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by-Ravindra Sikarwar

पुणे/मुंबई: राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) ने मंगलवार, 10 जून, 2025 को अपना 26वां स्थापना दिवस मनाया। यह दिवस ऐसे समय में आया है जब पार्टी दो प्रमुख गुटों – एक शरद पवार के नेतृत्व में और दूसरा उनके भतीजे तथा महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री अजित पवार के नेतृत्व में – विभाजित है, और दोनों गुटों के बीच संभावित विलय को लेकर अटकलें और चर्चाएँ गर्म हैं। पुणे में अलग-अलग आयोजनों में दोनों गुटों ने अपनी ताकत का प्रदर्शन किया और भविष्य की राजनीतिक दिशा पर अपने विचार व्यक्त किए।

राकांपा का इतिहास और विभाजन:
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की स्थापना 10 जून, 1999 को शरद पवार, पी. ए. संगमा और तारिक अनवर ने की थी। इन नेताओं को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से निष्कासित कर दिया गया था, क्योंकि उन्होंने तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे पर सवाल उठाए थे। स्थापना के बाद, एनसीपी ने महाराष्ट्र और केंद्र में कांग्रेस के साथ गठबंधन में सरकारें बनाईं।

हालांकि, जुलाई 2023 में पार्टी में उस समय बड़ा विभाजन हो गया, जब अजित पवार ने अपने चाचा शरद पवार के खिलाफ विद्रोह कर दिया और शिवसेना-भाजपा गठबंधन सरकार में शामिल हो गए। इस विभाजन के बाद, चुनाव आयोग ने अजित पवार के गुट को ही असली एनसीपी का नाम और उसका ‘घड़ी’ चुनाव चिन्ह प्रदान किया। शरद पवार के गुट को ‘राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरदचंद्र पवार)’ नाम दिया गया।

अलग-अलग स्थापना दिवस समारोह:
इस साल, दोनों गुटों ने पुणे में अलग-अलग स्थानों पर अपना स्थापना दिवस मनाया।

  • अजित पवार गुट: अजित पवार के नेतृत्व वाले एनसीपी गुट ने पुणे के बालेवाड़ी में श्री छत्रपति शिवाजी स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स में एक बड़े कार्यक्रम का आयोजन किया। अजित पवार ने अपने संबोधन में विकास, समावेशिता और जन कल्याण पर जोर दिया। उन्होंने भाजपा के साथ गठबंधन करने के अपने फैसले का भी बचाव किया। अजित पवार ने कहा, “हम कोई संत नहीं हैं जो सिर्फ विपक्ष में बैठकर विरोध प्रदर्शन करते रहें। हम लोगों के लिए काम करना चाहते हैं।” उन्होंने यह भी कहा कि भाजपा के साथ हाथ मिलाने का मतलब पार्टी की धर्मनिरपेक्ष विचारधारा से समझौता करना नहीं है। उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं से आगामी स्थानीय निकाय चुनावों के लिए तैयार रहने का भी आह्वान किया और संकेत दिया कि स्थानीय राजनीतिक समीकरणों के आधार पर गठबंधन भी हो सकते हैं।
  • शरद पवार गुट: शरद पवार के नेतृत्व वाले एनसीपी (शरदचंद्र पवार) गुट ने पुणे के बाल गंधर्व रंग मंदिर में अपना कार्यक्रम आयोजित किया। शरद पवार ने पार्टी के विभाजन पर दुख व्यक्त किया, लेकिन उन कार्यकर्ताओं की सराहना की जो चुनौतियों के बावजूद पार्टी के साथ खड़े रहे। उन्होंने कहा, “हमने कभी नहीं सोचा था कि पार्टी में विभाजन होगा, लेकिन यह हो गया। फिर भी, आप लोगों ने दृढ़ संकल्प के साथ काम जारी रखा।” उन्होंने अपने भतीजे का सीधे नाम लिए बिना कहा, “कुछ लोग दूसरे रास्ते पर चले गए और दूसरी विचारधारा को गले लगा लिया। मैं आज इस पर बात नहीं करना चाहता, लेकिन जो लोग पार्टी के साथ रहे, वह हमारी पार्टी के मूल मूल्यों में विश्वास के कारण था।” उन्होंने कार्यकर्ताओं को एकजुटता का संदेश देते हुए कहा कि सत्ता की चिंता न करें, अगर वे एकजुट रहेंगे और आम लोगों के लिए काम करेंगे, तो जीत अवश्य मिलेगी। शरद पवार की बेटी और एनसीपी (एसपी) सांसद सुप्रिया सुले ने भी कार्यक्रम में अपनी बात रखी। उन्होंने पार्टी के लचीलेपन पर जोर दिया और सीधे विलय वार्ता पर टिप्पणी करने से परहेज किया। सुले ने कहा कि अजित पवार और उनके बीच पारिवारिक संबंध बरकरार हैं, लेकिन पार्टी के विलय जैसे बड़े निर्णय कैमरे पर नहीं, बल्कि मेज पर बैठकर चर्चा से होने चाहिए।

विलय की अटकलें और भविष्य की राजनीति:
महाराष्ट्र की राजनीति में एनसीपी के दोनों गुटों के संभावित विलय को लेकर लंबे समय से अटकलें चल रही हैं। लोकसभा चुनाव 2024 में एनसीपी (शरदचंद्र पवार) गुट ने महा विकास अघाड़ी (MVA) गठबंधन के साथ मिलकर महाराष्ट्र में अच्छा प्रदर्शन किया, जबकि अजित पवार के गुट को उतनी सफलता नहीं मिली। इस प्रदर्शन के बाद विलय की चर्चाएं और तेज हो गई हैं।

हालांकि, दोनों गुटों के नेताओं ने सार्वजनिक रूप से तत्काल विलय की संभावना से इनकार किया है। सुनील तटकरे, जो अजित पवार गुट के महाराष्ट्र एनसीपी अध्यक्ष हैं, ने कहा कि ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं है। वहीं, सुप्रिया सुले ने भी विलय के लिए कोई समय-सीमा देने से इनकार कर दिया।

जानकार मानते हैं कि दोनों गुटों के बीच असली ‘शक्ति परीक्षण’ आगामी स्थानीय निकाय चुनावों में होगा, जहाँ वे कई प्रमुख शहरी केंद्रों में आमने-सामने होंगे। पवार परिवार की राजनीति और महाराष्ट्र के सहकारिता आंदोलन में उनकी गहरी पकड़ को देखते हुए, यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या चाचा और भतीजा भविष्य में एक साथ आते हैं, या फिर महाराष्ट्र की राजनीति में यह विभाजन बना रहेगा।

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