by-Ravindra Sikarwar
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने मंगलवार को एक महत्वपूर्ण अंतरिम आदेश जारी करते हुए प्रदेश के पैरामेडिकल कॉलेजों की मान्यता और प्रवेश प्रक्रिया पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है। न्यायमूर्ति अतुल श्रीधरन और न्यायमूर्ति दीपक खोत की युगलपीठ ने इस मामले में कड़ा रुख अपनाते हुए पैरामेडिकल कॉलेजों की मान्यता प्रक्रिया को ‘हास्यास्पद और बेतुकी’ करार दिया। कोर्ट ने सवाल उठाया कि जब शैक्षणिक सत्र 2023-24 और 2024-25 समाप्त हो चुके हैं, तो उनकी मान्यता 2025 में कैसे दी जा सकती है? इस मामले की अगली सुनवाई 24 जुलाई को नर्सिंग घोटाले से संबंधित याचिकाओं के साथ निर्धारित की गई है।
हाई कोर्ट का आदेश और स्वतः संज्ञान:
हाई कोर्ट का यह आदेश लॉ स्टूडेंट्स एसोसिएशन की ओर से दायर जनहित याचिका के तहत आया, जिसमें नर्सिंग कॉलेजों में फर्जीवाड़े के बाद पैरामेडिकल कॉलेजों की मान्यता और प्रवेश प्रक्रिया में अनियमितताओं का मुद्दा उठाया गया था। याचिकाकर्ता ने कोर्ट को बताया कि मध्य प्रदेश पैरामेडिकल काउंसिल की ओर से शैक्षणिक सत्र 2023-24 और 2024-25 के लिए भूतलक्षी प्रभाव से मान्यता दी जा रही है। इसके अलावा, मध्य प्रदेश आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय से संबद्धता के बिना ही सरकारी और निजी पैरामेडिकल कॉलेजों में अवैध रूप से छात्रों को प्रवेश दिया जा रहा है।
याचिका में यह भी खुलासा किया गया कि नर्सिंग घोटाले की जांच में सीबीआई द्वारा अनुपयुक्त घोषित किए गए कॉलेजों के भवनों में ही अब पैरामेडिकल काउंसिल द्वारा पैरामेडिकल कॉलेजों को मान्यता दी जा रही है। कोर्ट ने इस स्थिति पर कड़ा रुख अपनाते हुए 11 जुलाई को स्वतः संज्ञान लिया और मामले को जनहित याचिका के रूप में पंजीकृत करने का आदेश दिया। साथ ही मध्य प्रदेश पैरामेडिकल काउंसिल के चेयरमैन और रजिस्ट्रार को पक्षकार बनाने के निर्देश भी दिए।
उपमुख्यमंत्री पर सवाल और काउंसिल के तर्क:
सुनवाई के दौरान कोर्ट को बताया गया कि प्रदेश के उपमुख्यमंत्री डॉ. राजेंद्र शुक्ला मध्य प्रदेश पैरामेडिकल काउंसिल के पदेन चेयरमैन हैं। इसके बावजूद चिकित्सा शिक्षा क्षेत्र में अनियमितताएं बदस्तूर जारी हैं। कोर्ट ने इस पर आश्चर्य जताते हुए सवाल किया कि ऐसी नीतियां आखिर कौन बनाता है, जो गुजरे हुए सत्रों के लिए मान्यता और प्रवेश की अनुमति देती हैं।
पैरामेडिकल काउंसिल की ओर से अधिवक्ता ने कोर्ट में तर्क दिया कि कुछ कानूनी और तकनीकी कारणों से पैरामेडिकल पाठ्यक्रमों का शैक्षणिक सत्र देरी से शुरू हुआ। उन्होंने बताया कि भारत सरकार द्वारा 2021 में पैरामेडिकल पाठ्यक्रमों के लिए एक अधिनियम पारित किया गया था, जिसके अनुपालन में मध्य प्रदेश में नई काउंसिल का गठन किया गया और पुरानी एमपी पैरामेडिकल काउंसिल को समाप्त कर दिया गया। हालांकि, नवंबर 2024 में राज्य मंत्रिपरिषद ने एमपी पैरामेडिकल काउंसिल को पुनर्जनित करने का निर्णय लिया, जिसके कारण मान्यता प्रक्रिया में देरी हुई। काउंसिल ने दावा किया कि उनकी सभी कार्यवाहियां विधिसम्मत हैं और राज्य सरकार से अनुमोदित हैं।
कोर्ट का सख्त रुख और आगे की कार्रवाई:
काउंसिल के तर्कों से असंतुष्ट हाई कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि ऐसी नीतियां बनाना और गुजरे हुए सत्रों में प्रवेश देना न केवल बेतुका है, बल्कि हास्यास्पद भी है। कोर्ट ने सवाल उठाया कि ऐसी नीतियां बनाने के पीछे जिम्मेदार कौन है। इसके बाद, युगलपीठ ने अंतरिम आदेश जारी करते हुए प्रदेश के सभी पैरामेडिकल कॉलेजों की मान्यता और प्रवेश प्रक्रिया पर अगली सुनवाई तक रोक लगा दी।
यह मामला अब 24 जुलाई को नर्सिंग घोटाले से संबंधित अन्य याचिकाओं के साथ सुना जाएगा। कोर्ट के इस आदेश से मध्य प्रदेश के 150 से अधिक पैरामेडिकल कॉलेजों की मान्यता और प्रवेश प्रक्रिया पर अनिश्चितता के बादल मंडरा रहे हैं। यह निर्णय चिकित्सा शिक्षा क्षेत्र में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।