
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ युद्ध का भारत को अप्रत्याशित लाभ मिल रहा है। चीन पर भारी आयात शुल्क लगने के कारण, चीनी कंपनियां अब भारतीय कंपनियों को अपने व्यवसायों में बड़ी हिस्सेदारी देने के लिए सहमत हो रही हैं। इस बदलाव से भारतीय कंपनियों को आधुनिक तकनीक प्राप्त होगी और वे विनिर्माण क्षेत्र में अधिक मजबूत स्थिति में आ सकेंगी।
मुख्य बातें:
- चीनी कंपनियां भारत में बड़ी हिस्सेदारी देने को तैयार हो रही हैं।
- भारतीय विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा प्रोत्साहन दिए जा रहे हैं।
- भारत में अब लगभग 20% आईफ़ोन का निर्माण स्थानीय स्तर पर हो रहा है।
व्यापार युद्ध का भारत के लिए सकारात्मक पहलू:
अमेरिका और चीन के बीच जारी व्यापार युद्ध अप्रत्यक्ष रूप से भारत के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है। चीन पर 245% तक के भारी टैरिफ लगने के बाद, चीनी कंपनियों के लिए अमेरिका को सामान निर्यात करना मुश्किल हो गया है। इसके विपरीत, अमेरिका ने भारत पर केवल 26% का आयात शुल्क लगाया है (जिसे फिलहाल ट्रंप ने 90 दिनों के लिए टाल दिया है)। इसका मतलब है कि भारत और चीन की संयुक्त उद्यम वाली कंपनियां भारत से अमेरिका को माल भेजकर लाभ उठा सकती हैं।
तकनीकी हस्तांतरण की संभावना:
इस नए परिदृश्य में, शंघाई हाइली ग्रुप और हायर जैसी चीनी कंपनियों ने भारत में निवेश करने और स्थानीय भागीदारों के साथ सहयोग करने में रुचि दिखाई है। शंघाई हाइली ग्रुप तो अपने भारतीय भागीदारों के साथ नवीनतम तकनीक साझा करने के लिए भी तैयार है। यह भारतीय विनिर्माण क्षेत्र के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर है, क्योंकि अक्सर बेहतरीन तकनीक की कमी के कारण ही भारतीय कंपनियां वैश्विक स्तर पर मजबूत स्थान नहीं बना पाई हैं।
चीनी कंपनियों का मन बदलने का कारण:
चीनी कंपनियों के पहले अनिच्छुक रहने के बाद अब स्थानीय भागीदारों को स्वामित्व देने की पहल करने के दो मुख्य कारण हैं:
- अमेरिकी टैरिफ का प्रभाव: अमेरिका के भारी टैरिफ के कारण चीन से सामान भेजना महंगा हो गया है। भारत पर अपेक्षाकृत कम आयात शुल्क लगने से, भारत-चीन संयुक्त उद्यम के लिए अमेरिका को निर्यात करना अधिक आकर्षक विकल्प बन गया है।
- भारत का विशाल बाजार: भारत एक बड़ी आबादी वाला देश है और इसकी अर्थव्यवस्था लगातार बढ़ रही है। यह चीनी कंपनियों के लिए एक आकर्षक बाजार है, जहाँ भविष्य में व्यापार के और भी अधिक अवसर मौजूद हैं।
प्रोत्साहन का आकर्षण:
विशेष रूप से इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र में चीनी कंपनियों की रुचि का एक और महत्वपूर्ण कारण भारत सरकार द्वारा दी जा रही परफॉर्मेंस लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) जैसी योजनाएं हैं। इन योजनाओं के तहत, सरकार भारतीय कंपनियों को वित्तीय सहायता प्रदान करती है। इलेक्ट्रॉनिक सामान बनाने वाली चीनी कंपनियों का मानना है कि इन प्रोत्साहनों से भारत में उत्पादन की लागत उनके देश के बराबर आ जाएगी। सरकार ने विभिन्न क्षेत्रों में विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए 26 बिलियन डॉलर का प्रोत्साहन पैकेज दिया है।
आईफोन का स्थानीय निर्माण एक उदाहरण:
सरकार चीन से आयात पर निर्भरता कम करने और भारत को एक विनिर्माण केंद्र के रूप में स्थापित करने पर ध्यान केंद्रित कर रही है। इस दिशा में कुछ सफलता भी मिली है। एक अनुमान के अनुसार, आज लगभग 20% आईफ़ोन भारत में निर्मित हो रहे हैं, जबकि कुछ साल पहले सभी आईफ़ोन चीन में बनते थे।
चुनौतियां अभी भी मौजूद:
हालांकि, कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि टैरिफ युद्ध से भारत को लाभ मिल सकता है, लेकिन कई बाधाएं भी हैं। पिछले कुछ दशकों में भारत में बुनियादी ढांचे में सुधार हुआ है, खासकर सड़कों और बिजली के क्षेत्र में, लेकिन विनिर्माण में एक बड़ी ताकत बनने के लिए यह पर्याप्त नहीं है।
आपूर्ति श्रृंखला, कौशल और अन्य बाधाएं:
भारत अभी भी तकनीक के मामले में कुछ पिछड़ा हुआ है। इसके अलावा, देश में कुशल श्रम की कमी है और आपूर्ति श्रृंखला से संबंधित भी कई चुनौतियां हैं। कई भारतीय उद्योग अभी भी चीन से आयातित मशीनरी पर निर्भर हैं, और कई उत्पादों के निर्माण के लिए बड़े पैमाने पर कल-पुर्जे दूसरे देशों से मंगाए जाते हैं, जिससे एक पूर्ण विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र का अभाव है। इसके अतिरिक्त, भारत के सख्त श्रम कानून भी कंपनियों के लिए मुश्किलें पैदा करते हैं।
महंगी जमीन और नौकरशाही:
एक अन्य समस्या यह है कि नए संयंत्र स्थापित करने के लिए भूमि अधिग्रहण में कठिनाई होती है और इसमें काफी समय लगता है। जमीन की कीमतें भी अधिक हैं, जिससे संयंत्र लगाने की लागत बढ़ जाती है। सरकारी नियमों और प्रक्रियाओं के कारण भी कंपनियों को परेशानी होती है, क्योंकि संयंत्र स्थापित करने के लिए कई सरकारी एजेंसियों से मंजूरी लेनी पड़ती है। हालांकि, केंद्र सरकार इन मामलों में लगातार सुधार कर रही है, लेकिन चीन और वियतनाम जैसे देशों से प्रतिस्पर्धा करने के लिए इन सुधारों की गति को और तेज करने की आवश्यकता है।
पूर्वी एशियाई देशों से पीछे:
सच्चाई यह है कि पिछले एक दशक में देश की अर्थव्यवस्था में विनिर्माण क्षेत्र की हिस्सेदारी घटी है। 10 साल पहले यह 15% थी, जो अब घटकर 13% रह गई है। पूर्वी एशियाई देशों की अर्थव्यवस्थाओं में विनिर्माण क्षेत्र का योगदान लगभग 25% है, जिससे पता चलता है कि भारत इस मामले में काफी पीछे है।
एक बड़ा अवसर:
चीन, जिसकी अर्थव्यवस्था भारत से पांच गुना बड़ी है, की सफलता में विनिर्माण क्षेत्र का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। कई अर्थशास्त्रियों का मानना है कि भारत की अर्थव्यवस्था में सेवा क्षेत्र का प्रभुत्व है और वह विनिर्माण में कभी भी चीन का मुकाबला नहीं कर पाएगा। भले ही यह बात सही हो, लेकिन अगर टैरिफ युद्ध के कारण देश के सामने विनिर्माण में एक मजबूत ताकत बनने का अवसर आया है, तो उसे निश्चित रूप से भुनाना चाहिए। ऐसी खबरें भी आ रही हैं कि भारत सरकार अमेरिका के साथ व्यापार समझौते का पहला चरण सितंबर-अक्टूबर तक पूरा कर लेगी, जिससे भारतीय निर्यात क्षेत्र को लाभ हो सकता है और बड़े पैमाने पर रोजगार पैदा करने में मदद मिल सकती है, जो भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ी चुनौती बनी हुई है।