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By: Ravindra Sikarwar

हाल ही में सार्वजनिक हुए गोपनीय दस्तावेजों ने एक बार फिर पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर अंतरराष्ट्रीय चिंताओं को उजागर किया है। अमेरिकी नेशनल सिक्योरिटी आर्काइव द्वारा जारी किए गए इन दस्तावेजों में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश के बीच 2001 से 2008 तक की निजी बातचीत के प्रतिलेख शामिल हैं। इनसे पता चलता है कि दोनों नेता पाकिस्तान की राजनीतिक अस्थिरता और उसके परमाणु शस्त्रागार को लेकर गहराई से चिंतित थे। पुतिन ने तो स्पष्ट शब्दों में पाकिस्तान को “परमाणु हथियारों से लैस सैन्य शासन” करार दिया था, जो वैश्विक स्थिरता के लिए गंभीर जोखिम पैदा कर सकता है।

पहली मुलाकात में ही उठी गंभीर चिंता
16 जून 2001 को स्लोवेनिया में दोनों नेताओं की पहली व्यक्तिगत मुलाकात हुई थी। इस दौरान पुतिन ने बुश से सीधे कहा कि वे पाकिस्तान को लेकर बेहद चिंतित हैं। उनके अनुसार, पाकिस्तान कोई लोकतांत्रिक देश नहीं है, बल्कि एक सैन्य तानाशाही है जिसके पास परमाणु बम हैं। पुतिन ने सवाल उठाया कि पश्चिमी देश इस स्थिति की आलोचना क्यों नहीं करते, जबकि यह वैश्विक सुरक्षा के लिए स्पष्ट खतरा है। उन्होंने जोर दिया कि इस मुद्दे पर खुलकर चर्चा होनी चाहिए।

यह बातचीत उस समय हुई जब पाकिस्तान में जनरल परवेज मुशर्रफ का सैन्य शासन था। 9/11 हमलों से पहले ही पुतिन ने इस अस्थिरता की ओर इशारा किया, जहां परमाणु हथियारों का नियंत्रण लोकतांत्रिक संस्थाओं के बजाय सेना के हाथ में था। बुश ने इस पर सीधे विरोध नहीं जताया, बल्कि बातचीत को आगे बढ़ाया, जो दर्शाता है कि अमेरिका भी निजी तौर पर इन चिंताओं से वाकिफ था।

ए.क्यू. खान नेटवर्क और प्रसार का खतरा
दस्तावेजों में अब्दुल कादिर खान के कुख्यात नेटवर्क का बार-बार जिक्र है, जिसने पाकिस्तान की परमाणु तकनीक को ईरान, उत्तर कोरिया और लीबिया जैसे देशों तक पहुंचाया। 2005 में व्हाइट हाउस की एक बैठक में पुतिन ने बुश को बताया कि ईरान के सेंट्रीफ्यूज में पाकिस्तानी मूल का यूरेनियम मिला है। पुतिन ने कहा कि ईरान की गुप्त प्रयोगशालाओं में क्या हो रहा है, यह स्पष्ट नहीं है और पाकिस्तान के साथ उसका सहयोग अभी भी जारी है।

बुश ने जवाब दिया कि उन्होंने मुशर्रफ से इस पर बात की है और खान को नजरबंद किया गया है, लेकिन पूरी जानकारी नहीं मिल रही। दोनों नेताओं ने स्वीकार किया कि यह स्थिति उन्हें “नर्वस” कर रही है। बुश ने ईरान को “धार्मिक कट्टरपंथियों का शासन” बताया, जहां परमाणु हथियार गलत हाथों में जाने का डर है। पुतिन ने चेतावनी दी कि अगर पाकिस्तान में हालात बिगड़े, तो परमाणु सामग्री या तकनीक आतंकवादी समूहों या गैर-राजकीय तत्वों तक पहुंच सकती है।

ए.क्यू. खान को पाकिस्तान का “परमाणु बम का जनक” माना जाता है। 2004 में उनके नेटवर्क का पर्दाफाश हुआ, जब उन्होंने सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया कि उन्होंने यूरेनियम संवर्धन तकनीक और उपकरण दूसरे देशों को बेचे। हालांकि, उन्हें जेल की सजा नहीं मिली, बल्कि केवल घर में नजरबंद रखा गया। यह घटना उस समय वैश्विक स्तर पर बड़ा विवाद बनी और परमाणु अप्रसार प्रयासों को झटका लगा।

भारत की लंबे समय से चली आ रही आशंकाएं सही साबित
ये खुलासे भारत की उन चिंताओं की पुष्टि करते हैं, जो वह दशकों से व्यक्त करता आ रहा है। भारत ने हमेशा पाकिस्तान के परमाणु प्रसार रिकॉर्ड, उसके आतंकी संगठनों से कथित संबंधों और कमांड सिस्टम की कमजोरी पर सवाल उठाए हैं। हाल के वर्षों में भी भारत ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान को “गैर-जिम्मेदार परमाणु शक्ति” करार दिया है और उसके arsenal को IAEA की निगरानी में रखने की मांग की है।

पुतिन की टिप्पणियां भारत के रुख से पूरी तरह मेल खाती हैं। दोनों देशों के नेता निजी बातचीत में पाकिस्तान की अस्थिरता को वैश्विक खतरा मानते थे, भले ही सार्वजनिक रूप से अमेरिका ने मुशर्रफ के साथ आतंकवाद विरोधी सहयोग किया हो।

आज के संदर्भ में बढ़ती प्रासंगिकता
आज जब विश्व फिर से परमाणु सुरक्षा और अप्रसार पर बहस कर रहा है, ये 24 साल पुराने दस्तावेज बेहद प्रासंगिक हैं। पाकिस्तान का परमाणु भंडार बढ़ता जा रहा है और क्षेत्रीय तनाव, खासकर भारत के साथ, बने हुए हैं। राजनीतिक अस्थिरता और कट्टरपंथी तत्वों की मौजूदगी आज भी वैसी ही चिंता पैदा करती है, जैसी पुतिन ने 2001 में जताई थी।

ये दस्तावेज दिखाते हैं कि बड़े देश निजी तौर पर इन खतरों को समझते हैं, लेकिन भू-राजनीतिक हितों के कारण सार्वजनिक रूप से चुप्पी साध लेते हैं। वैश्विक समुदाय को अब इन चेतावनियों पर गंभीरता से विचार करना चाहिए, ताकि परमाणु हथियार हमेशा जिम्मेदार हाथों में रहें।

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