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by-Ravindra Sikarwar

नई दिल्ली: भारत अपनी अंतरिक्ष क्षमताओं को अभूतपूर्व गति से बढ़ा रहा है। एक महत्वपूर्ण रणनीतिक फैसले के तहत, भारत सरकार ने 52 सैन्य और निगरानी उपग्रहों के एक बेड़े को तेजी से अंतरिक्ष में स्थापित करने का निर्देश दिया है। यह कदम एक गोपनीय अभियान, जिसे “ऑपरेशन सिंदूर” कहा जा रहा है, के बाद उठाया गया है। इस अभियान के दौरान सुरक्षा संबंधी कुछ महत्वपूर्ण खामियां उजागर हुई थीं, जिसके बाद सरकार ने वास्तविक समय की निगरानी और सुरक्षित संचार की आवश्यकता को महसूस किया।

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) इस महत्वाकांक्षी परियोजना को पूरा करने के लिए रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) के साथ मिलकर काम कर रहा है।

क्या है ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का संदर्भ?
भले ही ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की विस्तृत जानकारी सार्वजनिक नहीं की गई है, लेकिन रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि यह एक गुप्त निगरानी और खुफिया जानकारी जुटाने वाला अभियान था। इस अभियान के दौरान, भारत ने अपनी सीमाओं और संवेदनशील क्षेत्रों की निगरानी क्षमताओं का आकलन किया। इस आकलन से यह स्पष्ट हुआ कि दुश्मन की हरकतों पर चौबीसों घंटे, सातों दिन नजर रखने के लिए भारत को एक मजबूत और व्यापक उपग्रह नेटवर्क की जरूरत है। इस जरूरत को पूरा करने के लिए ही 52 उपग्रहों के एक बेड़े को जल्द से जल्द लॉन्च करने का निर्णय लिया गया है।

क्यों 52 उपग्रहों की है ज़रूरत?
इतनी बड़ी संख्या में उपग्रहों को लॉन्च करने के पीछे एक खास रणनीति है, जिसे ‘उपग्रह तारामंडल’ (Satellite Constellation) कहा जाता है। यह एक ऐसा नेटवर्क होता है जिसमें कई छोटे उपग्रह एक साथ काम करते हैं। इसके कई फायदे हैं:

  1. निरंतर कवरेज: कुछ उपग्रहों के मुकाबले, कई उपग्रहों का नेटवर्क किसी भी क्षेत्र की लगातार निगरानी सुनिश्चित करता है। एक उपग्रह से संपर्क टूटने या उसके निष्क्रिय होने पर भी बाकी उपग्रह काम करते रहते हैं।
  2. हाई-रिजॉल्यूशन इमेजरी: यह तारामंडल भारत की सीमाओं, विशेषकर चीन और पाकिस्तान से लगी सीमाओं, और हिंद महासागर क्षेत्र में मौजूद गतिविधियों की उच्च-गुणवत्ता वाली तस्वीरें और वीडियो उपलब्ध कराएगा।
  3. सुरक्षित संचार: इन उपग्रहों में से कई का उपयोग भारतीय सशस्त्र बलों के लिए सुरक्षित और निर्बाध संचार स्थापित करने के लिए किया जाएगा। इससे सेना, नौसेना और वायु सेना के बीच संपर्क और समन्वय मजबूत होगा।
  4. रणनीतिक लाभ: यह नेटवर्क भारत को युद्ध जैसी स्थिति में दुश्मन के ठिकानों और गतिविधियों का सटीक आकलन करने में मदद करेगा, जिससे सैन्य अभियानों को प्रभावी ढंग से अंजाम दिया जा सकेगा।

लॉन्च की प्रक्रिया में तेजी:
इस मिशन को पूरा करने के लिए ISRO ने अपने लॉन्च कार्यक्रम में बड़ा बदलाव किया है। इन उपग्रहों को मुख्य रूप से PSLV (Polar Satellite Launch Vehicle) और SSLV (Small Satellite Launch Vehicle) रॉकेटों का उपयोग करके लॉन्च किया जाएगा। SSLV, जो छोटे उपग्रहों के लिए एक नया और किफायती लॉन्च वाहन है, इस मिशन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा क्योंकि यह कम समय में अधिक उपग्रहों को कक्षा में स्थापित कर सकता है।

सरकार ने ISRO को स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि इस परियोजना को निर्धारित समय से पहले पूरा किया जाए, जिससे भारत अपनी अंतरिक्ष-आधारित सुरक्षा क्षमताओं में आत्मनिर्भर बन सके और किसी भी बाहरी खतरे का प्रभावी ढंग से मुकाबला कर सके। यह कदम भारत की रक्षा तैयारियों में एक गेम चेंजर साबित हो सकता है।

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