by-Ravindra Sikarwar
मुंबई की पांच मस्जिदों ने अपने लाउडस्पीकर हटाए जाने को लेकर बॉम्बे हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की है। इन मस्जिदों ने आरोप लगाया है कि यह कार्रवाई चयनात्मक लक्ष्यीकरण (selective targeting) का हिस्सा है और ध्वनि प्रदूषण नियमों (noise regulation procedures) का उल्लंघन करती है। यह मामला महाराष्ट्र में लाउडस्पीकर के उपयोग को लेकर चल रहे विवाद को और गहराता दिख रहा है, खासकर धार्मिक स्थलों पर उनके इस्तेमाल को लेकर।
विवाद का मूल:
महाराष्ट्र में लाउडस्पीकर का मुद्दा पिछले कुछ समय से गरमाया हुआ है, जिसकी शुरुआत कुछ राजनीतिक और सामाजिक समूहों द्वारा धार्मिक स्थलों पर लाउडस्पीकर के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने की मांग से हुई थी, खासकर मस्जिदों से होने वाली अजान को लेकर। इसके बाद, राज्य के अधिकारियों ने ध्वनि प्रदूषण नियमों के सख्त प्रवर्तन की बात कही थी, जिसके परिणामस्वरूप कई मस्जिदों से लाउडस्पीकर हटाए गए या उनकी आवाज कम करवाई गई।
मस्जिदों का आरोप और याचिका का आधार:
याचिका दायर करने वाली मस्जिदों का प्रतिनिधित्व कर रहे वकीलों ने कोर्ट में कई महत्वपूर्ण दलीलें पेश की हैं:
- चयनात्मक लक्ष्यीकरण (Selective Targeting): मस्जिदों का मुख्य आरोप यह है कि लाउडस्पीकर हटाने की कार्रवाई केवल मस्जिदों को निशाना बना रही है, जबकि मंदिरों और अन्य धार्मिक स्थलों पर लगे लाउडस्पीकर पर उतनी सख्ती से कार्रवाई नहीं की जा रही है। याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि यह एक समुदाय विशेष के खिलाफ पक्षपातपूर्ण व्यवहार है और धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है।
- प्रक्रियात्मक उल्लंघन (Procedural Violations): मस्जिदों ने यह भी दावा किया है कि लाउडस्पीकर हटाने के दौरान पुलिस और अन्य अधिकारियों ने ध्वनि प्रदूषण नियमों और स्थापित प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया। उनके अनुसार:
- पूर्व सूचना का अभाव: उन्हें लाउडस्पीकर हटाने या उनकी आवाज कम करने से पहले पर्याप्त नोटिस नहीं दिया गया।
- ध्वनि स्तर मापने में विफलता: कार्रवाई से पहले या दौरान ध्वनि स्तर (decibel levels) को मापने के लिए वैज्ञानिक उपकरणों का उपयोग नहीं किया गया, जिससे यह स्थापित हो सके कि क्या वास्तव में नियमों का उल्लंघन हो रहा था।
- भेदभावपूर्ण प्रवर्तन: याचिकाओं में कहा गया है कि नियमों का प्रवर्तन एक समान और निष्पक्ष तरीके से नहीं किया जा रहा है।
- मौलिक अधिकारों का उल्लंघन: याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया है कि लाउडस्पीकर के माध्यम से अजान देना उनके धार्मिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का हिस्सा है, जैसा कि संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 में गारंटीकृत है। उनका कहना है कि ध्वनि प्रदूषण नियमों को इस तरह से लागू नहीं किया जाना चाहिए जिससे उनके धार्मिक अधिकारों का उल्लंघन हो।
कोर्ट से अपेक्षाएं:
मस्जिदों ने बॉम्बे हाई कोर्ट से आग्रह किया है कि वह अधिकारियों को लाउडस्पीकर हटाने की कार्रवाई पर रोक लगाने का निर्देश दे और यह सुनिश्चित करे कि भविष्य में ध्वनि प्रदूषण नियमों को निष्पक्ष और प्रक्रियात्मक रूप से सही तरीके से लागू किया जाए। वे यह भी चाहते हैं कि कोर्ट इस मामले में एक व्यापक दिशा-निर्देश जारी करे ताकि भविष्य में ऐसे विवादों से बचा जा सके।
आगे क्या?
बॉम्बे हाई कोर्ट अब इस याचिका पर सुनवाई करेगा और महाराष्ट्र सरकार तथा संबंधित अधिकारियों से जवाब मांगेगा। यह मामला निश्चित रूप से ध्वनि प्रदूषण और धार्मिक स्वतंत्रता के बीच संतुलन स्थापित करने की न्यायिक चुनौती को उजागर करेगा। इस फैसले का असर न केवल मुंबई बल्कि पूरे महाराष्ट्र में लाउडस्पीकर के उपयोग से संबंधित भविष्य की नीतियों पर भी पड़ सकता है।