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by-Ravindra Sikarwar

तिरुवनंतपुरम, केरल – केरल में एक बार फिर निपाह वायरस के मामलों ने चिंता बढ़ा दी है, जिससे राज्य के स्वास्थ्य अधिकारियों और निवासियों में हड़कंप मच गया है। मलप्पुरम और पलक्कड़ जिलों में निपाह के कुछ मामले सामने आने के बाद, एहतियाती प्रोटोकॉल को तुरंत सक्रिय कर दिया गया है और इन दोनों जिलों के साथ-साथ एक पड़ोसी जिले को भी हाई अलर्ट पर रखा गया है।

निपाह वायरस का खतरा:
निपाह वायरस एक ज़ूनोटिक वायरस है, जिसका अर्थ है कि यह जानवरों से मनुष्यों में फैलता है। मुख्य रूप से यह फल चमगादड़ों के माध्यम से फैलता है, जो इस वायरस के प्राकृतिक मेजबान होते हैं। यह वायरस गंभीर बीमारी का कारण बन सकता है, जिसमें मस्तिष्क की सूजन (एन्सेफलाइटिस) भी शामिल है, और इसकी मृत्यु दर काफी अधिक है। केरल ने अतीत में भी निपाह वायरस के प्रकोपों का सामना किया है, और प्रत्येक घटना ने राज्य के स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे के लिए एक बड़ी चुनौती पेश की है।

वर्तमान स्थिति और प्रभावित जिले:
वर्तमान में, मलप्पुरम और पलक्कड़ जिलों में निपाह वायरस के कुछ पुष्ट या संदिग्ध मामले सामने आए हैं। इन मामलों की पुष्टि के बाद, केरल सरकार ने त्वरित कदम उठाए हैं:

  • मलप्पुरम और पलक्कड़: ये दोनों जिले सीधे तौर पर प्रभावित हैं और यहां स्वास्थ्य टीमों को विशेष निगरानी रखने के निर्देश दिए गए हैं।
  • तीसरा हाई-अलर्ट जिला: चूंकि निपाह वायरस तेजी से फैल सकता है, इसलिए इन दोनों जिलों से सटे एक अन्य जिले को भी हाई अलर्ट पर रखा गया है ताकि संभावित प्रसार को रोका जा सके। सटीक तीसरे जिले का नाम अक्सर स्थानीय अधिकारियों द्वारा स्थिति के आधार पर निर्धारित किया जाता है, लेकिन यह आमतौर पर वह होता है जिसकी भौगोलिक निकटता अधिक होती है और जहां लोगों की आवाजाही ज्यादा होती है।

सक्रिय किए गए एहतियाती प्रोटोकॉल:
केरल सरकार और स्वास्थ्य विभाग ने निपाह के प्रसार को रोकने के लिए तुरंत व्यापक एहतियाती प्रोटोकॉल सक्रिय कर दिए हैं:

  1. कंटेनमेंट ज़ोन का गठन: प्रभावित क्षेत्रों में सख्त कंटेनमेंट ज़ोन स्थापित किए गए हैं ताकि लोगों की अनावश्यक आवाजाही को प्रतिबंधित किया जा सके और वायरस के प्रसार को नियंत्रित किया जा सके।
  2. कांटेक्ट ट्रेसिंग: संक्रमित व्यक्तियों के संपर्क में आए सभी लोगों की पहचान करने और उनकी निगरानी करने के लिए बड़े पैमाने पर कांटेक्ट ट्रेसिंग अभियान चलाया जा रहा है। जिन लोगों में कोई लक्षण दिखते हैं, उन्हें तुरंत आइसोलेट किया जा रहा है और उनकी जांच की जा रही है।
  3. जागरूकता अभियान: जनता के बीच निपाह वायरस के लक्षणों, रोकथाम के उपायों और बरती जाने वाली सावधानियों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए व्यापक अभियान चलाए जा रहे हैं। लोगों को चमगादड़ों द्वारा खाए गए फलों को खाने से बचने और साफ-सफाई बनाए रखने की सलाह दी जा रही है।
  4. निगरानी और परीक्षण: स्वास्थ्य सुविधाओं पर कड़ी निगरानी रखी जा रही है ताकि फ्लू जैसे लक्षणों वाले किसी भी व्यक्ति की तुरंत जांच की जा सके और निपाह के मामलों की पुष्टि की जा सके। संदिग्ध मामलों के नमूने पुणे स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (NIV) भेजे जा रहे हैं।
  5. अस्पतालों में तैयारी: प्रभावित जिलों के अस्पतालों को आइसोलेशन वार्ड स्थापित करने और निपाह के मामलों से निपटने के लिए आवश्यक चिकित्सा उपकरण और दवाएं तैयार रखने के निर्देश दिए गए हैं। डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों को प्रशिक्षित किया जा रहा है।
  6. पशुधन पर निगरानी: चूंकि यह एक ज़ूनोटिक बीमारी है, पशुधन, विशेष रूप से सूअरों और अन्य जानवरों पर भी कड़ी निगरानी रखी जा रही है, क्योंकि वे भी इस वायरस को फैलाने में भूमिका निभा सकते हैं।

पिछली घटनाओं से सीख:
केरल ने 2018, 2019 और 2021 में निपाह वायरस के छोटे-बड़े प्रकोपों का सफलतापूर्वक सामना किया है। इन अनुभवों से मिले सबक का उपयोग वर्तमान स्थिति से निपटने के लिए किया जा रहा है। राज्य के स्वास्थ्य विभाग की त्वरित प्रतिक्रिया और मजबूत सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली ने पहले भी बड़े पैमाने पर प्रसार को रोकने में मदद की है।

हालांकि स्थिति गंभीर है, केरल सरकार का कहना है कि वे इस पर नियंत्रण पाने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं और जनता से सहयोग की अपील की है। लोगों को घबराने के बजाय सावधानी बरतने और स्वास्थ्य दिशानिर्देशों का पालन करने की सलाह दी गई है।

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