by-Ravindra Sikarwar
नई दिल्ली: भारत के जाने-माने बाघ संरक्षणवादी और प्रख्यात लेखक वाल्मीक थापर का 73 वर्ष की आयु में निधन हो गया है। उन्होंने शनिवार (31 मई, 2025) सुबह दिल्ली स्थित अपने आवास पर अंतिम सांस ली। वे लंबे समय से कैंसर से जूझ रहे थे।
वाल्मीक थापर को भारत में बाघ संरक्षण के क्षेत्र में एक अग्रणी हस्ती के रूप में जाना जाता था। उन्होंने अपना पूरा जीवन वन्यजीवों, विशेषकर बाघों के अध्ययन और संरक्षण के लिए समर्पित कर दिया। राजस्थान के रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान में बाघों के साथ उनके गहन कार्य ने उन्हें ‘इंडियाज टाइगर मैन’ की उपाधि दिलाई।
वर्ष 1952 में नई दिल्ली में जन्मे थापर ने 1988 में ‘रणथंभौर फाउंडेशन’ की सह-स्थापना की, जो वन्यजीवों के सामुदायिक-आधारित संरक्षण पर केंद्रित एक गैर-सरकारी संगठन है। उन्होंने बाघों के आवासों की सुरक्षा और अवैध शिकार के खिलाफ सख्त कानूनों की वकालत करते हुए दशकों तक अथक प्रयास किए।
थापर एक विपुल लेखक भी थे, जिन्होंने वन्यजीवों और संरक्षण पर 30 से अधिक पुस्तकें लिखीं। उनकी प्रसिद्ध कृतियों में ‘लैंड ऑफ द टाइगर: ए नेचुरल हिस्ट्री ऑफ द इंडियन सबकॉन्टिनेंट’ (1997) और ‘टाइगर फायर: 500 ईयर्स ऑफ द टाइगर इन इंडिया’ शामिल हैं। उन्होंने बीबीसी जैसे प्रमुख चैनलों के लिए कई यादगार वन्यजीव वृत्तचित्रों का निर्माण और प्रस्तुतिकरण भी किया।
उनके निधन पर कई हस्तियों ने शोक व्यक्त किया है। कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश ने उन्हें “संरक्षण जगत में एक महान हस्ती” बताया और कहा कि रणथंभौर में उनका काम उनकी गहरी प्रतिबद्धता का प्रमाण है।
वाल्मीक थापर को आज दोपहर 3:30 बजे लोधी इलेक्ट्रिक श्मशान घाट में अंतिम विदाई दी जाएगी। उनके निधन को भारतीय वन्यजीव संरक्षण के लिए एक बड़ी क्षति के रूप में देखा जा रहा है।