by-Ravindra Sikarwar
नई दिल्ली: भारत ने वैश्विक मंच पर आतंकवाद के खिलाफ अपनी नीति को और अधिक कठोर और स्पष्ट करते हुए यह घोषणा की है कि वह अब “व्यक्तिगत आतंकवादी कृत्यों” और “राज्य-प्रायोजित आतंकवाद” के बीच कोई अंतर नहीं करेगा। यह ऐतिहासिक बदलाव भारत की आतंकवाद विरोधी रणनीति में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है और यह दर्शाता है कि नई दिल्ली उन देशों के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई करने के लिए तैयार है जो आतंकवादियों को पनाह देते हैं या उनका समर्थन करते हैं।
नीतिगत बदलाव का कारण और निहितार्थ:
यह नीतिगत बदलाव भारत द्वारा दशकों से सीमा पार आतंकवाद का सामना करने के अनुभवों का परिणाम है। भारत का मानना है कि कई बार आतंकवादी समूह पड़ोसी देशों से सक्रिय या निष्क्रिय समर्थन प्राप्त करते हैं, जिससे वे लगातार अपनी गतिविधियों को अंजाम दे पाते हैं। पहले, अंतरराष्ट्रीय समुदाय अक्सर व्यक्तिगत आतंकवादी हमलों को ‘कानून और व्यवस्था की समस्या’ के रूप में देखता था, जबकि राज्य-प्रायोजित आतंकवाद को ‘राजनीतिक मुद्दे’ के रूप में। भारत इस दोहरे रवैये को समाप्त करना चाहता है।
इस नई नीति के तहत, यदि कोई आतंकवादी कृत्य होता है, तो भारत इसे केवल कुछ व्यक्तियों द्वारा किया गया अपराध नहीं मानेगा, बल्कि यह जांच करेगा कि क्या इसमें किसी राज्य या उसकी संस्थाओं का हाथ है। यदि ऐसे सबूत मिलते हैं, तो भारत उस राज्य को सीधे तौर पर जिम्मेदार ठहराएगा और उसके खिलाफ उचित कदम उठाएगा। इसका मतलब यह है कि आतंकवाद को अब युद्ध के एक कार्य के रूप में देखा जाएगा, जिसके परिणामस्वरूप सीमा पार हमलों सहित कड़ी प्रतिक्रिया हो सकती है।
‘ऑपरेशन सिंदूर’ और मजबूत होती रणनीति:
हाल ही में, भारत ने “ऑपरेशन सिंदूर” जैसी सैन्य कार्रवाइयों के माध्यम से अपनी दृढ़ता का प्रदर्शन किया है। इस ऑपरेशन में, भारत ने सीमा पार के आतंकवादी ठिकानों और यहां तक कि कुछ हवाई ठिकानों को भी निशाना बनाया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्पष्ट रूप से कहा है कि “यह युग आतंकवाद का नहीं है” और भारत अपने तरीके से, अपनी शर्तों पर जवाब देगा। उन्होंने परमाणु ब्लैकमेल की किसी भी कोशिश को बर्दाश्त नहीं करने और परमाणु ब्लैकमाले की आड़ में पनप रहे आतंकी ठिकानों पर सटीक और निर्णायक प्रहार करने की बात कही है।
यह नीतिगत बदलाव केवल सैन्य कार्रवाई तक सीमित नहीं है। इसमें खुफिया जानकारी को मजबूत करना, डिजिटल प्लेटफॉर्म की निगरानी करना, और ऐसे देशों को लक्षित करने के लिए आर्थिक और कूटनीतिक लाभ का उपयोग करना भी शामिल है जो आतंकवादी समूहों को पनाह देते हैं या वित्त पोषण करते हैं। भारत अंतरराष्ट्रीय खुफिया एजेंसियों के साथ सहयोग बढ़ाने और आतंकवाद विरोधी अभियानों की सटीकता और समयबद्धता में सुधार करने पर भी जोर दे रहा है।
वैश्विक समर्थन और चुनौतियाँ:
भारत की इस “जीरो टॉलरेंस” नीति को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी समर्थन मिल रहा है। आसियान और इंडोनेशिया जैसे देशों ने आतंकवाद के खिलाफ भारत की नई नीति को व्यापक समर्थन दिया है। कई विशेषज्ञ मानते हैं कि यह नीति दुनिया को यह स्पष्ट संदेश देती है कि आतंकवाद किसी भी रूप में स्वीकार्य नहीं है, चाहे वह व्यक्तिगत स्तर पर हो या राज्य द्वारा समर्थित।
हालांकि, इस नीति के क्रियान्वयन में चुनौतियाँ भी हैं। सबसे बड़ी चुनौती यह साबित करना है कि कोई विशेष आतंकवादी कृत्य राज्य-प्रायोजित है। इसके लिए ठोस खुफिया जानकारी और अंतरराष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता होगी। इसके अलावा, ऐसे देशों से राजनयिक और आर्थिक प्रतिरोध का सामना भी करना पड़ सकता है जो आतंकवाद को अपनी विदेश नीति के एक उपकरण के रूप में इस्तेमाल करते हैं।
कुल मिलाकर, भारत की यह नई और दृढ़ आतंकवाद विरोधी नीति देश की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। यह न केवल आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में भारत की प्रतिबद्धता को मजबूत करती है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय से भी इस वैश्विक खतरे से निपटने के लिए एक एकीकृत और निर्णायक दृष्टिकोण अपनाने का आह्वान करती है।