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by-Ravindra Sikarwar

नई दिल्ली: मुंबई के महत्वाकांक्षी एलिवेटेड रोड (उन्नत सड़क) और सुरंग परियोजनाओं को लेकर एक बड़ा घटनाक्रम सामने आया है। सर्वोच्च न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट) ने मुंबई महानगर क्षेत्र विकास प्राधिकरण (MMRDA) को स्पष्ट निर्देश दिया है कि यदि इन परियोजनाओं के लिए पुनः-निविदा (re-tender) प्रक्रिया नहीं अपनाई जाती है, तो अदालत इन परियोजनाओं पर रोक (stay) लगा देगी। यह सख्त निर्देश लार्सन एंड टुब्रो (L&T) द्वारा दायर की गई एक याचिका के बाद आया है, जिसमें निविदा प्रक्रिया में कथित अनियमितताओं को चुनौती दी गई थी।

परियोजनाओं का महत्व और MMRDA की भूमिका:
मुंबई, भारत की आर्थिक राजधानी होने के नाते, अपने बुनियादी ढांचे को लगातार मजबूत करने का प्रयास कर रही है। प्रस्तावित एलिवेटेड रोड और सुरंग परियोजनाएं शहर में यातायात की भीड़ को कम करने, कनेक्टिविटी सुधारने और यात्रा के समय को कम करने के लिए महत्वपूर्ण मानी जा रही हैं। ये परियोजनाएं मुंबई की जीवनरेखा कही जाने वाली परिवहन प्रणाली को सुचारु बनाने में अहम भूमिका निभाएंगी। MMRDA, जो मुंबई और उसके आसपास के क्षेत्रों में बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के विकास और क्रियान्वयन के लिए जिम्मेदार प्रमुख सरकारी एजेंसी है, इन परियोजनाओं की नोडल अथॉरिटी है।

L&T की याचिका और विवाद का केंद्र:
विवाद की जड़ L&T द्वारा दायर की गई याचिका में निहित है। यद्यपि याचिका का सटीक विवरण सार्वजनिक रूप से व्यापक रूप से उपलब्ध नहीं है, लेकिन यह आमतौर पर निविदा प्रक्रिया की निष्पक्षता, पारदर्शिता या कानूनी प्रावधानों के अनुपालन को लेकर चुनौती होती है। बड़ी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में अक्सर प्रतिस्पर्धी बोलियां शामिल होती हैं, और किसी भी प्रकार की कथित अनियमितता या पक्षपात पर कंपनियां अदालत का रुख करती हैं। L&T, जो देश की सबसे बड़ी निर्माण और इंजीनियरिंग कंपनियों में से एक है, ने संभवतः बोली प्रक्रिया में ऐसी विसंगतियों को उजागर किया है, जिससे उसे लगा कि उसके या अन्य बोलीदाताओं के हितों को नुकसान पहुंचा है।

सुप्रीम कोर्ट की कड़ी चेतावनी:
सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्देश MMRDA के लिए एक गंभीर चेतावनी है। ‘रोक’ या ‘स्थगन’ का मतलब है कि जब तक अदालत के निर्देशों का पालन नहीं किया जाता या अदालत कोई अंतिम फैसला नहीं सुनाती, तब तक परियोजना पर आगे का काम रुक जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने संभवतः यह सुनिश्चित करने के लिए यह कड़ा रुख अपनाया है कि सार्वजनिक धन से होने वाली बड़ी परियोजनाओं में निविदा प्रक्रियाएं पूरी तरह से पारदर्शी, निष्पक्ष और कानून के अनुसार हों। अदालत का लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि सभी बोलीदाताओं को समान अवसर मिलें और किसी भी प्रकार की मिलीभगत या भ्रष्टाचार की गुंजाइश न हो।

संभावित प्रभाव:
यदि MMRDA पुनः-निविदा नहीं करता है और सुप्रीम कोर्ट परियोजना पर रोक लगा देता है, तो इसके कई गंभीर परिणाम हो सकते हैं:

  • परियोजना में देरी: निर्माण कार्य रुक जाएगा, जिससे परियोजना के पूरा होने में काफी देरी हो सकती है।
  • लागत में वृद्धि: देरी अक्सर परियोजना की लागत में वृद्धि करती है, क्योंकि समय के साथ सामग्री और श्रम की कीमतें बढ़ जाती हैं।
  • सार्वजनिक असुविधा: परियोजनाओं में देरी से मुंबई के नागरिकों को लंबे समय तक यातायात की समस्याओं और निर्माण-संबंधी बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है।
  • निवेशक विश्वास: ऐसे विवाद बड़े बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में निवेशक और भागीदार कंपनियों के विश्वास को भी प्रभावित कर सकते हैं।

यह मामला एक बार फिर दर्शाता है कि न्यायपालिका सार्वजनिक परियोजनाओं में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने में कितनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, खासकर जब वे बड़े पैमाने पर सार्वजनिक धन और शहरी विकास से जुड़ी हों। MMRDA को अब सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों का पालन करते हुए पुनः-निविदा प्रक्रिया पर विचार करना होगा ताकि इन महत्वपूर्ण परियोजनाओं को बिना किसी बड़ी बाधा के आगे बढ़ाया जा सके।

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