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by-Ravindra Sikarwar

नई दिल्ली: 2008 के मालेगांव धमाके के मामले में एक विशेष NIA अदालत ने सभी सात आरोपियों को बरी कर दिया है। इन आरोपियों में साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित भी शामिल थे। अदालत ने अपने फैसले में सबूतों को अविश्वसनीय और गवाहों को मुकर जाने वाला बताया।

यह धमाका 29 सितंबर 2008 को महाराष्ट्र के मालेगांव में हुआ था, जिसमें छह लोगों की मौत हो गई थी और 100 से ज़्यादा लोग घायल हुए थे। एक मोटरसाइकिल पर रखे बम में हुए इस विस्फोट को पहले पुलिस ने एक आतंकवादी हमला माना था।

मामले की शुरुआती जाँच और आरोप:
शुरुआत में महाराष्ट्र ATS (आतंकवाद निरोधक दस्ता) ने इस मामले की जाँच की थी और साध्वी प्रज्ञा और लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित समेत कई लोगों को गिरफ़्तार किया था। ATS ने इन पर आरोप लगाया था कि ये एक हिंदू चरमपंथी समूह के सदस्य थे और इन्होंने मुस्लिम बहुल शहर मालेगांव में सांप्रदायिक तनाव भड़काने के लिए यह धमाका किया था।

NIA को सौंपी गई जाँच और कानूनी प्रक्रिया:
बाद में, 2011 में इस मामले की जाँच NIA (राष्ट्रीय जाँच एजेंसी) को सौंप दी गई थी। NIA ने 2016 में साध्वी प्रज्ञा के ख़िलाफ़ कुछ आरोप वापस ले लिए थे, लेकिन कर्नल पुरोहित और अन्य पर मकोका (MCOCA) के तहत आरोप बरकरार रखे थे। हालाँकि, अदालत ने बाद में मकोका के आरोप हटा दिए थे। लंबी कानूनी लड़ाई और कई सुनवाई के बाद, अदालत ने पाया कि NIA और अन्य एजेंसियों द्वारा पेश किए गए सबूत ठोस नहीं थे।

अदालत का फ़ैसला और उसकी वजहें:
अदालत ने कहा कि कई अहम गवाह अपने बयानों से मुकर गए, जिसके चलते आरोपियों के ख़िलाफ़ आरोप साबित नहीं हो सके। जिन गवाहों को पहले जाँच एजेंसियों ने महत्वपूर्ण माना था, उन्होंने सुनवाई के दौरान कुछ भी ऐसा नहीं कहा जिससे आरोपियों का अपराध साबित हो सके। इसके अलावा, अदालत ने इस बात पर भी सवाल उठाए कि जाँच में कुछ सबूतों को सही तरीक़े से पेश नहीं किया गया।

इस फ़ैसले के बाद, अब यह सवाल उठ रहे हैं कि अगर ये सभी आरोपी बेकसूर हैं तो इस हमले के पीछे कौन था। इस मामले ने एक बार फिर से देश में आतंकवाद से जुड़े मामलों की जाँच और न्याय प्रक्रिया पर बहस छेड़ दी है।

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