by-Ravindra Sikarwar
भुवनेश्वर, ओडिशा: ओडिशा के केंदुझर जिले से एक दिल दहला देने वाली घटना सामने आई है, जहाँ कथित तौर पर गो तस्करी के संदेह में दो दलित पुरुषों को बर्बरतापूर्ण तरीके से प्रताड़ित किया गया। आरोप है कि इन पुरुषों का आधा मुंडन किया गया, उनके साथ बेरहमी से मारपीट की गई, और फिर उन्हें घसीटकर घास खाने पर मजबूर किया गया। यह अमानवीय कृत्य एक बार फिर समाज में व्याप्त जातिगत भेदभाव और कानून को अपने हाथ में लेने की बढ़ती प्रवृत्ति को उजागर करता है।
घटना का विस्तृत विवरण:
यह वीभत्स घटना केंदुझर जिले के किसी दूरदराज के इलाके में घटित हुई। पीड़ितों की पहचान दलित समुदाय के सदस्यों के रूप में हुई है। स्थानीय सूत्रों और उपलब्ध जानकारी के अनुसार, कुछ स्थानीय लोगों ने इन दोनों पुरुषों को गो तस्करी के संदेह में पकड़ा था। इसके बाद, भीड़ ने बिना किसी कानूनी प्रक्रिया का पालन किए, स्वयं ही उन्हें “दंडित” करने का फैसला कर लिया।
आरोपियों ने पहले दोनों पुरुषों का आधा सिर और मूंछें मुंडवा दीं, जो कि अपमानित करने का एक अत्यंत क्रूर तरीका है। इसके बाद, उन्हें शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया गया। सबसे अमानवीय कृत्य तब सामने आया जब उन्हें घसीटकर सड़कों पर चलने और घास खाने के लिए मजबूर किया गया, जो कि किसी भी इंसान के साथ किया जाने वाला अत्यंत बर्बर व्यवहार है। इस पूरी घटना का वीडियो भी बनाया गया, जो अब सोशल मीडिया पर प्रसारित हो रहा है, जिससे यह बर्बरता सबके सामने आ गई है।
पुलिस कार्रवाई और कानूनी पहलू:
घटना की सूचना मिलते ही, स्थानीय पुलिस ने मामले का संज्ञान लिया और तत्काल कार्रवाई शुरू की। पुलिस ने पीड़ितों के बयान दर्ज किए हैं और इस बर्बरता में शामिल आरोपियों की पहचान करने और उन्हें गिरफ्तार करने की प्रक्रिया तेज कर दी है। आरोपियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की विभिन्न संबंधित धाराओं, जैसे मारपीट (Assault), मानहानि (Defamation), और अमानवीय व्यवहार (Inhuman Treatment) के तहत मामला दर्ज किए जाने की संभावना है। इसके अतिरिक्त, दलित समुदाय से संबंधित होने के कारण, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत भी प्रावधान लगाए जा सकते हैं, जो ऐसे मामलों में सख्त दंड का प्रावधान करते हैं।
पुलिस ने यह भी स्पष्ट किया है कि भले ही गो तस्करी का आरोप हो, लेकिन किसी भी व्यक्ति को कानून को अपने हाथ में लेने का अधिकार नहीं है। इस तरह की बर्बरता पूरी तरह से अस्वीकार्य है और कानून के शासन का उल्लंघन है।
जातिगत अत्याचार और सामाजिक चिंताएँ:
यह घटना एक बार फिर दलितों के खिलाफ होने वाले जघन्य अत्याचारों और समाज में गहराई तक पैठी जातिगत पूर्वाग्रहों को दर्शाती है। भले ही गो तस्करी का संदेह हो, लेकिन किसी को भी इस तरह से सार्वजनिक रूप से अपमानित और प्रताड़ित करने का अधिकार नहीं है। यह घटना दर्शाती है कि कैसे कुछ लोग अपने निहित स्वार्थों या पूर्वाग्रहों के कारण कानून को धत्ता बताकर हिंसा का सहारा लेते हैं।
इस तरह की घटनाओं से न केवल पीड़ितों को शारीरिक और मानसिक आघात पहुँचता है, बल्कि यह समाज के ताने-बाने को भी कमजोर करती हैं। यह अत्यंत आवश्यक है कि प्रशासन ऐसे मामलों में त्वरित और कठोर कार्रवाई करे ताकि एक स्पष्ट संदेश जाए कि ऐसी अमानवीय हरकतों को किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। विभिन्न सामाजिक संगठनों और बुद्धिजीवियों ने भी इस घटना की कड़ी निंदा की है और दोषियों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई की मांग की है। यह घटना समाज में समानता और न्याय के मूल्यों को स्थापित करने की दिशा में अभी भी बहुत कुछ किए जाने की आवश्यकता को रेखांकित करती है।