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by-Ravindra Sikarwar

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति समिति (MPC) की आगामी बैठक पर पूरे देश की निगाहें टिकी हुई हैं। व्यापक रूप से उम्मीद की जा रही है कि इस सप्ताह होने वाली बैठक में एमपीसी प्रमुख बेंचमार्क नीति दर, रेपो दर, में 25 आधार अंकों (basis points) की कटौती करेगी। यह कटौती भारतीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने और उधार लेने की लागत को कम करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम मानी जा रही है।

रेपो दर क्या है और यह क्यों महत्वपूर्ण है?
रेपो दर वह ब्याज दर है जिस पर भारतीय रिजर्व बैंक वाणिज्यिक बैंकों को अल्पकालिक ऋण देता है। यह अर्थव्यवस्था में धन के प्रवाह को नियंत्रित करने का एक महत्वपूर्ण उपकरण है। जब रेपो दर कम होती है, तो बैंकों के लिए आरबीआई से उधार लेना सस्ता हो जाता है, जिसका लाभ वे ग्राहकों को कम ब्याज दरों पर ऋण प्रदान करके देते हैं। इसके परिणामस्वरूप घर, कार और व्यक्तिगत ऋण जैसे विभिन्न प्रकार के ऋण सस्ते हो जाते हैं, जिससे उपभोक्ता खर्च और निवेश को बढ़ावा मिलता है।

कटौती की उम्मीद के कारण:
रेपो दर में कटौती की व्यापक उम्मीद के पीछे कई प्रमुख कारण हैं:

  1. कम मुद्रास्फीति: हाल के महीनों में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) आधारित मुद्रास्फीति लगातार भारतीय रिजर्व बैंक के 4% के लक्ष्य से नीचे बनी हुई है। अप्रैल 2025 में खुदरा मुद्रास्फीति 3.2% पर आ गई थी, जो जुलाई 2019 के बाद का सबसे निचला स्तर है। विशेष रूप से खाद्य कीमतों में लगातार कमी ने समग्र मुद्रास्फीति को नियंत्रण में रखने में मदद की है। कम मुद्रास्फीति आरबीआई को विकास को समर्थन देने के लिए दरों में कटौती करने का अवसर प्रदान करती है, बिना कीमतों पर दबाव डाले।
  2. लगातार तीसरी कटौती की संभावना: यदि इस बार 25 आधार अंकों की कटौती होती है, तो यह फरवरी 2025 और अप्रैल 2025 में हुई कटौती के बाद लगातार तीसरी कटौती होगी। फरवरी और अप्रैल में प्रत्येक बार 25 आधार अंकों की कटौती के बाद रेपो दर वर्तमान में 6% पर है। इस तरह, 2025 में अब तक कुल 50 आधार अंकों की कटौती हो चुकी है।
  3. विकास को बढ़ावा देने की आवश्यकता: वैश्विक अनिश्चितताओं और कुछ घरेलू मांग की चुनौतियों के बीच, एमपीसी आर्थिक विकास को समर्थन देने के लिए मौद्रिक नीति के समर्थन को आवश्यक मान रही है। कम ब्याज दरें उद्योगों को विस्तार करने और उपभोक्ताओं को अधिक खर्च करने के लिए प्रोत्साहित करती हैं, जिससे आर्थिक गतिविधियों में तेज़ी आती है।
  4. तरल नकदी की स्थिति: आरबीआई द्वारा उठाए गए विभिन्न उपायों के माध्यम से बैंकिंग प्रणाली में पर्याप्त तरलता (liquidity) बनी हुई है। यह स्थिति भी दरों में कटौती के लिए अनुकूल माहौल बनाती है।

एमपीसी की बैठक और निर्णय:
भारतीय रिजर्व बैंक की छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति (MPC) की बैठक 4 जून से शुरू होगी और निर्णय 6 जून को घोषित होने की उम्मीद है। एमपीसी में आरबीआई गवर्नर (अध्यक्ष), एक डिप्टी गवर्नर, एक कार्यकारी निदेशक, और भारत सरकार द्वारा नामित तीन स्वतंत्र सदस्य शामिल होते हैं। यह समिति भारत की मौद्रिक नीति तैयार करती है, जिसका प्राथमिक उद्देश्य मूल्य स्थिरता बनाए रखते हुए आर्थिक विकास को बढ़ावा देना है।

आगे क्या उम्मीद करें?
रेपो दर में 25 आधार अंकों की कटौती के अलावा, अर्थशास्त्रियों को उम्मीद है कि आरबीआई अपनी ‘समायोजी’ (accommodative) मौद्रिक नीति के रुख को बनाए रखेगा, जो आर्थिक विकास के प्रति सहायक दृष्टिकोण को दर्शाता है। इसके अतिरिक्त, आरबीआई से वित्तीय वर्ष 2025-26 के लिए अपने जीडीपी और मुद्रास्फीति के अनुमानों को संशोधित करने की भी उम्मीद है, जो हाल के सकारात्मक आर्थिक संकेतकों और वैश्विक रुझानों को ध्यान में रखेगा। कुछ विश्लेषकों का यह भी मानना है कि वर्तमान वित्तीय वर्ष में कुल 50 आधार अंकों की और कटौती हो सकती है, जिससे रेपो दर अंततः 5.25% तक पहुंच सकती है।

निष्कर्ष:
आरबीआई की यह आगामी मौद्रिक नीति बैठक भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जा रही है। रेपो दर में संभावित कटौती से उधारकर्ताओं को राहत मिलेगी, जिससे उनकी ईएमआई कम हो सकती है और ऋण लेना अधिक आकर्षक हो सकता है। यह कदम बाजार में सकारात्मक संकेत देगा और आर्थिक विकास को नई गति प्रदान कर सकता है, खासकर तब जब देश और वैश्विक अर्थव्यवस्थाएं विभिन्न चुनौतियों का सामना कर रही हैं।

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