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by-Ravindra Sikarwar

नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने ऐप-आधारित कैब एग्रीगेटर्स जैसे ओला (Ola), उबर (Uber) और रैपिडो (Rapido) के लिए नए दिशा-निर्देश जारी किए हैं। इन नए नियमों के तहत, कैब कंपनियाँ अब पीक आवर्स (अधिक मांग के समय) के दौरान मूल किराये का दोगुना (2 गुना) तक चार्ज कर सकती हैं, वहीं गैर-पीक आवर्स (कम मांग के समय) में किराये में 50% तक की कमी कर सकती हैं। इन दिशानिर्देशों का उद्देश्य कैब सेवाओं को विनियमित करना, ड्राइवरों के लिए उचित आय सुनिश्चित करना और उपभोक्ताओं के लिए पारदर्शिता लाना है।

नए दिशानिर्देशों का विवरण:
सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (Ministry of Road Transport and Highways) द्वारा जारी किए गए ये नए नियम ‘मोटर वाहन एग्रीगेटर दिशानिर्देश, 2024’ (Motor Vehicle Aggregator Guidelines, 2024) का हिस्सा हैं। इनका मुख्य उद्देश्य कैब एग्रीगेटर मॉडल को औपचारिक बनाना और देश भर में एक समान ढांचा स्थापित करना है।

मुख्य बिंदु:

  • पीक आवर्स में अधिकतम किराया (Peak Hour Pricing):
    • नए नियमों के अनुसार, कैब एग्रीगेटर्स को मूल किराये (base fare) से अधिकतम 1.5 गुना (150%) से लेकर 2 गुना (200%) तक चार्ज करने की अनुमति होगी। यह प्रावधान पीक आवर्स में ड्राइवरों को अधिक प्रोत्साहन देने और उस समय बढ़ी हुई मांग को पूरा करने के लिए अधिक कैब उपलब्ध कराने के लिए है।
    • हालांकि, इसमें ‘सर्वे प्राइसिंग’ या ‘डायनामिक प्राइसिंग’ की मनमानी पर लगाम लगाने का प्रयास किया गया है, क्योंकि अब एक निर्धारित सीमा तय कर दी गई है।
  • गैर-पीक आवर्स में न्यूनतम किराया (Non-Peak Hour Pricing):
    • कम मांग वाले समय में, एग्रीगेटर्स मूल किराये से 50% तक कम (यानी मूल किराये का न्यूनतम 50%) चार्ज कर सकते हैं। यह उपभोक्ताओं को ऑफ-पीक समय में सस्ती सवारी का लाभ उठाने के लिए प्रोत्साहित करेगा।
    • इसका मतलब है कि अगर मूल किराया ₹100 है, तो गैर-पीक आवर्स में यह ₹50 तक कम हो सकता है, और पीक आवर्स में ₹200 तक जा सकता है।
  • ड्राइवरों के लिए आय और कमीशन:
    • दिशानिर्देशों में यह भी स्पष्ट किया गया है कि एग्रीगेटर्स को प्रति सवारी से मिलने वाले कुल किराये का अधिकतम 20% तक ही कमीशन लेने की अनुमति होगी। शेष राशि (कम से कम 80%) ड्राइवर को मिलनी चाहिए। यह ड्राइवरों की आय सुनिश्चित करने और उनके शोषण को रोकने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है।
    • पहले, कमीशन दरें अक्सर 25-30% या उससे भी अधिक होती थीं, जिससे ड्राइवरों की आय प्रभावित होती थी।
  • ड्राइवर और यात्री सुरक्षा:
    • इन नियमों में ड्राइवर और यात्री सुरक्षा पर भी जोर दिया गया है। एग्रीगेटर्स को यह सुनिश्चित करना होगा कि उनके प्लेटफॉर्म पर पंजीकृत सभी ड्राइवर और वाहन वैध लाइसेंस और परमिट के साथ हों।
    • आपातकालीन सहायता, शिकायत निवारण प्रणाली और डेटा सुरक्षा से संबंधित प्रावधान भी शामिल किए गए हैं।
  • लाइसेंस और विनियमन:
    • अब कैब एग्रीगेटर्स को संचालन के लिए राज्य सरकारों से लाइसेंस प्राप्त करना अनिवार्य होगा। इससे राज्य सरकारों को इन कंपनियों की गतिविधियों पर बेहतर नियंत्रण रखने और नियमों का पालन सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी।

इन नियमों की आवश्यकता क्यों पड़ी?
कैब एग्रीगेटर प्लेटफॉर्म्स के उदय के साथ, ‘सर्वे प्राइसिंग’ या ‘डायनामिक प्राइसिंग’ एक बड़ा विवादित मुद्दा बन गया था। पीक आवर्स में या अत्यधिक मांग के समय कंपनियाँ मनमाने ढंग से किराया बढ़ा देती थीं, जिससे उपभोक्ता अक्सर ठगा हुआ महसूस करते थे। वहीं, ड्राइवरों को मिलने वाले कमीशन को लेकर भी पारदर्शिता का अभाव था। इन नए नियमों का उद्देश्य इन मुद्दों को हल करना है:

  • उपभोक्ता संरक्षण: किराये की ऊपरी और निचली सीमा तय करने से उपभोक्ताओं को अप्रत्याशित रूप से अधिक किराया देने से बचाया जा सकेगा।
  • ड्राइवरों का सशक्तिकरण: कमीशन की सीमा तय होने से ड्राइवरों की आय में स्थिरता आएगी और उनके आर्थिक हितों की रक्षा होगी।
  • बाजार में स्थिरता: ये नियम एग्रीगेटर कंपनियों के लिए एक स्पष्ट परिचालन ढांचा प्रदान करेंगे, जिससे बाजार में अधिक स्थिरता आएगी।

आगे क्या?
ये दिशानिर्देश पूरे देश में कैब एग्रीगेटर उद्योग को एक नया स्वरूप देंगे। राज्य सरकारों को अब इन केंद्रीय दिशानिर्देशों के अनुरूप अपने नियमों को संशोधित करना होगा। उम्मीद है कि इन नियमों से कैब सेवाओं में अधिक पारदर्शिता, विश्वसनीयता और जवाबदेही आएगी, जिससे उपभोक्ताओं और ड्राइवरों दोनों को लाभ होगा। हालांकि, यह देखना बाकी है कि इन नियमों का जमीनी स्तर पर कितना प्रभावी क्रियान्वयन हो पाता है।

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