
इंदौर में एक हृदयविदारक घटना सामने आई है, जहाँ ब्रेन ट्यूमर से पीड़ित 3 साल की एक बच्ची को संथारा कराया गया। जैन मुनि श्री के सुझाव पर बच्ची के माता-पिता ने इस धार्मिक प्रक्रिया के लिए सहमति दी थी। दुखद बात यह है कि संथारा शुरू होने के कुछ ही मिनटों बाद बच्ची का निधन हो गया। इतनी कम उम्र में संथारा लेने का यह पहला मामला बताया जा रहा है, जिसके कारण इसे गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में दर्ज किया गया है और यह पूरे देश में चर्चा का विषय बन गया है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार, बच्ची का इलाज मुंबई में चल रहा था। बच्ची के माता-पिता, जो लंबे समय से जैन मुनि श्री के अनुयायी थे, उसे मुनि श्री के पास ले गए थे। मुनि श्री ने उन्हें संथारा का सुझाव दिया, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया। धार्मिक विधि शुरू होने के कुछ ही समय बाद बच्ची ने अंतिम सांस ली। जैन समुदाय के लोगों ने इस असाधारण घटना के लिए बच्ची के माता-पिता का सम्मान किया है। बच्ची का नाम वियाना था और वह अपने माता-पिता की इकलौती संतान थी।
वियाना को एक साल पहले ब्रेन ट्यूमर का पता चला था। इंदौर और मुंबई में उसका इलाज कराया गया, लेकिन जब कोई सुधार नहीं हुआ, तो उसके माता-पिता उसे आध्यात्मिक संकल्प धारी राजेश मुनि महाराज के पास ले गए। जैन मुनि राजेश मुनि महाराज पहले भी 107 संथारा करवा चुके हैं। इसी कारण बच्ची के परिजनों ने संथारा के लिए सहमति दी थी। संथारा की धार्मिक प्रक्रिया शुरू होने के कुछ मिनट बाद ही बच्ची का निधन हो गया। इस घटना की जानकारी बच्ची के परिवार वालों ने अपने करीबी लोगों को ही दी।
क्या होता है संथारा?
जैन धर्म में संथारा, जिसे सल्लेखना भी कहा जाता है, मृत्यु पर्यंत उपवास करने की एक स्वैच्छिक प्रथा है। इसे आत्महत्या नहीं माना जाता, बल्कि एक धार्मिक कार्य माना जाता है। आमतौर पर यह तब किया जाता है जब मृत्यु निकट हो, ताकि आत्मा को पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति मिल सके। जैन धर्मावलंबी मानते हैं कि यह आत्मा को शुद्ध करने और कर्मों के बंधन को कम करने का एक तरीका है।