by-Ravindra Sikarwar
नई दिल्ली: योग गुरु बाबा रामदेव के नेतृत्व वाले पतंजलि समूह की कंपनियों को कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय (MCA) की कड़ी जांच का सामना करना पड़ रहा है। मंत्रालय ने पतंजलि से कुछ “संदिग्ध” लेन-देन और “असामान्य” बहीखातों (खातों की किताबों) के बारे में स्पष्टीकरण मांगा है। यह घटनाक्रम ऐसे समय में आया है जब पतंजलि पहले से ही अपनी औषधीय उत्पादों के भ्रामक विज्ञापनों को लेकर कानूनी चुनौतियों का सामना कर रही है।
एमसीए की जांच का कारण:
सूत्रों के अनुसार, कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय को पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड और उससे जुड़ी अन्य समूह कंपनियों के कुछ वित्तीय लेन-देनों में अनियमितताएं और विसंगतियां मिली हैं। इन “संदिग्ध” लेन-देनों में कई ऐसे वित्तीय प्रवाह शामिल हो सकते हैं जो सामान्य व्यावसायिक प्रथाओं के अनुरूप नहीं दिखते या जिनके पीछे कोई स्पष्ट वाणिज्यिक तर्क नहीं है। “असामान्य” बहीखाते का मतलब हो सकता है कि कंपनी के वित्तीय रिकॉर्ड में कुछ प्रविष्टियां या पैटर्न हैं जो ऑडिटर्स या नियामकों के लिए चिंता का विषय बन गए हैं।
मंत्रालय ने पतंजलि समूह को इस संबंध में एक विस्तृत स्पष्टीकरण प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है। यह स्पष्टीकरण यह बताने के लिए मांगा गया है कि ये लेन-देन क्यों और कैसे हुए, और उनका वास्तविक उद्देश्य क्या था। यह जांच एमसीए की उस विस्तृत समीक्षा का हिस्सा हो सकती है जो वह विभिन्न कंपनियों के कॉर्पोरेट गवर्नेंस और वित्तीय पारदर्शिता को सुनिश्चित करने के लिए करता है।
पहले से जारी कानूनी चुनौतियाँ:
यह नई जांच पतंजलि के लिए ऐसे समय में आई है जब वह पहले से ही सुप्रीम कोर्ट में एक महत्वपूर्ण मामले का सामना कर रही है। पतंजलि और उसके सह-संस्थापक बाबा रामदेव व आचार्य बालकृष्ण को अपनी औषधीय उत्पादों के भ्रामक विज्ञापनों, विशेष रूप से ‘दिव्य फार्मेसी’ के विज्ञापनों को लेकर न्यायालय की अवमानना का सामना करना पड़ा है। सुप्रीम कोर्ट ने इन विज्ञापनों में किए गए दावों पर कड़ी आपत्ति जताई थी, खासकर उन दावों पर जिनमें कुछ बीमारियों को ठीक करने की गारंटी दी गई थी। इस मामले में न्यायालय ने पतंजलि से माफी मांगने और भविष्य में ऐसे विज्ञापन न देने का आश्वासन देने को कहा था।
कॉर्पोरेट पारदर्शिता का महत्व:
कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय द्वारा यह जांच कंपनियों के लिए वित्तीय पारदर्शिता और सुशासन के महत्व को रेखांकित करती है। नियामक संस्थाएं यह सुनिश्चित करने के लिए तत्पर रहती हैं कि कंपनियां अपने वित्तीय रिकॉर्ड सही ढंग से बनाए रखें और सभी लेन-देन कानून के अनुसार हों। किसी भी “संदिग्ध” या “असामान्य” गतिविधि से वित्तीय धोखाधड़ी, मनी लॉन्ड्रिंग, या अन्य कॉर्पोरेट कुप्रबंधन का संकेत मिल सकता है, जो नियामक प्राधिकरणों के लिए चिंता का विषय होता है।
आगे क्या?
पतंजलि को अब एमसीए के प्रश्नों का संतोषजनक जवाब देना होगा। मंत्रालय इस स्पष्टीकरण की समीक्षा करेगा और यदि आवश्यक हुआ तो आगे की कार्रवाई कर सकता है, जिसमें विस्तृत ऑडिट, जुर्माना या अन्य कानूनी उपाय शामिल हो सकते हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि पतंजलि इस नई जांच का कैसे जवाब देती है और क्या यह उनके पहले से जारी कानूनी मुद्दों में कोई और जटिलता जोड़ती है। यह मामला भारत में कॉर्पोरेट गवर्नेंस और उपभोक्ता संरक्षण के संदर्भ में महत्वपूर्ण निहितार्थ रखता है।