by-Ravindra Sikarwar
मध्य प्रदेश में किसानों और सरकार के बीच एक नया विवाद खड़ा हो गया है। राज्य सरकार ने विपणन वर्ष 2025-26 के लिए किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर मूंग (हरी चना) की खरीद न करने का फैसला किया है। सरकार ने इस फैसले के पीछे किसानों द्वारा खरपतवारनाशकों (Herbicides) के अत्यधिक उपयोग को मुख्य कारण बताया है, जिसका दावा है कि इससे फसल की गुणवत्ता से समझौता होता है। इस निर्णय से हजारों किसानों में भारी निराशा फैल गई है, खासकर हरदा, नर्मदापुरम, सीहोर, विदिशा और रायसेन जैसे प्रमुख मूंग उत्पादक जिलों में, जहाँ किसान अपनी उपज MSP से काफी कम दाम पर बेचने को मजबूर हैं।
सरकार का तर्क: गुणवत्ता से समझौता
मध्य प्रदेश सरकार का कहना है कि किसानों द्वारा मूंग की फसल में खरपतवारों को नियंत्रित करने के लिए कुछ रसायनों, विशेष रूप से खरपतवारनाशकों का अंधाधुंध उपयोग किया जा रहा है। सरकार का तर्क है कि इन रसायनों के अवशेष (residues) मूंग में रह जाते हैं, जिससे फसल की गुणवत्ता प्रभावित होती है और यह मानव उपभोग के लिए पूरी तरह से सुरक्षित नहीं रह जाती। कृषि विभाग के अधिकारियों के अनुसार, ऐसे रासायनिक अवशेषों वाली मूंग अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मानकों पर खरी नहीं उतरती। इस कारण से, सरकार ने गुणवत्ता मानदंडों को बनाए रखने के लिए MSP पर खरीद से इनकार करने का कठिन निर्णय लिया है।
MSP का महत्व और किसानों की पीड़ा:
न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) किसानों के लिए एक सुरक्षा जाल की तरह होता है। यह वह गारंटीशुदा कीमत है जिस पर सरकार किसानों से उनकी फसल खरीदती है, ताकि उन्हें बाजार की कीमतों में उतार-चढ़ाव से बचाया जा सके और उनकी लागत निकल सके। मूंग, मध्य प्रदेश में एक महत्वपूर्ण दलहनी फसल है, जिसकी खेती बड़े पैमाने पर की जाती है।
सरकार के इस फैसले से हजारों मूंग उत्पादक किसान सकते में हैं:
- आर्थिक नुकसान: MSP पर खरीद न होने से किसानों को अपनी मूंग खुले बाजार में व्यापारियों को बेचनी पड़ेगी। खुले बाजार में अक्सर कीमतें MSP से काफी कम होती हैं, जिससे किसानों को अपनी लागत भी निकालना मुश्किल हो जाएगा और उन्हें भारी आर्थिक नुकसान होगा।
- कर्ज का बोझ: कई किसानों ने मूंग की खेती के लिए कर्ज लिया है। फसल का उचित दाम न मिलने से वे कर्ज चुकाने में असमर्थ हो सकते हैं, जिससे उनका कर्ज का बोझ और बढ़ जाएगा।
- आजीविका पर संकट: हरदा, नर्मदापुरम, सीहोर, विदिशा और रायसेन जैसे जिले, जो मूंग उत्पादन के गढ़ हैं, वहाँ के किसानों की आजीविका सीधे तौर पर इस फसल पर निर्भर करती है। सरकारी खरीद न होने से उनकी आजीविका पर गहरा संकट आ गया है।
- अनिश्चितता का माहौल: इस निर्णय से भविष्य में अन्य फसलों की खरीद को लेकर भी किसानों में अनिश्चितता का माहौल बन गया है।
खरपतवारनाशकों के उपयोग की मजबूरी:
किसान अक्सर खरपतवारनाशकों का उपयोग कुछ मजबूरियों के कारण करते हैं:
- श्रम की कमी: कृषि कार्यों के लिए मजदूरों की उपलब्धता कम होती जा रही है और उनकी मजदूरी भी बढ़ रही है। ऐसे में खरपतवारों को हाथ से निकालने की बजाय रासायनिक छिड़काव आसान और सस्ता विकल्प लगता है।
- लागत प्रभावी: रसायन अक्सर कम समय में बड़े क्षेत्र को कवर कर लेते हैं, जिससे खेती की लागत कम होती है।
हालांकि, किसानों को रासायनिक उपयोग के सही तरीके, मात्रा और इसके दीर्घकालिक प्रभावों के बारे में पूरी जानकारी नहीं होती, जिससे कई बार अत्यधिक या गलत तरीके से उपयोग हो जाता है।
आगे की राह और संभावित समाधान:
इस विवाद ने सरकार और किसानों के बीच एक संवाद की आवश्यकता पर जोर दिया है। सरकार को गुणवत्ता मानकों पर अपनी स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए और किसानों को इन मानकों को पूरा करने में मदद करनी चाहिए। संभावित समाधानों में शामिल हो सकते हैं:
- जागरूकता अभियान: किसानों को खरपतवारनाशकों के सही उपयोग, निर्धारित मात्रा और छिड़काव के समय के बारे में शिक्षित करना।
- वैकल्पिक विधियाँ: जैविक या यांत्रिक खरपतवार नियंत्रण विधियों को बढ़ावा देना।
- प्रोत्साहन: गुणवत्तापूर्ण मूंग उत्पादन करने वाले किसानों को विशेष प्रोत्साहन देना।
- परीक्षण सुविधाएँ: किसानों को अपनी उपज की गुणवत्ता जांचने के लिए आसानी से उपलब्ध और सस्ती परीक्षण सुविधाएँ प्रदान करना।
फिलहाल, मध्य प्रदेश के हजारों मूंग उत्पादक किसान एक अनिश्चित भविष्य का सामना कर रहे हैं, और सरकार को इस समस्या का एक संतुलित और किसान-हितैषी समाधान खोजने की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।