by-Ravindra Sikarwar
पणजी, गोवा: गोवा की एक अदालत ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया है, जिसमें कहा गया है कि विधानसभा या संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन (Delimitation) एक विशुद्ध रूप से प्रशासनिक कार्रवाई है और इसे चुनाव प्रक्रिया का अभिन्न अंग नहीं माना जा सकता। इस फैसले का दूरगामी प्रभाव हो सकता है, विशेषकर उन मामलों में जहाँ परिसीमन को चुनाव याचिका के माध्यम से चुनौती देने का प्रयास किया जाता है।
मामले का संदर्भ और अदालत का अवलोकन:
यह फैसला एक विशिष्ट मामले की सुनवाई के दौरान आया, जिसमें एक याचिकाकर्ता ने किसी चुनावी नतीजे को चुनौती देते हुए परिसीमन प्रक्रिया में कथित अनियमितताओं को आधार बनाया था। याचिकाकर्ता का तर्क था कि चूंकि परिसीमन सीधे तौर पर सीटों के निर्धारण और मतदाताओं के वितरण को प्रभावित करता है, इसलिए इसे चुनाव का एक आवश्यक चरण माना जाना चाहिए और इस पर चुनावी कानून के तहत विचार किया जाना चाहिए।
हालांकि, अदालत ने इस तर्क को स्वीकार नहीं किया। अपने फैसले में, अदालत ने रेखांकित किया कि परिसीमन का कार्य निर्वाचन आयोग या परिसीमन आयोग द्वारा किया जाता है, जो एक स्वतंत्र और संवैधानिक निकाय है। इस प्रक्रिया का मुख्य उद्देश्य जनसंख्या के आधार पर निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं को फिर से निर्धारित करना है ताकि सभी क्षेत्रों को जनसंख्या के अनुपात में उचित प्रतिनिधित्व मिल सके। यह एक तकनीकी और सांख्यिकीय अभ्यास है।
परिसीमन बनाम चुनावी प्रक्रिया:
अदालत ने स्पष्ट किया कि “चुनावी प्रक्रिया” आम तौर पर उस अवधि को संदर्भित करती है जो चुनाव की अधिसूचना जारी होने से लेकर परिणाम घोषित होने तक चलती है। इसमें नामांकन दाखिल करना, मतदान करना, वोटों की गिनती और नतीजे की घोषणा जैसे चरण शामिल होते हैं। परिसीमन का कार्य इन चरणों से पहले ही पूरा हो चुका होता है और इसका सीधा संबंध चुनाव कराने की तात्कालिक प्रक्रिया से नहीं होता।
अदालत ने यह भी तर्क दिया कि यदि परिसीमन को चुनावी प्रक्रिया का हिस्सा मान लिया जाए, तो इससे चुनाव याचिकाओं का दायरा अनावश्यक रूप से बढ़ जाएगा और चुनावी विवादों का समाधान जटिल हो जाएगा। परिसीमन से संबंधित किसी भी चुनौती के लिए अलग और विशिष्ट कानूनी रास्ते मौजूद हैं, जैसे कि उच्च न्यायालयों या सर्वोच्च न्यायालय में रिट याचिकाएं, जो चुनावी याचिकाओं से भिन्न होती हैं।
फैसले का महत्व:
इस फैसले के कई महत्वपूर्ण निहितार्थ हैं:
- चुनाव याचिकाओं का सीमित दायरा: यह निर्णय चुनाव याचिकाओं के दायरे को सीमित करता है। अब कोई भी उम्मीदवार या मतदाता सीधे चुनाव याचिका के माध्यम से परिसीमन को आधार बनाकर चुनावी परिणामों को चुनौती नहीं दे सकेगा।
- कानूनी स्पष्टता: यह परिसीमन की प्रकृति और चुनावी प्रक्रिया के बीच के अंतर को लेकर कानूनी स्पष्टता प्रदान करता है।
- स्वतंत्र आयोगों की भूमिका: यह निर्वाचन आयोग या परिसीमन आयोग जैसे स्वतंत्र संवैधानिक निकायों द्वारा किए गए कार्यों की स्वायत्तता और वैधता को मजबूत करता है। उनके निर्णयों को प्रशासनिक दायरे में देखा जाएगा, न कि चुनावी विवादों के हिस्से के रूप में।
- अलग कानूनी उपचार: यह बताता है कि परिसीमन से संबंधित किसी भी आपत्ति या चुनौती के लिए अलग कानूनी रास्ते अपनाने होंगे, जो चुनाव कानूनों से भिन्न होंगे।
कुल मिलाकर, गोवा की अदालत का यह फैसला भारतीय चुनावी कानून के संदर्भ में परिसीमन की स्थिति को और स्पष्ट करता है, जिससे चुनावी विवादों के समाधान की प्रक्रिया अधिक सुव्यवस्थित हो सकेगी।