर्ती पर लागू होगा, बल्कि पदोन्नति (प्रमोशन) में भी एससी के लिए 15% और एसटी के लिए 7.5% का कोटा निर्धारित किया गया है। यह निर्णय दशकों से चली आ रही एक मांग को पूरा करता है और देश की सबसे बड़ी न्यायिक संस्था में सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने की दिशा में एक बड़ा कदम है।
ऐतिहासिक निर्णय और इसके निहितार्थ:
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला कई मायनों में ऐतिहासिक है। अब तक, सुप्रीम कोर्ट अपनी आंतरिक नियुक्तियों और पदोन्नति में आरक्षण नीति का पालन नहीं करता था, भले ही केंद्र सरकार के अन्य विभागों और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में यह व्यापक रूप से लागू था। इस नए कदम से:
- प्रतिनिधित्व में वृद्धि: सुप्रीम कोर्ट के कर्मचारियों के भीतर एससी और एसटी समुदायों का प्रतिनिधित्व बढ़ेगा, जिससे न्यायिक प्रशासन में विविधता आएगी।
- सामाजिक न्याय को बढ़ावा: यह संविधान के अनुच्छेद 16 (4) के तहत सामाजिक न्याय और समानता के सिद्धांतों को मजबूत करेगा, जो सार्वजनिक रोजगार में पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण का प्रावधान करता है।
- अन्य संस्थानों के लिए मिसाल: यह निर्णय अन्य न्यायिक और अर्ध-न्यायिक संस्थानों के लिए भी एक मिसाल कायम कर सकता है जो अभी तक अपनी आंतरिक भर्ती प्रक्रियाओं में आरक्षण लागू नहीं करते हैं।
पदोन्नति में आरक्षण का महत्व:
पदोन्नति में आरक्षण का प्रावधान विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। यह सुनिश्चित करेगा कि एससी और एसटी कर्मचारी अपने करियर में प्रगति के समान अवसर प्राप्त करें और केवल निचले स्तर के पदों तक ही सीमित न रहें। अक्सर देखा गया है कि सीधी भर्ती में आरक्षण के बावजूद, पदोन्नति में समान अवसर न मिलने के कारण इन समुदायों के कर्मचारी उच्च पदों तक नहीं पहुंच पाते थे। यह कदम इस खाई को पाटने में मदद करेगा।
विस्तृत प्रावधान:
इस नई नीति के तहत, सुप्रीम कोर्ट ने विभिन्न श्रेणियों के पदों पर आरक्षण लागू किया है। हालांकि, विस्तृत दिशानिर्देशों और कार्यान्वयन की प्रक्रिया को लेकर आधिकारिक अधिसूचना का इंतजार है। यह उम्मीद की जा रही है कि इसमें बैकलॉग रिक्तियों, रोस्टर प्रणाली और अन्य संबंधित पहलुओं पर भी स्पष्टता प्रदान की जाएगी।
यह निर्णय भारतीय न्यायपालिका में समावेशिता और सामाजिक न्याय के प्रति सुप्रीम कोर्ट की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। यह एक ऐसा कदम है जिसका दूरगामी प्रभाव हो सकता है, जिससे न केवल सुप्रीम कोर्ट बल्कि व्यापक न्यायिक प्रणाली में भी समानता और प्रतिनिधित्व को बढ़ावा मिलेगा।