by-Ravindra Sikarwar
मुंबई: महाराष्ट्र सरकार ने प्राथमिक विद्यालयों में लागू की गई अपनी विवादास्पद त्रि-भाषा (three-language) नीति को भारी विरोध के बाद वापस ले लिया है। इस नीति को कुछ लोगों ने हिंदी को जबरन थोपने के तौर पर देखा था, जिसके बाद राज्य भर में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए थे।
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने रविवार (29 जून, 2025) को कैबिनेट बैठक के बाद इस फैसले की घोषणा की। सरकार ने 16 अप्रैल और 17 जून को जारी किए गए दो सरकारी प्रस्तावों (GRs) को रद्द कर दिया है, जिनमें स्कूलों में हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में पढ़ाने का प्रावधान था।
क्या था विवाद?
यह विवाद तब शुरू हुआ जब महाराष्ट्र सरकार ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के तहत त्रि-भाषा फॉर्मूले को लागू करने के लिए एक सरकारी प्रस्ताव जारी किया। इस प्रस्ताव में यह अनिवार्य कर दिया गया था कि मराठी और अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में कक्षा 1 से 5 तक के छात्रों के लिए हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में पढ़ाया जाएगा।
इस कदम की तुरंत राजनीतिक दलों, सामाजिक और सांस्कृतिक संगठनों और शिक्षाविदों ने कड़ी आलोचना की। विरोधियों का आरोप था कि यह निर्णय मराठी भाषा और संस्कृति के महत्व को कम करेगा और राज्य में हिंदी को जबरन थोपा जा रहा है।
विरोध और राजनीतिक प्रतिक्रिया:
शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) जैसे राजनीतिक दलों ने इस नीति का कड़ा विरोध किया। उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे दोनों ने 5 जुलाई को एक संयुक्त विरोध मार्च निकालने की भी घोषणा की थी। विभिन्न स्थानों पर इन सरकारी प्रस्तावों की प्रतियां भी जलाई गईं, जिसे “मराठी अस्मिता” पर हमला बताया गया।
इस बढ़ते दबाव के बीच, सरकार ने 17 जून को एक संशोधित आदेश जारी किया, जिसमें कहा गया था कि हिंदी “आम तौर पर” तीसरी भाषा होगी, लेकिन यदि किसी कक्षा में 20 से अधिक छात्र किसी अन्य भारतीय भाषा का चयन करना चाहते हैं तो उन्हें यह विकल्प दिया जाएगा। हालांकि, इस संशोधन से भी आलोचक शांत नहीं हुए और विरोध जारी रहा।
सरकार का यू-टर्न और आगे का कदम:
लगातार बढ़ते विरोध और आगामी विधानसभा सत्र को देखते हुए, फडणवीस सरकार ने आखिरकार दोनों विवादास्पद सरकारी प्रस्तावों को रद्द करने का फैसला किया। मुख्यमंत्री ने यह भी घोषणा की है कि शिक्षाविद् डॉ. नरेंद्र जाधव की अध्यक्षता में एक नई समिति का गठन किया जाएगा। यह समिति त्रि-भाषा नीति को लागू करने के लिए एक संशोधित रूपरेखा की सिफारिश करेगी।
मुख्यमंत्री ने कहा कि “हमारे लिए मराठी और मराठी छात्र हमारी नीति के केंद्र में हैं।” उन्होंने यह भी दावा किया कि पिछली सरकार (महा विकास अघाड़ी) ने भी तीन-भाषा फॉर्मूले के लिए एक समिति का गठन किया था, जिसकी सिफारिशों के आधार पर ही यह निर्णय लिया गया था।
इस फैसले के बाद, ठाकरे भाइयों ने 5 जुलाई को होने वाले अपने विरोध मार्च को रद्द कर दिया और इसे “मराठी मानुष की जीत” बताया।
क्यों महत्वपूर्ण है यह घटनाक्रम?
यह घटनाक्रम भाषा नीति पर राज्यों और केंद्र के बीच चल रहे तनाव को दर्शाता है। महाराष्ट्र में यह फैसला ऐसे समय में आया है जब मुंबई में बीएमसी चुनाव नजदीक हैं, जहां क्षेत्रीय पहचान एक महत्वपूर्ण राजनीतिक मुद्दा है। इस कदम को सरकार द्वारा सार्वजनिक भावना के प्रति संवेदनशीलता और राजनीतिक दबाव के सामने झुकने के तौर पर देखा जा रहा है। अब सबकी निगाहें डॉ. नरेंद्र जाधव समिति की सिफारिशों पर टिकी हैं, जो महाराष्ट्र में शिक्षा और भाषा नीति का भविष्य तय करेंगी।