नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि किसी व्यक्ति को ‘मियां-तियां’ या ‘पाकिस्तानी’ कहना भले ही अनुचित हो, लेकिन यह भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 298 के तहत धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला अपराध नहीं माना जा सकता।
क्या है पूरा मामला?
यह मामला झारखंड के चास उप-विभागीय कार्यालय से जुड़ा है, जहां एक उर्दू अनुवादक और कार्यवाहक क्लर्क ने शिकायत दर्ज कराई थी। शिकायतकर्ता का आरोप था कि जब वह सूचना के अधिकार (RTI) के आवेदन से जुड़ी जानकारी देने गया, तो आरोपी ने उसके धर्म का हवाला देते हुए अपमानजनक शब्द कहे। साथ ही, उसके आधिकारिक कार्य में बाधा डालने और दुर्व्यवहार करने का आरोप भी लगाया गया।
इसके बाद आरोपी के खिलाफ IPC की धारा 353 (लोक सेवक पर हमला या बल प्रयोग) और 504 (जानबूझकर अपमान करना) के तहत मामला दर्ज किया गया।
सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी को किया बरी
झारखंड हाईकोर्ट ने आरोपी की याचिका खारिज कर दी थी, जिसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने 11 फरवरी को सुनवाई करते हुए कहा कि धारा 353 के तहत आरोप बनाए रखने के लिए हमले या बल प्रयोग का कोई ठोस प्रमाण नहीं है। अदालत ने यह भी माना कि किसी को ‘मियां-तियां’ या ‘पाकिस्तानी’ कहना भले गलत हो, लेकिन यह धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का अपराध नहीं बनता।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा:
- आरोपी को सभी आरोपों से मुक्त किया जाता है।
- धारा 298 के तहत मामला नहीं बनता, क्योंकि इससे किसी की धार्मिक भावनाएं ठेस नहीं पहुंचीं।
- हाईकोर्ट के आदेश को निरस्त करते हुए निचली अदालत के फैसले को भी रद्द किया जाता है।
न्यायालय का निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि किसी को अपमानजनक शब्द कहना गलत है, लेकिन इसे धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का आपराधिक कृत्य नहीं माना जा सकता। हालांकि, अदालत ने ऐसी भाषा के उपयोग को अनुचित और असभ्य करार दिया।
इस फैसले के बाद यह चर्चा शुरू हो गई है कि किस हद तक शब्दों का इस्तेमाल कानूनी कार्रवाई का आधार बन सकता है, और इस फैसले को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और कानूनी परिभाषाओं के बीच संतुलन के रूप में देखा जा रहा है।