by-Ravindra Sikarwar
हाल ही में, पाकिस्तान ने भारत के राजनयिक प्रयासों को बाधित करने के लिए ‘इस्लामिक एकजुटता’ का हवाला देने की कोशिश की, लेकिन उसे इसमें मुंह की खानी पड़ी है। यह घटनाक्रम उस समय सामने आया जब एक भारतीय संसदीय प्रतिनिधिमंडल, जिसमें विभिन्न राजनीतिक दलों के सांसद शामिल थे, आतंकवाद के खिलाफ भारत के रुख को स्पष्ट करने और पाकिस्तान के आतंकवाद के समर्थन को उजागर करने के लिए मलेशिया सहित कई देशों के दौरे पर था।
घटना का विवरण:
भारत के इस सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व जद (यू) सांसद संजय झा कर रहे थे, और इसमें भाजपा सांसद अपराजिता सारंगी, बृज लाल, प्रधान बरुआ और हेमांग जोशी, तृणमूल के अभिषेक बनर्जी, सीपीएम के जॉन ब्रिटास, कांग्रेस के सलमान खुर्शीद और पूर्व राजनयिक मोहन कुमार जैसे प्रमुख सदस्य शामिल थे। यह दल ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद भारत के वैश्विक आउटरीच कार्यक्रम का हिस्सा था। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ भारत द्वारा पाकिस्तान स्थित आतंकी ठिकानों पर की गई जवाबी कार्रवाई थी, जो पहलगाम आतंकी हमले के बाद की गई थी जिसमें 27 निर्दोष लोग मारे गए थे।
पाकिस्तान का हस्तक्षेप और मलेशिया का रुख:
पाकिस्तान, जिसे दुनिया भर में आतंकवाद के समर्थन के लिए अपनी बढ़ती बदनामी का डर था, ने भारतीय प्रतिनिधिमंडल के मलेशिया दौरे को विफल करने की कोशिश की। पाकिस्तान के दूतावास ने मलेशियाई अधिकारियों से आग्रह किया कि वे भारतीय प्रतिनिधिमंडल के सभी कार्यक्रमों को रद्द कर दें, ‘इस्लामिक एकजुटता’ का हवाला देते हुए। हालांकि, कुआलालंपुर ने इस्लामाबाद के इस हस्तक्षेप को सिरे से खारिज कर दिया।
मलेशिया ने पाकिस्तान के दबाव को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया और भारतीय प्रतिनिधिमंडल को पूरा सहयोग दिया। प्रतिनिधिमंडल के सभी निर्धारित कार्यक्रम योजना के अनुसार आगे बढ़े, जिससे इस्लामाबाद को एक बड़ा राजनयिक झटका लगा। यह घटनाक्रम भारत के लिए एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक जीत मानी जा रही है।
प्रतिनिधिमंडल का उद्देश्य और संदेश:
इस प्रतिनिधिमंडल का मुख्य उद्देश्य पाकिस्तान की धरती से होने वाले आतंकवाद के बारे में अंतरराष्ट्रीय समुदाय को संवेदनशील बनाना और आतंकवाद के खिलाफ भारत की ‘शून्य-सहिष्णुता’ की नीति को स्पष्ट करना था। प्रतिनिधिमंडल ने मलेशियाई अधिकारियों को ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत की गई सटीक सैन्य कार्रवाई के बारे में भी जानकारी दी, जिसमें भारत ने संयम और सटीकता के साथ केवल आतंकवादी ठिकानों को निशाना बनाया था।
प्रतिनिधिमंडल ने कश्मीर मुद्दे को उठाने के पाकिस्तान के प्रयास को भी विफल कर दिया। पाकिस्तान ने कश्मीर के मुद्दे को उठा कर भारतीय प्रतिनिधिमंडल के दौरे को पटरी से उतारने की कोशिश की थी, लेकिन यह सफल नहीं हो पाया।
निष्कर्ष:
यह घटना दर्शाती है कि पाकिस्तान की ‘इस्लामिक एकजुटता’ की रणनीति अब उतनी प्रभावी नहीं रही है, जितनी वह पहले हुआ करती थी। कई मुस्लिम देश अब अपने आर्थिक और रणनीतिक हितों को प्राथमिकता दे रहे हैं और आतंकवाद के मुद्दे पर भारत के साथ खड़े होने को तैयार हैं। यह भारत के लिए एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक सफलता है, जो वैश्विक मंच पर आतंकवाद के खिलाफ अपनी लड़ाई में अंतरराष्ट्रीय समर्थन हासिल करने में सक्षम रहा है। यह पाकिस्तान के लिए एक चेतावनी भी है कि वह अपनी पुरानी चालें छोड़कर आतंकवाद को बढ़ावा देना बंद करे।