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लखनऊ: उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के लोकबंधु राजनारायण संयुक्त अस्पताल में सोमवार रात उस समय अफरातफरी मच गई, जब अस्पताल की दूसरी मंजिल पर अचानक आग लग गई। इस भयावह हादसे के बीच ICU में भर्ती एक मरीज की मौत की खबर सामने आई है, जबकि बाकी करीब 200 मरीजों को समय रहते सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया।

महिला मेडिसिन वार्ड से शुरू हुई आग
रात करीब 9 बजे अस्पताल के महिला मेडिसिन वार्ड के पास बने एक कमरे से काला धुआं उठता देखा गया। पहले तो किसी को अंदाजा नहीं था कि क्या हो रहा है, लेकिन कुछ ही देर में आग ने विकराल रूप धारण कर लिया और अस्पताल के दूसरे तल पर फैल गई। धुएं की वजह से मरीजों और उनके तीमारदारों में भगदड़ मच गई।

डॉक्टरों और स्टाफ ने दिखाई बहादुरी
हालात जितने गंभीर थे, उससे कहीं अधिक अद्भुत था अस्पताल कर्मियों का साहस। डॉक्टर, नर्सें और सफाईकर्मी सुरक्षा उपकरणों के बिना ही धुएं में घुस गए और मरीजों को स्ट्रेचर और व्हीलचेयर के जरिए बाहर निकालने लगे। ICU तक धुआं पहुंचने के बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी और मुंह पर कपड़ा बांधकर जान जोखिम में डालते हुए हर मरीज को सुरक्षित निकालने का प्रयास किया।

एक मरीज की मौत, प्रशासन कर रहा जांच
हादसे में 61 वर्षीय राजकुमार प्रजापति, जो ICU के बेड नंबर 314 पर भर्ती थे, उनकी जान नहीं बच सकी। परिजनों का आरोप है कि आग लगने से ऑक्सीजन सप्लाई बाधित हो गई थी, जिसकी वजह से उनकी मृत्यु हुई। राजकुमार को 13 अप्रैल को भर्ती कराया गया था और वह लखनऊ के हुसैनगंज क्षेत्र के छितवापुर के निवासी थे। हालांकि अस्पताल प्रशासन ने अब तक उनकी मौत की आधिकारिक पुष्टि नहीं की है, लेकिन सिविल अस्पताल की रिपोर्ट में मौत की जानकारी दी गई है।

दमकल विभाग और प्रशासन का रेस्क्यू ऑपरेशन
आग की सूचना मिलते ही शहर के विभिन्न फायर स्टेशनों से 12 दमकल गाड़ियां और 2 हाइड्रोलिक वाहन मौके पर पहुंचे। रात करीब 1 बजे तक आग पर पूरी तरह से काबू पा लिया गया। इस बचाव कार्य में पुलिस, नगर निगम, स्वास्थ्य विभाग और प्रशासन के अधिकारी लगातार जुटे रहे। हालांकि अस्पताल की अग्निशमन प्रणाली (सीजफायर सिस्टम) ठीक से काम नहीं कर सकी, जिससे हालात और बिगड़ गए।

मरीजों को अन्य अस्पतालों में स्थानांतरित किया गया
डिप्टी मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री बृजेश पाठक ने खुद मौके पर पहुंचकर राहत कार्यों का निरीक्षण किया। उन्होंने बताया कि हादसे के वक्त अस्पताल में करीब 200 मरीज थे, जिन्हें सिविल अस्पताल, बलरामपुर और KGMU जैसे संस्थानों में सुरक्षित रूप से स्थानांतरित किया गया।

“मानवता की मिसाल बने अस्पताल कर्मी”
घटना के दौरान कई डॉक्टर और नर्सें पूरी रात धुएं और खतरे के बीच मरीजों की जान बचाने में लगी रहीं। कुछ लोग जरूरी दवाइयों और फाइलों को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाने में जुटे रहे। यह पूरी रात चीख-पुकार और अराजकता से भरी रही, लेकिन जिस तरह से अस्पताल स्टाफ ने अपने कर्तव्य को निभाया, उसने मानवता की सच्ची तस्वीर पेश की।

अभी भी उठते हैं कुछ अहम सवाल
हालांकि बड़ी जनहानि टल गई, लेकिन राजकुमार प्रजापति की मौत ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं —

  1. क्या अस्पताल की सुरक्षा व्यवस्था पर्याप्त थी?
  2. सीजफायर सिस्टम फेल क्यों हुआ?
  3. क्या आग लगने से पहले कोई चेतावनी संकेत थे?
  4. ICU जैसी संवेदनशील जगह पर ऐसी स्थिति क्यों बनी?

इन सवालों का जवाब भविष्य की जांच में सामने आएगा, लेकिन यह हादसा एक चेतावनी जरूर है कि अस्पतालों में अग्निशमन और आपातकालीन सुरक्षा की व्यवस्था को अब केवल औपचारिकता नहीं, बल्कि प्राथमिकता बनाना होगा।

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