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अरुणाचल प्रदेश में कुछ स्थानों के नामों को चीन द्वारा फिर से बदले जाने पर भारत ने कड़ा रुख अपनाया है। विदेश मंत्रालय ने चीन की इस हरकत की कड़ी निंदा करते हुए स्पष्ट शब्दों में कहा है कि नाम बदलने के इस प्रयास से यह सच्चाई नहीं बदलेगी कि अरुणाचल प्रदेश हमेशा से भारत का अभिन्न अंग रहा है और रहेगा।

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने इस मुद्दे पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा, “हमने देखा है कि चीन भारतीय राज्य अरुणाचल प्रदेश में स्थानों के नाम बदलने की अपनी निरर्थक कोशिशों में लगा हुआ है। अपनी सुसंगत स्थिति के अनुरूप, हम इस तरह के प्रयासों को स्पष्ट रूप से अस्वीकार करते हैं।” उन्होंने आगे जोर देकर कहा, “नाम बदलने का यह कार्य इस अकाट्य सत्य को नहीं बदल सकता कि अरुणाचल प्रदेश भारत का एक अविभाज्य हिस्सा था, है और सदैव रहेगा।”

चीन अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा करता रहा है और इसे दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा बताता है। यह पहली बार नहीं है जब चीन ने इस तरह की हरकत की है। अतीत में भी, चीन ने अरुणाचल प्रदेश के विभिन्न स्थानों के मनमाने नाम जारी किए हैं, जिन्हें भारत ने हमेशा दृढ़ता से खारिज किया है। 2024 में, चीन ने 30 ऐसे नए नामों की सूची जारी की थी, जिसे भारत ने सिरे से नकार दिया था।

अरुणाचल प्रदेश को लेकर भारत और चीन के बीच सीमा विवाद एक लंबे समय से चला आ रहा है और यह दोनों देशों के बीच तनाव का एक प्रमुख कारण है। यह रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्र चीन के तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र के साथ एक लंबी सीमा साझा करता है।

भारत-चीन सीमा विवाद की पृष्ठभूमि:
भारत और चीन के बीच सीमा विवाद दशकों पुराना है। दोनों देशों के बीच की वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) ही प्रभावी सीमा है। इस सीमा रेखा का एक हिस्सा, जिसे मैकमोहन रेखा के रूप में जाना जाता है, भारत के अरुणाचल प्रदेश को तिब्बत से अलग करती है। हालांकि, चीन इस रेखा को मान्यता नहीं देता है और पूरे अरुणाचल प्रदेश को दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा बताकर अपना दावा करता है। चीन इस क्षेत्र को ‘ज़ांगनान’ कहता है।

भारत लगातार चीन के इन दावों को खारिज करता रहा है और उसने हमेशा यह स्पष्ट किया है कि अरुणाचल प्रदेश भारत का एक अविभाज्य और अभिन्न हिस्सा है। भारत का यह दृढ़ रुख चीन के बार-बार नाम बदलने की कोशिशों के बावजूद कायम है। विदेश मंत्रालय का नवीनतम बयान इसी दृढ़ संकल्प को दर्शाता है और चीन को एक स्पष्ट संदेश देता है कि इस तरह की कार्रवाइयों से जमीनी हकीकत नहीं बदलेगी।

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