
आजकल मोबाइल बच्चों की दिनचर्या का अहम हिस्सा बन चुका है। छोटे बच्चे, जिनकी उम्र 4-5 साल है, मोबाइल गेम्स और स्क्रीन टाइम की लत के कारण गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का सामना कर रहे हैं। एक चौंकाने वाली घटना में, साढ़े चार साल के एक बच्चे को दिनभर मोबाइल चलाने के कारण फिजियोथेरेपी की आवश्यकता पड़ी। विशेषज्ञों के अनुसार, अत्यधिक मोबाइल उपयोग से बच्चों में मांसपेशियों की कमजोरी, आंखों पर असर, मानसिक तनाव और व्यवहार संबंधी समस्याएं बढ़ रही हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का कहना है कि 5 साल से कम उम्र के बच्चों को स्क्रीन के सामने एक घंटे से ज्यादा समय नहीं बिताना चाहिए, और 2 साल से छोटे बच्चों को तो स्क्रीन से पूरी तरह दूर रखना चाहिए।
बच्चों में स्क्रीन टाइम के दुष्प्रभाव:
- गर्दन और कंधों में दर्द
- आंखों की रोशनी पर असर
- मोटापा और आलस्य
- चिड़चिड़ापन और गुस्सा
- एकाग्रता में कमी
चौंकाने वाले आंकड़े:
- नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) 2023 के अनुसार, 10 से 18 वर्ष के बच्चों में आत्महत्या के मामलों में 25% की वृद्धि हुई है, जिसमें प्रमुख कारण मोबाइल और ऑनलाइन गेमिंग की लत है।
- 2022 में पबजी जैसे गेम्स के कारण 15 से अधिक बच्चों ने आत्महत्या की।
- एक सर्वेक्षण के अनुसार, 12 वर्ष तक के 42% बच्चे प्रतिदिन औसतन 2 से 4 घंटे मोबाइल या टैबलेट का उपयोग करते हैं।
- लगभग 23.8% बच्चे सोने से पहले मोबाइल का उपयोग करते हैं।
- 37.15% बच्चों ने स्मार्टफोन के अत्यधिक उपयोग के कारण एकाग्रता में कमी का अनुभव किया है।
डिजिटल डिटॉक्स: बच्चों में डिजिटल लत से छुटकारा पाने का उपाय डिजिटल डिटॉक्स का मतलब है कुछ समय के लिए डिजिटल डिवाइस से दूर रहना ताकि शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार हो सके। इसके तहत बच्चों को स्क्रीन टाइम कम करने और रियल वर्ल्ड एक्टिविटीज करने के लिए प्रेरित किया जाता है।
डिजिटल डिटॉक्स के कुछ उपाय:
- नो-फोन जोन: बेडरूम या डाइनिंग एरिया में फोन और लैपटॉप को न रखें।
- स्क्रीन टाइम ट्रैक करें: यह जानना जरूरी है कि बच्चे कितना समय डिजिटल डिवाइस पर बिता रहे हैं।
- डिजिटल ब्रेक लें: बच्चों को हर कुछ घंटों में डिजिटल उपकरणों से ब्रेक लेने के लिए कहें और उनकी आंखों को आराम दें।
- सोशल मीडिया लिमिट तय करें: बच्चों को केवल कुछ समय सोशल मीडिया पर बिताने के लिए कहें।
- रियल वर्ल्ड एक्टिविटीज: बच्चों को किताबें पढ़ने, बाहर खेल खेलने या दोस्तों से मिलने के लिए प्रोत्साहित करें।
भारत में डिजिटल डिटॉक्स की पहल: भारत में कई संस्थान और संगठन बच्चों को डिजिटल लत से मुक्त करने के लिए कार्य कर रहे हैं। बेंगलुरु स्थित राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य और तंत्रिका विज्ञान संस्थान (NIMHANS) में विशेष क्लीनिक संचालित होते हैं, जहां बच्चों और युवाओं को तकनीकी लत से मुक्ति के लिए परामर्श और उपचार दिया जाता है। इसी तरह दिल्ली के फोर्टिस मानसिक स्वास्थ्य केंद्र द्वारा डिजिटल डिटॉक्स कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
कुछ राज्य जैसे महाराष्ट्र और राजस्थान में स्कूलों में ‘नो-फोन डे’ लागू किया गया है ताकि बच्चे मोबाइल से दूर रहें। साथ ही, कई ग्राम पंचायतों ने ‘डिजिटल उपवास’ की पहल शुरू की है, जिसमें सप्ताह में एक दिन मोबाइल का उपयोग नहीं किया जाता।
खतरनाक मोबाइल गेम्स:
- फ्री फायर: यह बैटल रॉयल गेम हिंसा और तनाव बढ़ाता है।
- पबजी/बीजीएमआई: प्रतिबंधित होने के बावजूद यह गेम बच्चों में आक्रामकता को बढ़ाता है।
- कॉल ऑफ ड्यूटी: हिंसक दृश्यों और मल्टीप्लेयर प्रतियोगिता के कारण चिड़चिड़ापन बढ़ता है।
- फोर्टनाइट: इसमें अत्यधिक स्क्रीन टाइम और माइक्रो ट्रांजेक्शन्स की समस्या होती है।
- रॉबलाक्स: इस गेम में बच्चों के लिए उपयुक्त कंटेंट होता है, लेकिन इसमें साइबर बुलिंग का खतरा रहता है।
- सबवे सर्फर और कैंडी क्रश: ये गेम सीधे नुकसान नहीं पहुंचाते, लेकिन इनके कारण बच्चों में स्क्रीन की लत लग सकती है।
बच्चों में गर्दन और कंधे के दर्द का कारण: कई माता-पिता बच्चों को गर्दन दर्द के कारण फिजियोथेरेपी के लिए लेकर आते हैं, जबकि असल में बच्चों का ज्यादा मोबाइल उपयोग इस दर्द का मुख्य कारण होता है। अक्सर माता-पिता यह नहीं बताते कि बच्चों की गर्दन में दर्द मोबाइल चलाने के कारण हो रहा है, बल्कि स्कूल के बैग को भारी बताते हैं।
इस तरह की समस्याओं से बचने के लिए बच्चों के डिजिटल डिटॉक्स और स्क्रीन टाइम पर नियंत्रण बेहद जरूरी है।