by-Ravindra Sikarwar
नई दिल्ली: ऑनलाइन कैब सेवाएं देने वाली प्रमुख कंपनियां, ओला (Ola), उबर (Uber) और रैपिडो (Rapido), अपनी ‘एडवांस-टिपिंग’ (पहले से टिप देना) सुविधा को लेकर अब गहन जांच के दायरे में आ गई हैं। उपभोक्ताओं से मिल रही शिकायतों और केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA) की चिंता के बाद, इन कंपनियों पर अनुचित व्यापारिक तरीकों को अपनाने का आरोप लग रहा है।
क्या है ‘एडवांस-टिपिंग’ और क्यों है यह विवादास्पद?
‘एडवांस-टिपिंग’ वह सुविधा है जहाँ ग्राहक को अपनी राइड शुरू होने से पहले ही ड्राइवर को टिप देने का विकल्प दिया जाता है। यह अक्सर “तेज़ पिकअप के लिए टिप जोड़ें” या “ड्राइवर को आपकी राइड स्वीकार करने के लिए प्रोत्साहन दें” जैसे संदेशों के साथ दिखाई देता है। उबर का कहना है कि ड्राइवर इस सुविधा के साथ राइड को तेजी से स्वीकार कर सकते हैं। रैपिडो और ओला ने भी इसी तरह के मॉडल अपनाए हैं, जहाँ वे उपयोगकर्ताओं को तेजी से राइड मिलने की संभावना बढ़ाने के लिए अतिरिक्त भुगतान करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।
हालांकि, सीसीपीए और कई उपभोक्ता इस प्रथा को अनुचित और अनैतिक मान रहे हैं। केंद्रीय उपभोक्ता मामले मंत्री प्रहलाद जोशी ने स्पष्ट शब्दों में कहा है, “तेजी से सेवा के लिए उपयोगकर्ताओं को अग्रिम रूप से टिप देने के लिए मजबूर करना या प्रेरित करना अनैतिक और शोषणकारी है। ऐसे कार्य अनुचित व्यापारिक प्रथाओं के अंतर्गत आते हैं। टिप प्रशंसा का एक टोकन है, सेवा के लिए कोई शर्त नहीं।”
शिकायतें और सार्वजनिक प्रतिक्रिया
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर उपभोक्ताओं द्वारा इस सुविधा की भारी आलोचना की जा रही है। कई उपयोगकर्ताओं ने शिकायत की है कि ड्राइवर अक्सर अग्रिम टिप के बिना राइड स्वीकार नहीं करते हैं, जिससे उपभोक्ताओं को मजबूरन अतिरिक्त पैसे देने पड़ते हैं। कुछ उपयोगकर्ताओं ने इसे “दिनदहाड़े की लूट” और “धोखाधड़ी” बताया है। यह स्थिति विडंबनापूर्ण है, क्योंकि लोगों ने मोलभाव से बचने के लिए राइड-हेलिंग ऐप्स का उपयोग करना शुरू किया था, लेकिन अब उन्हें ड्राइवरों के साथ ऑनलाइन मोलभाव करने के लिए मजबूर किया जा रहा है।
जांच और ‘डार्क पैटर्न’ की भूमिका
सीसीपीए ने पहले उबर को नोटिस जारी किया था और अब ओला और रैपिडो सहित अन्य राइड-हेलिंग ऐप्स की भी जांच कर रहा है। सीसीपीए इस बात की जांच कर रहा है कि क्या ये सुविधाएँ ‘डार्क पैटर्न’ का हिस्सा हैं। ‘डार्क पैटर्न’ manipulative इंटरफ़ेस डिज़ाइन होते हैं जो उपयोगकर्ताओं को ऐसे विकल्प चुनने के लिए प्रेरित या दबाव डालते हैं जो वे अन्यथा नहीं चुनेंगे, जिससे आमतौर पर उपयोगकर्ता के खर्च पर प्लेटफ़ॉर्म को लाभ होता है। अग्रिम टिपिंग के मामले में, ऐप्स सूक्ष्म रूप से उपयोगकर्ताओं को यह विश्वास दिलाने के लिए प्रेरित करते हैं कि टिप जोड़ने से उन्हें जल्दी राइड मिलने की संभावना बढ़ जाएगी, जिससे वे अधिक भुगतान करने के लिए प्रेरित होते हैं।
एडवरटाइजिंग स्टैंडर्ड्स काउंसिल ऑफ इंडिया (ASCI) के एक अध्ययन में भी पाया गया है कि शीर्ष 53 ऐप्स में से 52 में भ्रामक UI (यूजर इंटरफ़ेस) / UX (यूजर एक्सपीरियंस) प्रथाएं हैं जो उपयोगकर्ताओं को उन चीज़ों का विकल्प चुनने के लिए गुमराह करती हैं जो वे मूल रूप से करना नहीं चाहते थे।
आगे की राह
केंद्रीय मंत्री प्रहलाद जोशी ने कंपनियों से सीसीपीए के हस्तक्षेप का इंतजार किए बिना ऐसी भ्रामक प्रथाओं को सक्रिय रूप से पहचानने और हटाने का आग्रह किया है। उनका मानना है कि यह केवल नियामक अनुपालन का मामला नहीं है, बल्कि उपभोक्ताओं के साथ विश्वास बनाने का भी है। इस जांच का परिणाम भारत में गिग इकोनॉमी (Gig Economy) के लिए एक मिसाल कायम कर सकता है और यह सुनिश्चित कर सकता है कि डिजिटल प्लेटफॉर्म अपने संचालन में निष्पक्षता और जवाबदेही बनाए रखें।